एससी-एसटी आरक्षण के भीतर उप-वर्गीकरण मामला
- 29 Aug 2020
जस्टिस अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की पीठ ने 27 अगस्त, 2020 को सबसे जरूरतमंद तक आरक्षण का लाभ पहुंचाने के लिए आरक्षण के भीतर आरक्षण यानी ‘कोटे में कोटा’ को सही ठहराया है।
महत्वपूर्ण तथ्य: पीठ के अनुसार आरक्षण का लाभ सभी तक समान रूप से पहुंचाने के लिए राज्य सरकार को एससी/एसटी श्रेणी में वर्गीकरण का अधिकार है। राज्य सरकार आरक्षित श्रेणी में उप-वर्गीकरण कर सकती है।
- 2005 में ‘ई वी चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश’ मामले में सुप्रीम कोर्ट के ही पांच जजों की एक पीठ ने इससे विपरीत फैसला देते हुए कहा था कि एससी/एसटी में उप-वर्गीकरण का राज्यों को अधिकार नहीं है।
- ई वी चिन्नैया मामले में कहा गया था कि अनुच्छेद 341 (1) के तहत राष्ट्रपति के आदेश में सभी जातियां सजातीय समूह के एक वर्ग का गठन करती हैं, और उन्हें आगे विभाजित नहीं किया जा सकता है।
- समान क्षमता वाली दो पीठ के विपरीत फैसलों को देखते हुए प्रधान न्यायाधीश से मामले को सात जजों या उससे बड़ी पीठ के समक्ष विचार के लिए आग्रह किया गया है।
- सुप्रीम कोर्ट द्वारा यह फैसला पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के उस फैसले के बाद दायर की गई अपील के बाद आया है, जिसमें पंजाब अनुसूचित जाति और पिछड़ा वर्ग (सेवा में आरक्षण) अधिनियम, 2006 की धारा 4 (5) को रद्द कर दिया गया था।
- इसके तहत प्रत्यक्ष भर्ती में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित रिक्तियों का 50%, यदि उपलब्ध हो, तो पहली वरीयता के रूप में ‘बाल्मीकि और मजहबी सिखों’ को देने का प्रावधान था।
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