नीलकुरिंजी संरक्षित पौधों की सूची में शामिल
- 16 Jan 2023
भारत के पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने नीलकुरिंजी को वन्य जीवन (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की अनुसूची III के तहत सूचीबद्ध किया गया है।
महत्वपूर्ण तथ्य :
- नीलकुरिंजी लुप्तप्राय नहीं है, लेकिन संरक्षित प्रजातियों के तहत एक पौधे के रूप में शामिल है।
- पौधे को उखाड़ने या नष्ट करने वाले व्यक्तियों को 25,000 रुपये का जुर्माना और 3 साल की कैद हो सकती है।
- नीलकुरिंजी की खेती और उसके कब्जे की अनुमति नहीं है
- मुन्नार में नीलकुरिंजी का खिलना एक प्रमुख पर्यटक आकर्षण है।
- उनके सूखे फूल से मिट्टी में गिरने वाले बीजों के परिणामस्वरूप उनके पौधे बनते हैं। अगर फूल तोड़े जाएं तो ऐसा नहीं होगा। इसलिए फूल तोड़ने की इजाजत नहीं दी गई है।
- भारत में नीलकुरिंजी की 40 से अधिक प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
नीलकुरिंजी
- यह दक्षिण भारत के पश्चिम घाट के 1800 मीटर से ऊंचे शोला घास के मैदानों में बहुतायत से उगने वाला एक पौधा है। इसके फूल 12 वर्ष में एक बार खिलते हैं। नीलगिरी पर्वत का नाम इन्हीं नीलकुरंजी फूलों के आच्छादित होने के कारण पड़ा है।
जी के फैक्ट
भारतीय वन्य जीव संरक्षण अधिनियम, 1972
भारत सरकार ने सन् 1972 ई॰ का उद्देश्य वन्यजीवों के अवैध शिकार तथा उसके हाड़-माँस और खाल के व्यापार पर रोक लगाना था
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