न्यायिक अवमानना के मामले में अटॉर्नी जनरल की भूमिका

सितंबर, 2021 को भारत के महान्यायवादी (Attorney General for India) के. के. वेणुगोपाल (KK Venugopal) ने एक यूटड्ढूबर के खिलाफ आपराधिक अवमानना कार्यवाही शुरू करने की सहमति प्रदान कर दी। यूटड्ढूबर द्वारा अपने एक वीडियो में सुप्रीम कोर्ट और उसके न्यायाधीशों के खिलाफ ‘अभद्र’ और ‘अत्यधिक अपमानजनक’ टिप्पणी की गई थी।

  • सर्वोच्च न्यायालय की अवमानना कार्यवाही विनियमन नियमावली, 1975 के नियम 3 (सी) के साथ पठित न्यायालयों की अवमानना अधिनियम, 1971 की धारा 15 के तहत आपराधिक अवमानना शुरू करने के लिए अटॉर्नी जनरल से अनुमति मांगी गई थी।

न्यायालय की अवमाननाः अदालत की अवमानना से आशय ऐसी किसी भी कार्रवाई से है जो किसी अदालत के अधिकार की निंदा करे, उसका अपमान करे, या अदालत के अपने कार्य करने की क्षमता में बाधा डाले।

  • इस सन्दर्भ में न्यायालयों को प्राप्त अवमानना के क्षेत्रधिकार का उद्देश्य कानून की महिमा और गरिमा को कायम रखना है।
  • भारत में अवमानना अधिनियम, 1971 अवमानना को सिविल अवमानना और आपराधिक अवमानना में विभाजित करता है।

सिविल अवमाननाः यह न्यायालय के किसी भी निर्णय, डिक्री, निर्देश, आदेश, रिट या अन्य प्रक्रियाओं की स्वेच्छा से की गई अवज्ञा या अदालत के प्रति वचनबद्धता का जानबूझकर किया गया उल्लंघन है।

आपराधिक अवमाननाः यह किसी भी मामले से संबंधित ऐसी घोषणा है (चाहे बोले गए शब्दों द्वारा, या लिखित, या संकेतों द्वारा, अथवा दृश्य प्रतिनिधित्व या अन्यथा द्वारा) या अन्य कोई कार्य है जो किसी भी अदालत का अपमान अथवा उसके अधिकार को कम करता हो; किसी भी न्यायिक कार्यवाही की नियत प्रक्रिया के साथ हस्तक्षेप करता हो; अथवा किसी भी अन्य तरीके से न्याय प्रशासन में हस्तक्षेप या बाधा डालता हो।