फ़ैक्टरिंग विनियमन (संशोधन) विधेयक, 2020

फैक्टरिंग रेगुलेशन (संशोधन) विधेयक, 2020 बिल फैक्टरिंग रेगुलेशन एक्ट, 2011 में संशोधन करता है और फैक्टरिंग बिजनेस करने वाली एंटिटीज के दायरे को बढ़ाता है।

मुख्य बिंदुः यह विधेयक रिसिवेबल्स की परिभाषा में बदलाव करता है। विधेयक के अनुसार रिसिवेबल्स (पूरा, उसका एक अंश या अविभाजित हित) ऐसी मौद्रिक रकम होती है जोकि कॉन्ट्रैक्ट के अंतर्गत किसी व्यक्ति का अधिकार होता है।

  • नए अधिनियम के अनुसार भारतीय रिजर्व बैंक के साथ रजिस्टर किए बिना कोई कंपनी फैक्टरिंग बिजनेस नहीं कर सकती।
  • अगर किसी गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनी (एनबीएफसी) को फैक्टरिंग बिजनेस करना है तो (प) फैक्टरिंग बिजनेस में उसके वित्तीय एसेट्स और (पप) फैक्टरिंग बिजनेस से उसकी आय, दोनों को उसके ग्रॉस एसेट्स/शुद्ध आय के 50% से अधिक या आरबीआई द्वारा अधिसूचित सीमा से अधिक होना चाहिए।
  • विधेयक आरबीआई को यह अधिकार देता है कि वे निम्नलिखित के संबंध में रेगुलेशन बनाएः (प) फैक्टर को रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट देने का तरीका, (पप) टीआरईडीएस के जरिए होने वाले लेनदेन के लिए केंद्रीय रजिस्ट्री में लेनदेन के विवरण को फाइल करने का तरीका, और (पपप) जरूरत होने पर कोई अन्य तरीका।
भारत की प्रमुख औद्योगिक नीति
औद्योगिक नीति 1948 श्यामा प्रसाद मुखर्जी द्वारा प्रस्तुत इस नीति में मिश्रित अर्थवयवस्था की नीति अपनाई गई।
उद्योगों को तीन श्रेणियों में बांटा गया, प्रथम श्रेणी में 3 उद्योग रखे गए।
द्वितीय श्रेणी में 6 उद्योग रखे गए।
तृतीय श्रेणी में 18 उद्योगों को रखा गया।
औद्योगिक नीति 1956 जवाहर लाल नेहरू द्वारा प्रस्तुत इस नीति में 17 उद्योगों पर केन्द्र सरकार का पूर्ण नियन्त्रण था।
शेष उद्योगों पर निजी उद्योगपतियों का नियन्त्रण था, जो विशेषकर उपभोक्ता वस्तु के उत्पादक थे।
1977 की औद्योगिक नीति इसे प्रस्तुत करने का श्रेय जॉर्ज फर्नाडीज को जाता है। लघु व कुटीर उद्योगों के विकास पर जोर दिया गया। लघु उद्योगों को 3 वर्गों में रखा गया।
अति लघु (Tinny Sector): क्षेत्र की नई अवधारणा लागू की गई।
जिला उद्योग केन्द्रः लघु उद्योग को एक स्थान पर सभी सुविधा उपलब्ध कराना।
संयुक्त क्षेत्र की अवधारणा अपनाई गई।
1980 की औद्योगिक नीति भारतीय अर्थ व्यवस्था का आधुनिकीकरण विस्तार एवं पिछड़े क्षेत्रों का विकास करना था।
नई औद्योगिक नीति 24 जुलाई, 1995 इसे राय मनमोहन नीति भी कहते हैं।
इसमें उदारीकरण नीतिकरण एवं भूमण्डलीकरण को अपनाया गया। 18 उद्योगों पर लाइसेंसिंग की पॉलिसी अपनाई गई अर्थात् ये 18 उद्योग सुरक्षा, सामाजिक कारण, पर्यावरण तथा प्रदूषण की दृष्टि से महत्वपूर्ण थे। वर्तमान में 5 उद्योगों के लिए लाइसेन्स लेना अनिवार्य है। एल्कोहल युक्त पेय पदार्थ का आश्वन एवं निर्माण।
तम्बाकू के सीगार व सिगरेट तथा इससे बनी वस्तुएं। इलेक्ट्रॉनिक एयरोस्पेस तथा रक्षा समान औद्योगिक विस्फोटक जोखिम वाले रसायन