नीति आयोग ने भू-स्वामित्व मॉडल कानून का मसौदा ज़ारी किया

  • 10 Nov 2020

  • नीति आयोग ने भू-स्वामित्व मॉडल कानून का मसौदा और भू-स्वामित्व का अंतिम निर्णय हेतुराज्यों के लिए अधिनियमज़ारी किया है।

उद्देश्य

  • मुकदमों को कम करने और बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया को आसान बनाने के लिए नीति आयोग ने भू-स्वामित्व मॉडल कानून का मसौदा ज़ारी किया है।

मुख्य विशेषताएं

  • अचल संपत्तियों के स्वामित्व के पंजीकरण की एक प्रणाली की स्थापना, प्रशासन और प्रबंधन के लिए राज्य सरकारों को मज़बूती प्रदान करेगा।
  • मॉडल अधिनियम के तहत, भूमि विवाद समाधान अधिकारी और भूमि स्वामित्व अपीलीय न्यायाधिकरणइस कार्य को अंज़ाम देंगे।
  • इसके साथ अधिसूचना के तीन वर्ष बाद बिना किसी बाहरी कार्रवाई के स्वामित्व का रजिस्टर अंतिम रूप से अधिकृत हो जायेगा। किसी विवाद की स्थति/मामले में विशिष्ट भूमि स्वामित्व की गारंटी राज्य क्षतिपूर्ति के लिए मुआवज़े का प्रावधान करेगा।
  • स्वामित्व के रिकॉर्ड (Record of Titles) में प्रविष्टि से असंतुष्ट कोई भी व्यक्ति इस अधिसूचना की तारीख़ से तीन साल के भीतर स्वामित्व पंजीकरण अधिकारी (Title Registration Officer) के समक्ष आपत्ति दर्ज़ करा सकता है।
  • इसके बाद स्वामित्व पंजीकरण अधिकारी (Title Registration Officer) उस मामले कोविवादित मामलों के रजिस्टर में प्रविष्ट करेगा और मामले को भूमि विवाद समाधान अधिकारी के समक्ष प्रस्तुत करेगा।
  • भूमि विवाद समाधान अधिकारी से असंतुष्ट पक्ष इस तरह के आदेश के पारित होने के 30 दिनों के भीतरभूमि स्वामित्व अपीलीय न्यायाधिकरण (Land Titling Appellate Tribunal) के समक्ष अपील दायर कर सकता है।
  • भूमि स्वामित्व अपीलीय न्यायाधिकरण (Land Titling Appellate Tribunal) द्वारा पारित आदेशों के ख़िलाफ़ अपील से निपटने के लिए उच्च न्यायालय की एक विशेष पीठ को नियुक्त किया जाएगा।

भू-स्वामित्व

  • भू-स्वामित्व एक दस्तावेज़ है जो भूमि के स्वामित्व या अचल संपत्ति का निर्धारण करता है। स्पष्ट भूमि का स्वामित्व होने से किसी की संपत्ति के लिए किसी और द्वारा किए गए अन्य दावों के ख़िलाफ़स्वामित्व धारक के अधिकारों की रक्षा होती है।
  • भारत मेंभूमि का स्वामित्व विभिन्न अभिलेखों के माध्यम से निर्धारित किया जाता है, जैसे- पंजीकृतविक्रय विलेख (Sale Deeds- बैनामा), संपत्ति कर दस्तावेज, सरकारी सर्वेक्षण रिकॉर्ड, इत्यादि।
  • भूमि रिकॉर्ड की वर्तमान प्रणाली स्वतंत्रता-पूर्व दिनों की जमींदारी प्रणाली से विरासत में मिली थी। वर्तमान में, भूमि स्वामित्व के नियम, संपत्ति स्थानांतरण अधिनियम, 1882 का हस्तांतरण है।
  • भूमि संबंधी दस्तावेजों के पंजीकरण को विनयमित करने वाला पहला कानून पंजीकरण अधिनियम, 1908 है।

भू-स्वामित्व से जुड़ी चुनौतियाँ

भारत में भूमि स्वामित्व प्रकल्पित (Presumptive) है

  • भारत मेंभूमि स्वामित्व मुख्य रूप से एक पंजीकृत बिक्री विलेख (Sale Deed) अथवा बैनामा के माध्यम से स्थापित किया जाता है (यह खरीदार और विक्रेता के बीच संपत्ति लेनदेन का रिकॉर्ड होता है)।
  • पंजीकृत बिक्री विलेख के अतिरिक्त स्वामित्व का अधिकार स्थापित करने के लिए उपयोग किए जाने वाले अन्य दस्तावेजों मेंसंपत्ति कर प्राप्तियां (property tax receipts) और सर्वेक्षण दस्तावेज़ (Survey Documents) शामिल हैं।
  • हालांकि, ये दस्तावेज़ संपत्ति के स्वामित्वलिए एक सरकारी गारंटी नहीं हैं, यह केवल संपत्ति के हस्तांतरण का एक रिकॉर्ड है।
  • इसलिए, भारत में भूमि का स्वामित्व की प्रकृतिप्रकल्पित (Presumptive) है, इसे चुनौती दी जा सकती है।

भूमि के रिकॉर्ड का बुरी तरह से रखरखाव

  • भूमि के रिकॉर्ड में विभिन्न प्रकार की जानकारियां (संपत्ति का नक्शे, बिक्री विलेख) होते हैं और जिला या गाँव स्तर पर विभिन्न विभागों में उसका रखरखाव किया जाता है।
  • ये विभाग कोष्ठागार (Silos) में काम करते हैंऔर विभागों में डेटा ठीक से अपडेट नहीं किया जाता है। इसलिए, अक्सर भूमि रिकॉर्ड में विसंगतियों आतीहैं।
  • इसलिए, कई रिकॉर्ड मेंसंपत्ति के दस्तावेज़ जमीन पर स्थिति से मेल नहीं खाते हैं।
  • ख़राब भूमि रिकॉर्ड भविष्य की संपत्ति के लेनदेन को भी प्रभावित करते हैं। जब विभागों में डेटा फैला हुआ है और उसे अपडेट नहीं किया गया है, तो भूमि रिकॉर्ड तक पहुंचना कठिन और बोझिल हो जाता है।
  • संपत्ति पर किसी भी स्वामित्व के दावे को खोजने के लिए मैनुअल रिकॉर्ड सहित कई वर्षों के दस्तावेज़ों को वापस खंगालना पड़ता है। ऐसी प्रक्रिया अयोग्य (Inefficient) है और समय की देरी का कारण बनती है।

संपत्ति का पंजीकरण सभी लेन-देन के लिए अनिवार्य नहीं है

  • पंजीकरण अधिनियम, 1908 के तहतसभी लेन-देन के लिए संपत्ति का पंजीकरण अनिवार्य नहीं है।
  • इनमें सरकार द्वारा भूमि अधिग्रहण, अदालत के आदेश, भूमि के आदेश, उत्तराधिकारियों का विभाजन और एक वर्ष से कम के लिए लीज़ पर दी गई संपत्तिहैशामिल हैं।
  • चूंकि उत्तराधिकार विभाजन के लिए पंजीकरण की आवश्यकता नहीं होती है औरकई संपत्ति प्रभागों को रिकॉर्ड नहीं किया जाता है इसलिएयह सही ढंग से प्रतिबिंबित नहीं करता है कि संपत्ति किसके कब्ज़े में है।
  • यह अक्सर उत्तराधिकारियों के बीच वास्तविक मालिक से संबंधित मुकदमेबाजी की ओर जाता है।

भूमि रिकॉर्ड की प्रणाली में सुधार करने के लिए सरकार की पहल

  • वर्ष 1988-89 के आसपास, केंद्र सरकार ने सभी भूमि रिकॉर्ड को कम्प्यूटरीकृत करने के लिए भूमि रिकॉर्डकम्प्यूटरीकरण नामक योजना की शुरुआत की। भूमि रिकॉर्ड और प्रशासन को बेहतर बनाने के लिएराजस्व प्रशासन को मज़बूतीकरण और भूमि रिकॉर्ड को अपडेट करने के लिए दो अन्य योजनाओं को लगभग एक ही समय में पेश किया गया था।
  • वर्ष 2008 मेंइन सभी योजनाओं को एक केंद्र प्रायोजित योजना, राष्ट्रीय भूमि रिकॉर्ड आधुनिकीकरण कार्यक्रम (National Land Records Modernization Programme- NLRMP) में मिला दिया गया।
  • इस योजना का नाम बदलकर अब डिजिटल इंडियाभूमि रिकॉर्ड आधुनिकीकरण कार्यक्रम (Digital India Land Records Modernization Programme- DILRMP) कर दिया गया है और यह डिजिटल इंडिया पहल का एक हिस्सा है।
  • इस योजना को अप्रैल 2016 में एक केन्द्रीय क्षेत्र की योजना में बदल दिया गया था।

आगे का रास्ता

  • चूंकि भारत में भूमि रिकॉर्ड की समस्या को हल करने के लिएअंतिम स्वामित्व (Conclusive Titling)को समाधान के रूप में का सुझाव दिया गया है, अतः सरकार को गारंटीकृत भूमि का अंतिम स्वामित्व चुनने के पहले कई चरणों को पूरा करने की आवश्यकता है।

इन चरणों में निम्न शामिल हैं-

  • केंद्र और राज्यों में संशोधित कानून
  • राज्य स्तर पर प्रशासनिक परिवर्तन, यहीभूमि के डेटा का संग्रह और रखरखाव करते हैं।
  • यह सुनिश्चित करना कि सभी डेटा नियमित रूप से अपडेट और आसानी से सुलभ तरीके से (डिजिटल प्लेटफॉर्म पर) उपलब्ध हों।