Question : “भारत में संघवाद प्रशासनिक सुविधा पर नहीं अपितु सिद्धांतों पर आधारित है।” उपर्युक्त कथन के प्रकाश में भारत को सहकारी और प्रतिस्पर्धात्मक संघवाद के आधार पर रूपांतरित करने के विचार (Vision) का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें।
Answer : उत्तरः पिछले 68 वर्षों में जनांकिकीय स्तर पर भारत आश्चर्यजनक रूप से बदल गया है। इसी के साथ भारत की जनसंख्या बढ़कर 130 करोड़ हो गयी है। विकास साक्षरता और संवाद के बढ़ते स्तर के साथ जनता की आकांक्षाएं भी बढ़ गई हैं जिसने शासन प्रणाली में नवाचार और परिवर्तन को अपरिहार्य कर दिया है।
Question : संघ तथा राज्यों के मध्य संबंध पूरे शरीर और उसके अंगों के बीच संबंध है। पूरे शरीर को स्वस्थ रहने हेतु यह आवश्यक है कि इसके अंग मजबूत हों। इस परिप्रेक्ष्य में संघ तथा राज्यों के मध्य संबंधों की तथा सहकारी संघवाद में सुधार हेतु वांछनीय प्रक्रियाओं की व्याख्या करें।
Answer : उत्तरः संघ तथा राज्यों के संबंधों को तीन भागों में बाँटा जा सकता है- विधायिक, कार्यपालिक (प्रशासनिक) तथा वित्तीय संबंध। भारतीय संविधान के भाग-11 में केंद्र-राज्यों के संबंधों के बारे में बताया गया है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 245-255 विधायिका संबंधों को बताते हैं।
संघीय सहकारिता वृद्धि हेतु
Question : ‘‘किसी राज्य का राज्यपाल राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता है तथा वह यह पद ‘‘राष्ट्रपति के प्रसादपर्यन्त’’ धारण करता है। ‘‘राष्ट्रपति के प्रसादपर्यन्त’’ से क्या आशय है? विभिन्न समितियों द्वारा राज्यपालों को कार्यकाल की सुरक्षा प्रदान करने हेतु दिए गए संस्तुतियों की भी चर्चा करें।
Answer : उत्तरः अनुच्छेद 156(1) के तहत राज्यपाल राष्ट्रपति के प्रसादप्रर्यन्त पद धारण करता है। अतः राष्ट्रपति कभी भी बिना कारण बताए राज्यपाल को पदच्युत कर सकता है। इस अवधारणा का विकास इंग्लैंड में हुआ था।
Question : मंत्रिपरिषद के संघटन तथा कार्यकरण की तथा बहु-दलीय सरकार के अंतर्गत प्रधानमंत्री की भूमिका की व्याख्या करें।
Answer : उत्तरः संविधान के द्वारा सरकार को एक संसदीय रूप प्रदान किया गया है, जिसमें कुछ महत्वपूर्ण एकात्मक सुविधाओं के साथ संघीय संरचना है। अनुच्छेद 74(।) के अनुसार राष्ट्रपति की सहायता करने तथा उसे सलाह देने के लिए एक मंत्रिपरिषद होगा जिसका प्रमुख प्रधानमंत्री होगा तथा राष्ट्रपति इस मंत्रिपरिषद की सलाह के अनुसार अपने कार्यों का निष्पादन करेगा। इस प्रकार वास्तविक शक्ति मंत्रिपरिषद में निहित हैं, जिसका प्रमुख प्रधानमंत्री होता है।
मंत्रिपरिषद् की सलाह पर राष्ट्रपति
गठबंधन में प्रधानमंत्री की भूमिका
Question : सीमित शक्ति का उपहार उस शक्ति के प्रयोग के द्वारा सीमित शक्ति को असीमित शक्ति में परिवर्तित नहीं कर सकता। उपर्युक्त कथन के प्रकाश में संविधान को संशोधित करने की संसद की संवैधानिक शक्ति की सीमाओं की चर्चा करें।
Answer : उत्तरः संविधान संशोधन वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा राष्ट्र के सर्वोच्च विधि में परिवर्तन किया जाता है। संविधान का भाग 20, अनुच्छेद 368 में संविधान संशोधन की प्रक्रिया का उल्लेख है। यह प्रक्रिया संविधान की पवित्रता की रक्षा करती है तथा संसद के असंवैधानिक कार्यों पर रोक लगाती है।
सीमाएं
Question : भारत में अध्यादेश का प्रावधान आपातकाल स्थिति में विधायन के लिए किया गया है। क्या आप मानते हैं कि सरकार द्वारा अध्यादेश का अत्यधिक उपयोग लोगों के साथ-साथ संसद की इच्छाओं को नष्ट कर रहा है? अपने उत्तर की पुष्टि कीजिए।
Answer : उत्तरः ‘अध्यादेश’ एक अस्थायी विधि है जिसे राष्ट्रपति द्वारा संसद के सत्र में न होने पर जारी किया जाता है। राष्ट्रपति द्वारा अध्यादेश केन्द्रीय मंत्रिमण्डल की सलाह पर निर्गत किया जाता है। ‘अध्यादेश’ सरकार को संसद के सत्र में न होने के दौरान अत्यावश्यक परिस्थिति उत्पन्न होने पर कार्यवाही की शक्ति प्रदान करता है। प्रायः सरकार द्वारा संसद में लंबित विधेयकों को पारित कराने के लिए अध्यादेश निर्गत किया जाता है।
Question : ‘‘संसदीय विशेषाधिकार प्रत्येक सदन द्वारा सामूहिक रूप से अथवा वैयक्तिक रूप से प्राप्त विशेष अधिकार है जिनके बिना वे अपने कर्तव्यों का निर्वहन नहीं कर सकते तथा जो अन्य व्यक्तियों या निकायों द्वारा प्राप्त अधिकारों से आगे हैं।” इस परिप्रेक्ष्य में भारतीय संविधान में दिए गए संसदीय विशेषाधिकारों की चर्चा करें।
Answer : उत्तरः विधायिका को उनके कार्यों एवं दायित्वों को निर्वहन के लिए कुछ विशेष तरह के अधिकार दिए गये हैं। ये विशेष अधिकार संसद के दोनों सदनों एवं राज्य विधायिका के दोनों सदनों को प्राप्त है। इन अधिकारों को सामहिए एवं व्यक्तिगत दोनों रूपों में प्रदान किया गया है।
संसदीय तथा अन्य विशेषाधिकार
सकारात्मक व नकारात्मक पक्ष
Question : ‘‘शक्तियों के पृथक्करण की संकल्पना का कठोर क्रियान्वयन आधुनिक सरकार को असंभव बना देगा।’’ उदाहरण के साथ प्रतिपुष्ट कीजिए।
Answer : उत्तरः अनुच्छेद-50 में कार्यपालिका से न्यायपालिका को पृथक किया गया है। परंतु अभ्यास में हम पाते हैं कि जजों की नियुक्ति में कार्यपालिका न्यायपालिका की ताकत का प्रयोग (अनुच्छेद 124, 126 तथा 127) के तहत करती है। विधायिका (संसद) भी अनुच्छेद 56 के तहत राष्ट्रपति को हटाने में न्यायपालिका के कार्यों का अभ्यास करती है।
Question : भारत के राष्ट्रपति की क्षमादान शक्ति के संदर्भ में कार्यकारी क्षमादान प्रावधानों का विश्लेषण कीजिए
Answer : उत्तरः ‘क्षमादान की शक्ति’ कार्यपालिका को प्रदान की गई अनेक शक्तियों में से एक है। संविधान के अनुच्छेद 72 में राष्ट्रपति को और अनुच्छेद 161 में राज्यपाल को किसी अपराध के लिए सिद्धदोष व्यक्ति के अपराध को क्षमा करने की शक्ति प्रदान की गयी है जिसमें क्षमा, दंडादेश के निलंबन परिहार या लघुकरण की शक्ति प्राप्त है।
Question : दबाव समूह सरकार में नीति निर्माण तथा नीति कार्यान्वयन को विधिक और वैध तरीके से प्रभावित करते हैं तथा कभी-कभी वे अवैध तथा अविधिक तरीके का भी प्रयोग करते हैं। चर्चा करें।
Answer : उत्तरः ‘दबाव समूह’ शब्द का उद्भव संयुक्त राज्य अमेरिका से हुआ है। दबाव समूह उन लोगों का समूह होता है, जो कि संगठित हैं, अपने हितों को सक्रिय रूप से बढ़ावा देते हैं और उनकी प्रतिरक्षा करते हैं।
भारत में दबाव समूह
व्यवसाय समूहः
Question : अनौपचारिक संघ वैयक्तिक संबंधों, सामाजिक नेटवर्क, सामान्य हितों के समुदायों तथा उत्प्रेरणा के भावनात्मक स्रोतों की गतिशीलता से निर्मित होते हैं। इस संदर्भ में लोक-मत के निर्माण में अनौपचारिक संघों की भूमिका की चर्चा करें।
Answer : उत्तरः अनौपचारिक संस्थाओं ने भारत में सुन्दर तरीके से सामाजिकता लामबंदी तथा सामाजिक सक्रियता का कार्य अपने गहन अभियानों तथा प्रभावी तंत्र से किया है।
Question : भारतीय संविधान के भाग IV A के उद्देश्यों और कारणों की व्याख्या कीजिए? क्या आप संविधान के इस संयोजन से सहमत हैं? कारण दीजिए। इसके साथ-साथ इन प्रावधानों को अधिक व्यवहारिक और परिचालन योग्य बनाने हेतु प्रभावी उपाय प्रस्तुत कीजिए।
Answer : उत्तरः मूलतः भारत के संविधान में मूल कर्त्तव्यों का उल्लेख नहीं था। दूसरे शब्दों में, मूल अधिकारों का उपभोग मूल कर्त्तव्यों के सम्यक निर्वहन पर आधारित नहीं थी। 42वें संविधान संशोधन 1976 द्वारा सोवियत प्रारूप पर आधारित ‘मूल कर्त्तव्यों’ को भारतीय संविधान में जोड़ा गया।
Question : भारतीय संविधान की आधारभूत संरचना के सिद्धांत की चर्चा करें। किस प्रकार सर्वोच्च न्यायालय ने इस सिद्धांत का उपयोग कर संसद की शक्तियों को संतुलित किया है?
Answer : उत्तरः 1973 में 13 न्यायाधीशों की उच्चतम न्यायालय की एक पीठ ने केशवानन्द भारती वाद (केस) के फैसले में कहा कि संसद संविधान में संशोधन कर सकती है, परंतु उसके मूल ढांचे में कोई बदलाव या छेड़छाड़ नहीं की जानी चाहिए। (यह 1967 के गोलकनाथ वाद से उल्टा फैसला था जिसमें कहा गया था कि संसद मूल अधिकारों में कोई बदलाव नहीं कर सकती हैं। मूल ढांचे में अनुच्छेद 368 भी शामिल होगा।
Question : एक संविधान केवल मूल्यों एवं दर्शन का कथन नहीं है; यह संस्थागत प्रबंधों में इन मूल्यों के समेकन से संबंधित है। उदाहरण के साथ व्याख्या करें।
Answer : उत्तरः भारतीय संविधान मात्र मूल्यों तथा दर्शन का ब्यौरा न होकर शांतिपूर्ण लोकतान्त्रिक समाज के निर्माण का भी ब्यौरा है। भारतीय संविधान परम्परागत सामाजिक पदसोपानिक व्यवस्था की जगह नवीन स्वतंत्रता, समानता तथा न्यायपूर्ण समाज का पथ प्रदर्शक है। इसमें विविधता तथा अल्पसंख्यकों के अधिकारों (सुप्रीम कोर्ट तथा हाई कोर्ट की रिटों के द्वारा) की रक्षा के प्रावधान है।
Question : भारत तथा दक्षिण अफ्रीका के संविधान के निर्माण की प्रक्रिया के उदाहरण की सहायता से समझाएं कि हमें संविधान की आवश्यकता क्यों है तथा संविधान मानव जाति हेतु क्या करता है?
Answer : उत्तरः संविधान किसी भी देश को चलाने वाला सर्वोच्च कानून होता है। भारत 200 सालों तक अंग्रेजों के अधीन रहा अतः हमारे संविधान निर्माताओं ने अनुभव को ध्यान में रखते हुए संसदीय प्रणाली को अपनाया। अफ्रीका ने भी ऐसा ही किया तथा दोनों देशों को इस प्रक्रिया में लगभग 2 साल लगे।
संविधान की आवश्यकता
Question : एक लोकतंत्र में अंतिम संप्रभुता जनता में निहित होती है। व्याख्या करें।
Answer : उत्तरः भारत एक लोकतांत्रिक देश है जहां अंतिम सत्ता या सम्प्रभुता जनता में निहित है। लोकतंत्र की सटीक एवं सारगर्भित परिभाषा अमेरिकी राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन द्वारा दी गई थी- “जनता का, जनता के द्वारा, जनता के लिए शासन” जो आज भी लोकतंत्र में जनता की सम्प्रभुता को सर्वोपरि बनाती है।
Question : संविधान केवल एक ढांचा या कंकाल है। इसका मांस या रक्त राजनीति की वास्तविक प्रक्रिया द्वारा प्रदान किया जाता है। भारत की वर्तमान राजनीतिक प्रक्रिया कहां तक इस आवश्यकता की पूर्ति करता है?
Answer : उत्तरः कोई भी संविधान किसी भी देश के सर्वोच्च कानूनों का समुच्चय होता है, जिसके अंतर्गत उस देश की शासन व्यवस्था को चलाया जाता है। भारतीय संविधान भी इसी प्रकार का एक लिखित संविधान है जिसमें 450 अनुच्छेद, 22 भाग तथा 12 अनुसूचियां हैं।
Question : भारतीय संविधान भारत में चलने वाले राजनीतिक, आर्थिक एवं सामाजिक आंदोलन की अभिव्यक्ति था। इस कथन से आप कहां तक सहमत हैं?
Answer : उत्तरः भारत प्राचीन काल से ही विविधताओं का देश रहा है। यही विविधता ही संविधान निर्माताओं के मनोविज्ञान को प्रभावित कर रही थी। इसी तथ्य को ध्यान में रखकर संविधान में राजनीतिक, आर्थिक एवं सामाजिक अनुबंध लाए गए।
Question : केंद्र को स्व-प्रायोजित योजनाओं को बढ़ावा देने से दूर रहना चाहिए और राज्यों में उच्चतर शिक्षा संस्थानों को रणनीतिक समर्थन प्रदान करने के उद्देश्य से राष्ट्रीय उच्च शिक्षा अभियान (RUSA) हेतु बजटीय आवंटन बढ़ाने पर ध्यान देना चाहिए। क्या आप सहमत हैं? कारण सहित उत्तर दीजिए।
Answer : उत्तरः सामाजिक-आर्थिक रूपांतरण को प्राप्त करने में शिक्षा मुख्य वाहक है। विश्व ज्ञान अर्थव्यवस्था में अपने जनांकिकीय लाभांश का पूर्ण लाभ प्राप्त करने के लिए इस क्षेत्र पर सतत नीतिगत रूप से ध्यान देने की आवश्यकता है। महत्वपूर्ण रूप से, पिछले कुछ वर्षों में शिक्षा के लिए बजट में धन आवंटन में सतत रूप से वृद्धि देखी गई है।
Question : मृत्युदण्ड सजा के उद्देश्य के खिलाफ है। मृत्युदण्ड पर चल रहे बहस के प्रकाश में कथन पर चर्चा करें।
Answer : उत्तरः समाज में अपराध पर नियंत्रण लगाने के लिए दण्ड का प्रावधान किया गया है। अपराधियों को दण्डित करने के पांच उद्देश्य माने जा सकते हैं, यथाः- कारागार में बंद कोई कैदी समाज में अपराध नहीं कर पाएगा।
Question : जनता केन्द्रित सरकार से आप क्या समझते हैं?
Answer : उत्तरः जनता केन्द्रित सरकार से तात्पर्य ऐसी सरकार से होता है जो जनता की समस्याओं के समाधान के प्रति ईमानदारी से प्रयासरत हो तथा अपने कामकाज को नागरिकों के व्यक्तिगत कल्याण से जोड़ते हुए उनके प्रति उत्तरदायित्व पूर्ण व्यवहार करे।
Question : ‘‘एक सूचित (Informed) नागरिक शासन के उपकरणों पर आवश्यक चौकसी रखने तथा सरकार को शासितों के प्रति अधिक उत्तरदायी बनाने हेतु ज्यादा सशक्त रहता है।’’ सूचना के अधिकार कानून के संदर्भ में कथन की व्याख्या करें तथा इससे जुड़े विभिन्न संरचनात्मक, प्रक्रियात्मक तथा संचालनात्मक समस्याओं को दूर करने हेतु कदमों की चर्चा करें।
Answer : उत्तरः सूचना का अधिकार (RTI) 2005 से प्रभाव में आया तब से इसने नागरिकों के हाथ में सरकारी विभागों में पारदर्शिता लाने वाले मजबूत अस्त्र के रूप में कार्य किया है।
Question : “पुराने और अप्रचलित कानून जो कि आज भी कानूनी संहिताओं का हिस्सा बने हुए हैं, खराब निष्पादन का कारण बनते हैं तथा भ्रष्टाचार तथा गैर-कानूनी कार्यों को बढ़ावा देते हैं साथ ही विधानों का उद्देश्य भी इससे पूरा नहीं हो पाता”। चर्चा करें।
Answer : उत्तरः 20वां विधि आयोग ए.पी. शाह की अध्यक्षता में नियुक्त किया गया। आयोग ने ‘‘कानूनों का सरल तथा कारगर व्यवस्थापन’’ नामक एक रिपोर्ट तैयार की जिसमें बताया गया कि वर्तमान 1145 कानून या विनियम पुराने या अनावश्यक हो गए हैं, जिन्हें हटाने या संशोधित किए जाने की आवश्यकता है। जैसे-ब्रिटिश राज में बनाया गया हिन्दू विधवा पुर्नविवाह एक्ट आज अप्रांसगिक हो चुका है।
अतः यह आवश्यक है कि गैर-जरूरी तथा अप्रचलित कानूनों को हटा दिया जाए।
उदाहरणार्थः AFSPA (जो अनैतिक सुरक्षा कर्मियों द्वारा बलात्कार तथा हत्या हेतु जाना गया)
Question : ‘‘न्यूनतम सरकार व अधिकतम शासन’’ वर्तमान भारत की वास्तविकताओं और जटिलताओं के प्रबंधन के लिए सबसे अच्छा दृष्टिकोण है। विस्तारपूर्वक बताइए।
Answer : उत्तरः न्यूनतम सरकार अधिकतम शासन के अंतर्गत सरकार का ध्यान नागरिकों के प्रति मित्रवत् और जवाबदेह शासन देने पर है। इसके लिए कई कदम उठाए जा रहे हैं। इनमें प्रक्रिया का सरलीकरण, पुराने हो गए नियम/कानूनों की पहचान तथा उन्हें बदलना या समाप्त करना, विभिन्न विभागों की पहचान तथा उन्हें एकीकृत करना एवं ऐसे विभागों एवं मंत्रालयों को समाप्त करना जिनमें कार्यों का दोहराव पाया जाता है।
Question : सिटिजन चार्टर एक ऐसा उपकरण है जो किसी संगठन को पारदर्शी, उत्तरदायी तथा नागरिक-मित्र बनाने का प्रयास करता है। चर्चा करें।
Answer : उत्तरः सन् 1991 में सर्वप्रथम ब्रिटेन में ‘नागरिक अधिकार पत्र’ की शुरुआत हुई। इन नागरिक अधिकार पत्र में प्रशासनिक कार्यालय या संगठन द्वारा उन नियमों, कानूनों, प्रक्रियाओं तथा अधिकारों का वर्णन होता है, जो जनता या उपभोक्ता के हितों के संवर्द्धन के लिए होते हैं।
अर्थ एवं विशेषताएँ
नागरिक अधिकार-पत्र की मुख्य विशेषताएँ इस प्रकार हैं-
Question : “उत्तम शासन समाज के आधारभूत मूल्यों को समग्र रूप से पहचानना तथा इन मूल्यों को पूरा करना है।” टिप्पणी करें।
Answer : उत्तरः उत्तम शासन या सुशासन का अर्थ अच्छी नीति का निर्माण और उनका कुशल कार्यान्वयन होता है। किसी भी उत्तम नीति का निर्माण तभी किया जा सकता है, जब उसमें समाज के आधारभूत मूल्यों को समाहित किया जाए और उनको पूर्ण किया जाए।
Question : एक कुशल पारदर्शी ई-शासन जिसमें अबाध पहुंच तथा अंर्त-विभागीय बाधाओं को दूर करता हुआ सुरक्षित तथा विश्वनीय सूचना प्रवाह हो तथा जो नागरिकों को निष्पक्ष सूचना प्रदान करे, समय की मांग है। टिप्पणी करें।
Answer : उत्तरः ई-शासन से तात्पर्य प्रशासन में सूचना प्रौद्योगिकी का समन्वित प्रयोग होता है अर्थात सरकार के समस्त कार्यों में सूचना प्रौद्योगिकी का अनुप्रयोग ई-शासन कहलाता है। इसी प्रकार जब जनता द्वारा कम्प्यूटर नेटवर्क का प्रयोग करते हुए अपनी पसंद की सरकार चुनी जाती है तो इसे ई-लोकतंत्र कहा जाता है।
S = Small (न्यूनतम सरकार अधिकतम शासन)
M = Moral (प्रशासन में नैतिकता)
A = Accountable (जवाबदेह)
R = Responsive (उत्तरदायी)
T = Transparent (पारदर्शी)
Question : ‘‘व्हिसिल ब्लोअर संरक्षण अधिनियम 2014 भ्रष्टाचार पर नियंत्रण के लिए सार्वजनिक भागीदारी बढ़ाने में सहायक होगा।’’ इसके अभिलक्षणों की चर्चा कीजिए।
Answer : उत्तरः व्हिसिल ब्लोअर का आशय ऐसे व्यक्ति से है, जो विभाग की अनियमितताओं को प्रकट करता है। यह विभाग में कमजोरियों को दूर करने और सुधार करने का अवसर देता है। व्हिसिल ब्लोअर संरक्षण विधेयक, 2014 भ्रष्टाचार को नियंत्रित करने के पवित्र उद्देश्य से बनाया गया कानून है। इसमें निहित इसके अभिलक्षणों के कारण इसे सूचना का अधिकार का पूरक माना जा रहा है। हाल ही में राष्ट्रीय सुरक्षा की चिंताओं के मद्देनजर सरकार द्वारा इसमें संशोधन हेतु विधेयक लाया गया है।
व्हिसिल ब्लोअर संरक्षण संशोधन विधेयक 2014 के प्रमुख अभिलक्षण
Question : धर्मनिरपेक्षता से आप क्या समझते हैं? भारतीय धर्मनिरपेक्षता यूरोपीय धर्मनिरपेक्षता से किस स्वरूप में अलग है? साथ ही, भारतीय धर्मनिरपेक्ष अवधारणा की प्रमुख लक्षणों को रेखांकित कीजिए।
Answer : उत्तरः धर्मनिरपेक्षता वह सिद्धांत या विचारधारा है, जो तर्क-बुद्धिवाद के प्रसार द्वारा धर्म के अतार्किक एवं अवैज्ञानिक प्रभावों के उन्मूलन पर बल देता है।
भारतीय धर्मनिरपेक्षता के लक्षण