भारत की नीति का विकास

भारत की हिंद-प्रशांत रणनीति को प्रधानमंत्री मोदी ने 2018 में सिंगापुर के एक भाषण में सागर (एसएजीआर) सिद्धांत के रूप में स्वीकार किया था जिसे फ्सिक्योरिटी एण्ड ग्रोथ फॉर ऑल इन द रिजन’ के संदर्भ में प्रस्तुत किया था।

  • यह ‘एंड-टू-एंड सप्लाई चेन’ हासिल करने पर निर्भर करती है जिसके अंतर्गत किसी एक देश पर निर्भरता न होकर सभी लाभार्थियों के लिए समृद्धि सुनिश्चित करना है।
  • भारत की इस क्षेत्र की नीति ‘समावेशिता’, ‘खुलापन’, ‘आसियान केंद्रीयता’ पर आधारित है और यह अवधारणा किसी भी देश के खिलाफ निर्देशित नहीं थी।
  • भारत के लिए हिंद-प्रशांत का विचार ऐसा है, जिसमें नियमों का पालन, नेवीगेशन की स्वतंत्रता, खुले संपर्क और सभी देशों की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता के लिए सम्मान हो।
  • हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारतीय भागीदारी को मोटे तौर पर तीन समूहों में वर्गीकृत किया जा सकता हैः क्वाड, आसियान और पश्चिमी हिंद महासागर।

एपेक

  • एशिया-प्रशांत आर्थिक सहयोग संगठन (एपेक संगठन) की स्थापना वर्ष 1989 में की गई थी। यह एशिया-प्रशांत क्षेत्र में अपने सदस्य देशों के मध्य बढ़ती हुई परस्पर निर्भरता का लाभ उठाने का एक क्षेत्रीय आर्थिक मंच है।
  • उद्देश्यः संतुलित, समावेशी, सतत, अभिनव और सुरक्षित विकास को बढ़ावा देना, क्षेत्रीय आर्थिक एकीकरण में तीव्रता लाकर क्षेत्र के लोगों को समृद्ध करना।
  • एपेक के सदस्य देशों की संयुक्त आबादी लगभग 3 बिलियन है, और यह समूह विश्व के ‘सकल घरेलू उत्पाद’ में लगभग 60 प्रतिशत का योगदान देता है।
  • एशिया-प्रशांत आर्थिक सहयोग के 21 राष्ट्र सदस्य हैं, जो इस प्रकार हैं- ऑस्ट्रेलिया, ब्रूनेई दारुस्सलाम (Brunei Darussalam), कनाडा, चिली, चीनी जनवादी गणराज्य, हांगकांग (चीन), इंडोनेशिया, जापान, कोरिया गणराज्य, मलेशिया, मेक्सिको, न्यूजीलैंड, पापुआ न्यू गिनी, पेरू, फिलीपींस, रूसी संघ, सिंगापुर, चीनी-ताइपेई, थाईलैंड, संयुक्त राज्य अमेरिका तथा वियतनाम।