जुलाई 2021 में, दिल्ली स्थित एनजीओ ‘टॉक्सिक्स लिंक’ ने ‘गंगा नदी के किनारे माइक्रोप्लास्टिक्स का मात्रत्मक विश्लेषण’ नामक एक अध्ययन जारी किया, जिसके अनुसार नदी माइक्रोप्लास्टिक से अत्यधिक प्रदूषित है।
प्रमुख बिंदुः अध्ययन के लिए गंगा के पानी के नमूने हरिद्वार, कानपुर और वाराणसी से एकत्र किए गए और उन सभी में माइक्रोप्लास्टिक पाए गए। पानी के परीक्षण का कार्य राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान (NIO), गोवा के सहयोग से किया गया था।
पानी में, माइक्रोप्लास्टिक के अलावा सिंगल यूज प्लास्टिक जैसे अन्य प्रकार के सेकेंडरी प्लास्टिक उत्पाद भी पाए गए थे।
इस अध्ययन में माइक्रोप्लास्टिक के रूप में कम से कम 40 विभिन्न प्रकार के पॉलिमर की उपस्थिति का पता चला है।
अध्ययन के लिए एकत्र किए गए सभी स्थानों पर माइक्रोप्लास्टिक के अधिकांश टुकड़ों का आकार 300-m से कम था।
माइक्रोप्लास्टिक की उच्चतम सांद्रता वाराणसी में पाई गई, जिसमें सिंगल-यूज और सेकेंडरी प्लास्टिक उत्पाद शामिल हैं।
माइक्रोप्लास्टिक
माइक्रोप्लास्टिक 1 माइक्रोमीटर (माइक्रोन) से लेकर 5 मिलीमीटर (मिमी) तक के सिंथेटिक ठोस कण होते हैं। इस प्रकार के कारण पानी में अघुलनशील होते हैं। माइक्रोप्लास्टिक को समुद्री प्रदूषण का प्रमुख स्रोत भी माना जाता है।