एक राष्ट्र, एक चुनाव
एक राष्ट्र, एक चुनाव का विचार एक ऐसी प्रणाली की परिकल्पना करता है जहां सभी राज्य विधानसभाओं और लोकसभा के चुनाव एक साथ होते है। इसमें भारतीय चुनाव चक्र का पुनर्गठन इस तरह से किया जाता है कि सभी राज्यों और केंद्र के चुनाव एक साथ होते है।
एक राष्ट्र, एक चुनाव का इतिहास
भारत में एक साथ चुनाव कराने की परंपरा वर्ष 1967 के आम चुनाव तक जारी रही। 1968 में कुछ राज्य विधानसभाओं के समय से पहले भंग होने के कारण यह परंपरा बाधित हो गई। 1967 के बाद से ही लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के चुनाव ....
क्या आप और अधिक पढ़ना चाहते हैं?
तो सदस्यता ग्रहण करें
इस अंक की सभी सामग्रियों को विस्तार से पढ़ने के लिए खरीदें |
पूर्व सदस्य? लॉग इन करें
वार्षिक सदस्यता लें
सिविल सर्विसेज़ क्रॉनिकल के वार्षिक सदस्य पत्रिका की मासिक सामग्री के साथ-साथ क्रॉनिकल पत्रिका आर्काइव्स पढ़ सकते हैं |
पाठक क्रॉनिकल पत्रिका आर्काइव्स के रूप में सिविल सर्विसेज़ क्रॉनिकल मासिक अंक के विगत 6 माह से पूर्व की सभी सामग्रियों का विषयवार अध्ययन कर सकते हैं |
संबंधित सामग्री
- 1 लोक सेवा में मूल्यों का संकट
- 2 भारत में लोक सेवा मूल्यों की स्थिति
- 3 लोक सेवा में मूल्यों का विकास
- 4 लोक सेवा मूल्यों के समक्ष चुनौतियां
- 5 मूल्यों का संघर्ष
- 6 लोक सेवा के लिए महत्वपूर्ण मूल्य
- 7 लोक सेवा में मूल्य सुशासन का आधार
- 8 ग्रामीण विकास में पंचायतीराज संस्थानों की भूमिका को बढ़ाने वाली पहलें
- 9 स्थानीय स्वशासन से संबंधित मुद्दे
- 10 स्वास्थ्य प्रबंधन में भूमिकाः कोविड-19 प्रबंधन एवं टीकाकरण