यौन अपराधों से बच्चों की सुरक्षा अधिनियम 2012 (पोक्सो एक्ट)

यह एक विशेष कानून है, जो बच्चों के साथ किए जाने वाले विभिन्न प्रकार के यौन कृत्यों को अपराध के दायरे में लाता है। इस कानून में विशेष अदालतों की स्थापना और अपनायी जाने वाली न्याय प्रक्रिया से संबंधित प्रावधान किया गया है।

  • इस अधिनियम में ‘बालक’ को 18 वर्ष से कम आयु के व्यक्ति के रूप में परिभाषित किया गया है और यह बच्चे का शारीरिक, भावनात्मक, बौद्धिक और सामाजिक विकास सुनिश्चित करने के लिये हर चरण को ज्यादा महत्व देते हुए बच्चे के श्रेष्ठ हितों और कल्याण का सम्मान करता है।

POCSO अधिनियम, 2012 के संबंध में

यह लैंगिक हमला, लैंगिक उत्पीड़न और अश्लील साहित्य के अपराधों से बालकों (18 वर्ष से कम आयु) को संरक्षण प्रदान करने वाला एक व्यापक कानून है।

  • बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र अभिसमय 1989 यह निर्दिष्ट करता है कि लैंगिक शोषण और लैंगिक दुर्व्यवहार को जघन्य अपराधों के रूप में संबोधित किया जाना चाहिए।
  • इस अभिसमय की भारत द्वारा वर्ष 1992 में अभिपुष्टि की गई थी।
  • इसके तहत न्यायिक प्रक्रिया के प्रत्येक चरण में बाल अनुकूल तंत्र का प्रावधान किया गया है, जिसमें रिपोटिंग, साक्ष्यों की रिकॉर्डिंग, जांच और निर्दिष्ट विशेष न्यायालयों के माध्यम से अपराधों की त्वरित सुनवाई शामिल है।
  • इस अधिनियम के तहत मामलों की जांच को दो माह के भीतर पूरा करने तथा 6 माह के भीतर मामले की निस्तारण संबंधी अनिवार्यता को लागू किया गया है। इस उद्देश्य से फास्ट ट्रैक विशेष न्यायालयों (FTSC) की स्थापना भी की गई है।
  • यह प्रवेशक लैंगिक हमले व गंभीर प्रवेशक लैंगिक हमले के लिए न्यूनतम दंड में वृद्धि (मृत्युदंड सहित) करता है।
  • ऐसे हमले जिससे बालक की मृत्यु हो जाती है और प्राकृतिक आपदा के दौरान या ऐसी ही किन्हीं हिंसक स्थितियों में किए गए हमले को गंभीर प्रवेशक लैंगिक हमले के रूप में शामिल किया गया है।
  • बाल अश्लीलता को स्पष्ट लैंगिक आचरण के ऐसे किसी भी दृश्य निरुपण के रूप में परिभाषित करता है, जिसमें चित्र, वीडियो, वास्तविक बच्चे से अविभे/ डिजिटल या कंप्यूटर जनित छवि शामिल हैं।