Question : भारत में शास्त्रीय नृत्य के प्रमुख रूप क्या-क्या हैं? प्रत्येक की दो विशेषताएं बताइए।
(1988)
Answer : शास्त्रीय नृत्य के मुख्य प्रकार निम्नवत् हैं-
Question : निम्नलिखित कहां है? वे इतने विख्यात क्यों हैं? (प्रत्येक पर दो वाक्य)
(i)दक्षिणेश्वर
(ii)भरुच
(iii) प्रागज्योतिष
(iv) देवराला
(v)जहानाबाद
(1988)
Answer : (i) दक्षिणेश्वरः पश्चिम बंगाल के 24 परगना जिले में स्थित स्थान। यहां रामकृष्ण परमहंस को काली मंदिर में ज्ञानोदय हुआ।
(ii) भरुचः गुजरात में नर्मदा नदी के तट पर बसा एक प्राचीन नगर। यहां भृगु ऋषि का मंदिर है।
(iii) प्रागज्योतिषः प्राचीन असम की राजधानी। प्राचीनकाल में ज्योतिष का सुप्रसिद्ध केंद्र।
(iv) देवरालाः राजस्थान में अवस्थित एक स्थान, जहां अपने पति की चिता की अग्नि में सती होकर रूपकुंवर ने सती प्रथा का एक और अध्याय रचा।
(v) जहानाबादः बिहार का एक स्थान, जहां लोरिक सेना द्वारा हरिजनों के सामूहिक हत्याकांड की घटना हुई।
Question : निम्नलिखित के प्रमुख लक्षणों का मूल्यांकन कीजिए। विशेषताएं बताइए। (प्रत्येक लगभग 50 शब्दों में)
(i)गान्धार कला संप्रदाय
(ii)शिलाकृत मंदिर स्थापत्य
(iii) चोल स्थापत्य
(1988)
Answer : (i) गांधार कला संप्रदायः गांधार स्कूल प्रथम शती ई. पू. में आरंभ हुआ तथा कनिष्क के राज्यकाल में इसका सर्वाधिक विकास हुआ। इसका प्रमुख केंद्र हद्द, बामियान तथा जलालाबाद था। पश्चिमी पंजाब व अफगानिस्तान के बीच गांधार में पल्लवित होने के कारण इसका नाम ‘गांधार शैली’ पड़ा। इसे ग्रीक-बौद्ध शैली भी कहा जाता है। इसकी प्रारंभिक मूर्तियों में बुद्ध का मुख ग्रीक देवता अपोलो से मिलता है। इस शैली के अंतर्गत शरीराकृति को यथार्थ रूप में दिखाने का प्रयास किया जाता है। गांधार शैली की मूर्ति भेरे सलेटी पत्थर पर बनी है।
(ii) शिलाकृत मंदिर स्थापत्यः इस शैली के वास्तुशिल्प के अंतर्गत एक ही पत्थर को काट कर निर्माण कार्य किया जाता है। इस शैली का विकसित रूप ‘महेन्द्र वर्मन’ शैली कहलाया तथा इसका सबसे अच्छा उदाहरण ‘रथपंच’ है। इसमें पांच रथ एक ही पत्थर को काट कर अलग-अलग ढंग से बनाए गए हैं। इसमें द्रौपदी और गणेश रथ को मिलाकर ‘सात पगोडा’ नाम से पुकारते हैं। यह वास्तुकला मुख्यतः दक्षिणी व पश्चिमी भारत में देखने को मिलती है।
(iii) चोल स्थापत्यः चोलों ने द्रविड़ शैली की स्थापत्य परम्परा को पराकाष्ठा पर पहुंचाया। इन्होंने अनेक मंदिरों का निर्माण किया। राजराज प्रथम का तंजोर का शिवमंदिर द्रविड़ शैली का जाज्वल्यमान नमूना है। राजेन्द्र प्रथम द्वारा निर्मित मंदिर चोल वास्तुकला का प्रभावशाली उदाहरण है। उसका विशाल आकार, ठोस पाषाण का विराट लिंग व पाषाण में उत्कीर्ण मनोरम आकृतियां असाधारण विशेषताओं से युक्त हैं।
Question : निम्नलिखित के मुख्य लक्षणों का उल्लेख कीजिएः
(i)देव देवाली
(ii)कला की गांधार शैली
(iii) भारतीय बैले (नृत्य संगीत)
(1994)
Answer : (i) देव देवालीः यह भगवान महावीर द्वारा निर्वाण प्राप्ति के अवसर पर जैनियों द्वारा मनाया जाने वाला प्रसिद्ध त्यौहार है। इसे दीपावली के दसवें दिन के बाद मनाया जाता है तथा पवित्र गिरनार पर्वत पर जैन तीर्थयात्री दर्शन करने जाते हैं।
(ii) कला की गांधार शैलीः यूनानी एवं भारतीय शैलियों से प्रभावित इस मूर्तिकला शैली में भगवान बुद्ध के जीवन और कार्यों का सजीव वर्णन किया गया है। इस शैली का विकास कुषाण शासक कनिष्क के शासनकाल में हुआ।
(iii) भारतीय बैले (नृत्य संगीत): भारतीय भारतीय बैले में कलाकारों द्वारा किसी भी कथानक को हस्तमुद्रा, भाव-संप्रेषण, विशिष्ट संकेतों आदि माध्यमों से व्यक्त किया जाता है। ऐसी नृत्य नाटिका प्रस्तुत करने वालों में प्रमुख कलाकार बिरजू महाराज हैं तथा भारतीय एवं पाश्चात्य शैली से युक्त नृत्य नाटिका प्रस्तुत करने वालों में पं. उदयशंकर और उनके दल का नाम अग्रगण्य है।
Question : निम्नलिखित कहां स्थित हैं और वे किसलिए प्रसिद्ध हैं?
(i) लोथल
(ii)लुम्बिनी
(iii) वेलकन्नी
(1994)
Answer : (i) लोथलः आधुनिक गुजरात राज्य में भोगवा नदी के किनारे बसा हुआ यह स्थल सिंधु सभ्यता के काल में एक महत्वपूर्ण बंदरगाह था। यहां चावल के अवशेष भी प्राप्त हुए हैं।
(ii) लुम्बिनीः वर्तमान में रुम्मिनदेई नाम से विख्यात कपिलवस्तु महात्मा बुद्ध की जन्मस्थली होने के कारण प्रसिद्ध है। यह बौद्ध धर्म के चार तीर्थों में से एक है।
(iii) वेलनकन्नीः नागपट्टनम से 10 कि.मी. की दूरी पर स्थित पुर्तगालियों द्वारा निर्मित वर्जिन मेरी का वेलनकन्नी चर्च धार्मिक सौहार्द्र के कारण चर्चित है। यहां पर हिन्दू भी श्रद्धापूर्वक पूजा करते हैं।
Question : निम्नलिखित की मुख्य विशेषताओं के बारे में बताइएः
(i)मथुरा कला शैली
(ii)बूंदी चित्र शैली
(iii) फतेहपुर सीकरी की मुगल वास्तुकला
(1993)
Answer : (i) मथुरा कला शैलीः यह शैली मूर्तिकला की एक उत्कृष्ट शैली है। मथुरा शैली में शरीर को यथार्थ रूप से दिखाने की बजाय काल्पनिक दिखाने पर अधिक जोर दिया गया है। मुखाकृति में आध्यात्मिक सुख और शांति व्यक्त की गई है। संक्षेप में मथुरा शैली की मूर्तियां यर्थाथवादी न होकर, आदर्शवादी हैं। इस शैली की विषयवस्तु बुद्ध से जुड़ी हुई है।
(ii) बूंदी चित्र शैलीः बूंदी चित्र शैली में भारतीय संस्कृति के प्रेम और समर्पण को दर्शाया गया है। इस शैली का प्रमुख केंद्र कोटा, बूंदी और झालवाड़ा में था। यह मेवाड़ शैली की ही एक स्वतंत्र शाखा थी और इसका काल सत्रहवीं सदी था। इस शैली के प्रमुख विषय नायिका भेद, जंगलों के दृश्य, विभिन्न जंतुओं का चित्रण और आखेट है।
(iii) फतेहपुर सीकरी में मुगल वास्तुकलाः फतेहपुर सीकरी में मुगल वास्तुकला के तहत अकबर का महल उल्लेखनीय है। यहां की सर्वोच्च इमारत बुलंद दरवाजा है, जिसकी ऊंचाई 176 फीट है। यहां की जामा मस्जिद को ‘शान-ए-फतेहपुर’ कहा जाता है। फतेहपुर सीकरी के महलों का निर्माण लाल बलुआ पत्थर से हुआ है। इमारतों में सजावट के लिए छतों और दीवारों में नीले पत्थर का प्रयोग किया गया है। फतेहपुर सीकरी की वास्तुकला में मध्य एशिया की वास्तुकला का प्रभाव है।
Question : निम्नलिखित के प्रमुख लक्षणों के बारे में लिखिए-
(i)चोल वास्तुकला
(ii)बैसाखी
(iii) नव-कला आंदोलन
(1999)
Answer : (i)10वीं-11वीं सदी में चोल वास्तुकला का विकास हुआ, जिसके तहत वृहदेश्वर मंदिर (तंजौर) तथा विजयालय चोलेश्वर के मंदिर आते हैं। ये मंदिर द्रविड़ कला से प्रभावित हैं और इनमें सुंदर चित्रकारी भी की गई है।
(ii) बैसाखी पर्व मुख्यतः पंजाब में सिखों द्वारा फसल की कटाई के अवसर पर मनाया जाता है। इस मौके पर वे सज-धज कर भांगड़ा नृत्य करते हैं और जश्न मनाते हैं।
(iii) नव-कला आंदोलन भारतीय चित्रकला शैली के यूरोपियन प्रभाव से उत्पनन प्रभाव को माना जाता है। इसके प्रणेता अवनीन्द्रनाथ टैगोर, नंदलाल बोस तथा रवीन्द्रनाथ टैगोर रहे हैं।
Question : निम्नलिखित के मुख्य लक्षणों का उल्लेख कीजिएः
(i)चैत्य
(ii)विजयनगर कला
(iii) यक्षगान
(iv) खयाल
(1997)
Answer : (i) चैत्यः बौद्धों के मंदिर, जहां एक बड़ा हॉल होता था, जिसमें अनेक खंभे होते थे, चैत्य कहलाते थे। अत्यन्त प्रसिद्ध चैत्य पश्चिमी दक्कन में कार्ले का है।
(ii) विजयनगर कलाः इसकी शैली द्रविड़ है। इस शैली के मौलिक तत्व निम्नलिखित हैं-
(iii) यक्षगानः कर्नाटक का नाटकीय रूप है। शरीर की गति मानव की आधारभूत भावनाओं को प्रदर्शित करती है। इस नृत्य में पैरों का अधिक कार्य है। इस नृत्य की विषयवस्तु धार्मिक है।
(iv) खयालः हिन्दुस्तानी संगीत गायन की सर्वाधिक लोकप्रिय शैली ख्याल है। इस शैली के आविष्कारक है 15वीं शती में जौनपुर के सुल्तान हुसैन शाह शर्की को माना गया है। खयाल गायन की चार प्रमुख शैलियां हैं, जिन्हें घराना कहा जाता है-
Question : निम्नलिखित की प्रमुख विशेषताएं बताइएः
(i)सिंधु घाटी सभ्यता में नगर योजना
(ii)गुहा शैलकृत स्थापत्यकला
(iii) अहमदिया आन्दोलन
(iv) महायान बौद्ध धर्म
(1996)
Answer : (i) सिंधु घाटी सभ्यता में नगर नियोजन जाल पद्धति में नियोजित की गई थी, जिसका नाम ऑक्सफोर्ड सर्कस था। नगर प्रायः नदियों के किनारे बसाए जाते थे। चौड़ी सड़कें समकोण पर मिलती थीं तथा नगर दुर्गों से घिरे होते थे।
(ii) गुहा शैलकृत स्थापत्य कला पूर्व मौर्यकाल में आरंभ हुई और पूर्व मध्यकाल तक विकसित होती रही। आरंभिक काल में चैत्य एवं विहार बनाए गए तथा बाद में पल्लवों के रथ मंदिर, एलोरा का कैलाश मंदिर, दशावतार मंदिर आदि बनाए गए। अशोक ने आजीवक संप्रदाय के लिए भी गुहा स्थापत्य कला को प्रश्रय दिया।
(iii) अहमदिया आन्दोलन की शुरूआत पंजाब में कादियां नामक स्थान पर मिर्जा गुलाम अहमद ने 1889 में की थी। इस आन्दोलन का उद्देश्य मुस्लिमों को इस्लाम के सच्चे स्वरूप को बताना तथा मुस्लिम समाज में आधुनिक औद्योगिक एवं तकनीकी प्रगति को धार्मिक मान्यता देना था।
(iv) महायान बौद्ध धर्म का विकास चौथी बौद्ध संगीति के दौरान हुआ। इस शाखा में गौतम बुद्ध की मूर्तियां बनाकर पूजा की जाने लगीं तथा संस्कृत भाषा का प्रयोग किया जाने लगा। बोधिसत्व की अवधारणा भी महायान शाखा से ही संबद्ध है।
Question : निम्नलिखित कहां स्थित हैं और उन्हें हाल ही में समाचार-पत्रों में स्थान कैसे मिला?
(i) तिरुवनन्तपुरम
(ii)चरार-ए-शरीफ
(1995)
Answer : (i) तिरुवनन्तपुरमः यह केरल राज्य की राजधानी है। 13 नवंबर, 1994 को यहां मालद्वीव की दो महिला जासूसों को भारतीय अन्तरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के अधिष्ठानों की जासूसी करने के आरोप में गिरफ्रतार किया गया था।
(ii) चरार-ए-शरीफः जम्मू एवं कश्मीर में श्रीनगर स्थित सूफी सन्त शेख नूरुद्दीन की दरगाह चरार-ए-शरीफ को भाड़े के उग्रवादियों द्वारा विस्फोट से उड़ा दिया गया था। हिन्दू-मुस्लिम एकता की प्रतीक यह दरगाह अपनी उत्कृष्ट वास्तुकला तथा नक्कासी के लिए भी प्रसिद्ध थी।