व्यक्तिगत स्वतंत्रता संविधान का एक महत्वपूर्ण पहलू

अगस्त, 2021 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए एक निर्णय के तहत केवल इसलिए कि कानूनन किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी की जा सकती है, यह अनिवार्य नहीं है कि गिरफ्तारी की ही जाए।

  • एक याचिकाकर्ता द्वारा एक आपराधिक मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के समक्ष अग्रिम जमानत (anticipatory bail) का आवेदन किया गया था, जिसे उच्च न्यायालय द्वारा खारिज कर दिया गया था, जिसके बाद उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय में अपील की।

हिरासत बनाम जमानत

  • आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 57 के अनुसार जब किसी मामले में 24 घंटे के भीतर जांच पूरी नहीं होती है तो मामला मजिस्ट्रेट के पास भेजा जाता है।
  • आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 167(2) मजिस्ट्रेट को अधिकतम 15 दिनों की अवधि के लिए आरोपी को हिरासत में लेने का अधिकार देती है।
  • हालांकि, संविधान के अनुच्छेद 21 के अनुसार देश का नागरिक होने के नाते अभियुक्त की व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा की जानी चाहिए, इसलिए मजिस्ट्रेट आरोपी की गंभीर अपराध के मामले में 90 दिनों से अधिक की हिरासत को अधिकृत नहीं कर सकता।
  • कम गंभीर अपराध के मामले में यह अवधि अधिकतम 60 दिनों की हो सकती है। जब यह अवधि समाप्त हो जाती है तो अदालत को आरोपी को जमानत देनी होती है।
  • मुख्य बिंदुः सिद्धार्थ बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (Siddharth vs State of Uttar Pradesh) के इस मामले में जस्टिस संजय किशन कौल तथा हषिकेश रॉय की बेंच ने कहा कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता हमारे संवैधानिक अधिदेश का एक महत्वपूर्ण पहलू है।
  • शीर्ष अदालत के अनुसार अगर गिरफ्तारी या हिरासत को सामान्य व्यवहार या आदत बना लिया जाएगा, तो इससे किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा और आत्मसम्मान को ‘अतुलनीय नुकसान’ पहुंच सकता है।
  • न्यायाधिशों के अनुसार जांच के दौरान एक आरोपी को गिरफ्तार तब करना चाहिए जब उसे हिरासत में लेकर जांच करना जरूरी हो या जहां जघन्य अपराध का मामला हो या जहां गवाहों को प्रभावित करने की संभावना हो अथवा आरोपी फरार हो सकता हो।