Question : निम्नलिखित की मुख्य विशेषताओं के बारे में लिखिएः
(i)वास्तुकला का चन्देल स्कूल
(ii)मणिपुरी नृत्य
(iii) वैशाखी
(iv) जन्माष्टमी
(1991)
Answer : (i) वास्तुकला का चन्देल स्कूलः चंदेलों ने स्थापत्य कला की एक भव्य शैली का विकास किया। इसमें वास्तुकला का चन्देल स्कूल प्रमुख है। चंदेलकालीन कला में उत्कृष्ट स्त्रियोचित अलंकरण देखने को मिलते हैं। बुंदेलखण्ड के चंदेल राजाओं ने मंदिरों,विशेषकर खजुराहो के मंदिरों का निर्माण कराया। यहां शिव एवं विष्णु के भव्य मंदिर हैं साथ ही जैन धर्मगुरुओं से संबंधित आराध्य स्थल भी वास्तुकला की उत्कृष्टता को व्यक्त करते हैं। इनमें कंडारिया महादेव मंदिर प्रसिद्ध है।
(ii) मणिपुरी नृत्यः मणिपुरी शास्त्रीय नृत्य उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में स्थित मणिपुर घाटी में प्रचलित एक प्राचीन नृत्य शैली है। मणिपुरी नृत्य मानव की आध्यात्मिक चेतना का प्रतीक है। इसमें आदि पुरुष व प्रकृति द्वारा सृष्टि की रचना की कहानी पौराणिक कथानकों के माध्यम से कही जाती है। कालांतर में इस नृत्य के साथ रास लीला की कथा भी जुड़ गई। यह लीला जीवात्मा तथा परमात्मा के साथ गहरा संबंध प्रकट करती है। इस नृत्य में शैव धर्म व तांत्रिक उपासना के प्रभाव भी देखने को मिलते हैं।
(iii) वैशाखीः पंजाब में वैशाखी का दिन सिखों के लिए महत्वपूर्ण दिन है। इसी दिन गुरु गोविन्द सिंह ने ‘खालसा’ की नींव रखी थी। वैशाखी, वैशाख मास की पूर्णिमा के दिन मनायी जाती है। किसान इस पर्व को हर्षोल्लास से मनाते हैं क्योंकि उनकी फसल इस समय कटाई योग्य हो जाती है।
(iv) जन्माष्टमीः जन्माष्टमी भगवान कृष्ण के जन्मदिन के रूप में मनायी जाती है। यह पर्व भाद्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है। यह उत्सव उनके जन्मस्थान मथुरा के साथ-साथ पूरे भारत में मनाया जाता है। कृष्ण को ईश्वर के दस अवतारों में से एक माना गया है।
Question : निम्नांकित के प्रमुख लक्षण बताइए?
(i)कर्नाटक संगीत
(ii)किशनगढ़ चित्रकला शैली
(iii) नगर स्थापत्य शैली
(iv) अवनीन्द्रनाथ ठाकुर का नव्यकला आन्दोलन
(1989)
Answer : (i) कर्नाटक संगीतः कर्नाटक संगीत दक्षिण भारत में विकसित हुआ तथा इसका मुख्य आधार भक्ति संगीत रहा है। जब ‘कीर्ति’ के विकास को पूरा कर लिया गया, तो ‘सानिली’ ‘जंदाई’ ‘धातु’ एवं ‘गीतम’ जैसे संगीत अभ्यासों का उदय हुआ। ताल पक्कम अझणमाचार्य शैली पल्लवी, अनुपल्लवी आदि कर्नाटक संगीत शैली की भिन्न-भिन्न शैलियां हैं।
(ii) किशनगढ़ चित्रकला शैलीः किशनगढ़ शैली राजस्थानी चित्र शैली का एक उपभाग है। आरंभिक चित्र दरबार और शिकार के बने हैं तथा बाद में राधा-कृष्ण के चित्र बने। नागरीदास की प्रेयसी ‘वणी-ठणी’ इस शैली की प्रसिद्ध कृति है। कृष्ण लीला, गोपियों की क्रीड़ा इत्यादि प्रमुख विषय हैं। नाक, चक्षु एवं पैरों का चित्रंकन इसकी विशेषता है और ‘चांदनी रात की संगीत गोष्ठी’ दरबार संग्रह का उत्तम चित्र है।
(iii) नागर स्थापत्य शैलीः नागर शैली की वास्तुकला की मुख्य विशेषताएं हैं - मंदिर वर्गाकार या चौपहले रूप में बने हैं। विस्तार, उत्तर भारत में हिमालय व विंध्य पर्वत से घिरा क्षेत्र। साधारणतः मध्य प्रदेश इसका केंद्र रहा है।
(iv) अवनींद्रनाथ ठाकुर का नव्य कला आन्दोलनः अवनींद्रनाथ टैगोर का नव्य कला आन्दोलन इस बात पर बल देता था कि पुराने एवं मध्य युग की भारतीय कला की अच्छी बातों की खोज की जाए तथा चित्रकला को आधुनिक परिवेश में पुर्नजीवित किया जाए। उन्होंने यूरोप, जापान व चीन की कला के सम्मिश्रण से एक नवीन भारतीय शैली को जन्म दिया, जिसे बांग्ला शैली कहा गया।
Question : निम्नलिखित के प्रमुख लक्षण बताइएः
(i)शास्त्रीय संगीत
(ii)भरतनाट्यम
(iii) शब-ए-बरात
(iv) कांगड़ा चित्रकला
(1990)
Answer : (i) शास्त्रीय संगीतः संगीत जगत में जो संगीत धारा अविकृत भाव से, एक से अधिक शताब्दी से, विभिन्न घरानों के माध्यम से आधुनिक काल तक चली आ रही है, वही शास्त्रीय संगीत है। ध्रुपद, खयाल, ठुमरी और टप्पा शास्त्रीय संगीत की श्रेणी में सम्मिलित हैं। भारत का संगीत-हिन्दुस्तानी संगीत और कर्नाटक संगीत नामक दो मुख्य धाराओं में विभक्त है। दक्षिण भारत में कर्नाटक पद्धति का संगीत तथा अन्य भागों में हिन्दुस्तानी पद्धति का संगीत प्रचलित है।
(ii) भरतनाट्यमः दक्षिण भारत का प्रमुख नृत्य, जिसमें तांडव का बलिष्ठ भाव विद्यमान है। इसका स्रोत भरत मुनी का नाट्यशास्त्र है। यह गीतमय काव्य परम्पराबद्ध तथा शैलीनिष्ठ है। इसका रूप तंजौर चतुष्टय-पोन्नैया पिल्ले और बन्धुओं ने तैयार किया। पूर्व में इसे ‘आट्टम’ व ‘सदिर’ कहा जाता था। यह नृत्य मंदिरों में देवदासियों द्वारा किया जाता था। भरतनाट्यम के साथ मृदंग और मादल बजाया जाता है। इसमें देलाग, दिगितक, ताधिकित आदि बोलों का प्रयोग होता है। तंजौर, कांचीपुरम व पड़नलूर इसके तीन प्रमुख घराने हैं।
(iii) शब-ए-बरातः मुस्लिम वर्ष के आठवें माह ‘शबन’ में 13वें व 14वें दिन रात्रि में मनाया जाने वाला त्यौहार, जिसमें पूरी रात जागरण होता है व मिठाई बांटी जाती है। विश्वास किया जाता है कि इस रात्रि को अगले वर्ष के लिए सभी मानवों का भविष्य स्वर्ग में पंजीकृत किया जाता है। पैगम्बर, उनकी पुत्री फातिमा व उसके पति अली के नाम पर भोजन पर आर्शीवाद (फातिहा) पढ़े जाते हैं।
(iv) कांगड़ा चित्रकलाः कांगड़ा चित्रकला शैली का जन्म 18वीं शताब्दी के अंत में हुआ। इसमें मुगल और राजस्थानी दोनों शैलियों का सम्मिश्रण है। मुख्य विषय ‘प्रेम’ है जो लय, शोभा तथा सौंदर्य के साथ दर्शाया गया है। सोने व चांदी के रंगों का प्रयोग अत्यन्त सुचारु ढंग से हुआ है। राधा की विरह वेदना इस शैली के चित्रकारों के चिन्तन का विषय रहा है। इसका प्रमुख केंद्र गुलेर, नूरपुर व तीरा सुजानपुर है।
Question : निम्नलिखित की प्रमुख विशेषताएं बताइएः
(i)शबे बरात
(ii)गणेश चतुर्थी
(iii) द्रविड़ वास्तुकला
(1995)
Answer : (i) शबे बरातः यह मुसलमानों का एक त्योहार है, जो शबन (मुसलमानों का आठवां माह) के तेरहवीं व चौदहवीं रात को मनाया जाता है। इसे तौलुत-उल-बरात भी कहते हैं। इस रात सभी जीवित प्राणियों के आगामी वर्ष का भाग्य लिखा जाता है। इस दिन अच्छे पकवान बनाए जाते हैं और जो उस वर्ष मरे हैं उनके घरों को यह पकवान व मिठाइयां भेजी जाती हैं। गुजरात के शिया मुसलमान इस दिन दीप जलाते हैं और पटाखे छोड़ते हैं। मोहम्मद साहब, उनकी पुत्री फातिमा और उसके पति अली के नाम पर इस दिन भोजन पर फातिहा पढ़ा जाता है।
(ii) गणेश चतुर्थीः यह त्यौहार भाद्र शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को गणेश के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। गणेश चतुर्थी गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान, मध्य प्रदेश तथा उत्तर प्रदेश के कुछ भागों में हिन्दुओं का प्रमुख त्यौहार है।
(iii) द्रविड़ वास्तुकलाः इस कला का विकास छठी से लेकर बारहवीं शताब्दी तक पल्लव, चालुक्य और चोल शासकों के प्रयासों के परिणामस्वरूप दक्षिण भारत में हुआ। इस वास्तुकला के अन्तर्गत निर्मित मंदिरों के शिखर आयताकार कटे हुए पिरामिड की आकृति के होते थे।