इस अधिनियम के माध्यम से पुराने बनाये गए कानूनों की कमियों को दूर किया जा रहा है, क्योंकि वे वास्तविक और व्यावहारिक रूप से पट्टाकार (lessor) और पट्टेदार (lessee) के बीच संबंध को संबोधित नहीं करते हैं। अधिनियम की महत्वपूर्ण विशेषताएं निम्नलिखित हैं -
‘परिसर’ की परिभाषा में आवासीय और वाणिज्यिक परिसर शामिल हैं, लेकिन औद्योगिक उपयोग के परिसर को इसमें शामिल नहीं किया गया है।
प्रस्तावित मॉडल अधिनियम के तहत, भूस्वामी और किरायेदार को रेंट अथॉरिटी के साथ लिखित रूप में समझौते को दर्ज करानी होगी। इसे किरायेदारी से संबंधित मामलों के सबूत के रूप में लिया जाएगा।
राज्य/केंद्र शासित प्रदेश प्रस्तावित मॉडल अधिनियम के प्रावधानों से सम्बंधित नियम बना सकते हैं।
किरायेदार पट्टे की अवधि समाप्त हो जाने के बाद परिसर को खाली करने में विफल रहता है तो छः महीने की अवधि के लिए किराया प्रतिमाह देना होगा। इस अवधि के बाद, किरायेदार अगले दो महीने के लिए प्रतिमाह दोगुना किराए का भुगतान करेगा और उसके बाद मासिक किराए का चार गुना देगा, जब तक वह परिसर खाली नहीं करता है।
इसके तहत देय सुरक्षा जमा राशि आवासीय परिसर के लिए अधिकतम दो महीने के किराए के बराबर होगी, वहीं गैर-आवासीय परिसर के लिए अधिकतम की कोई सीमा नहीं हैं, लेकिन यह न्यूनतम एक महीने के किराया के बराबर हो सकता है।
मकान मालिक को किराए की अवधि के दौरान किराया बढ़ाने की अनुमति नहीं है, जब तक कि प्रस्तावित वृद्धि की गणना राशि या विधि किरायेदारी समझौते में नहीं बताई गई है।
संपत्ति प्रबंधन के दायित्वों और जिम्मेदारियों के साथ एक संपत्ति प्रबंधक की अवधारणा को प्रस्तावित मॉडल अधिनियम में शामिल किया गया है।