शांति मित्रता और सहयोग पर संधि

इस संधि को वर्ष 1971 में हस्ताक्षरित किया गया था, जिसकी 50वीं वर्षगांठ 2021 में मनाई गई। इसमें पारस्परिक रणनीतिक सहयोग निर्दिष्ट किया गया था। सोवियत संघ के विघटन के बाद इसे राष्ट्रपति के दौरान भारत-रूस मैत्री और सहयोग की 20 वर्षीय संधि द्वारा प्रतिस्थापित किया गया था।

  • इस संधि के तहत दोनों देशों ने एक दुसरे के पक्ष की स्वतंत्रता, संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के सम्मान की प्रतिबद्धता कायम की
  • यह संधि उपनिवेशवाद का विरोधी रही है।
  • इसका उद्देश्य एक दूसरे के मध्य नियमित सम्पर्क को बनाये रखना तथा दोनों देशों के हितों को प्रभावित करने वाले मुद्दे पर बैठक करना है।
  • यह संधि दोनों पक्षों को किसी तीसरे पक्ष को सहायता न देने हेतु बाध्य करती है तथा समानता, पारस्परिक लाभ और मोस्ट फेवेर्ड नेशन व्यवहार के सिद्धांत के आधार पर आर्थिक वैज्ञानिक और तकनीकी क्षेत्रों में आपसी सहयोग को मजबूत और विस्तारित करती है।

संबंधों का महत्व

रक्षा सहयोगः दोनों देशों द्वारा अगले दशक वर्ष 2021 से 2031 तक के एक सैन्य प्रौद्योगिकी सहयोग के लिये एक समझौते पर भी हस्ताक्षर किया गया।

  • दोनों देशों द्वारा सैन्य और सैन्य तकनीकी सहयोग (IRIGC-M-MTC) पर 20वें भारत-रूस अंतर-सरकारी आयोग के प्रोटोकॉल पर भी हस्ताक्षर किया गया।
  • भारत रूस सम्बन्धों का महत्व रक्षा सहयोग के क्षेत्र में है। दोनों देशो के मध्य संचालित कुछ प्रमुख रक्षा सहयोग कार्यक्रम जैसे ब्रह्मोस क्रूज मिसाईल, सुखोई एसयू 30 तथा एस 400 जैसे रक्षा उपकरण महत्वपूर्ण है।
  • साल 2020 तक भारतीय फौज में रूसी हथियार और उपकरणों की हिस्सेदारी करीब 60 फीसदी थी। हालांकि, भारत तेजी से सैन्य उपकरणों के लिए कई दूसरे देशों से संपर्क कर रहा है लेकिन रूस अभी भी भारत का मजबूत साझेदार बना हुआ है।

ऊर्जा क्षेत्रः दोनों देशों के बीच रिश्तों को मजबूत करने का दूसरा अहम क्षेत्र ऊर्जा है। इसमें सिर्फ हाइड्रोकार्बन (तेल और गैस) ही नहीं शामिल है, बल्कि परमाणु ऊर्जा भी शामिल हैं। भारत गैस रूस से आयात करता है भारत का लक्ष्य आने वाले पांच सालों में रूस से तेल के आयात को मौजूदा 1 फीसदी से 4 से 5 फीसदी बढ़ाना है। इसके अतिरिक्त पेट्रोकेमिकल भी एक क्षेत्र है जिसे लेकर पारादीप क्रैकर प्लांट में रूसी निवेश और आर्कटिक में आईएनजी-2 को लेकर भारतीय निवेश की संभावनाएं तलाशी जा रही हैं।

आर्थिकः भारत-रूस का वार्षिक व्यापार मात्र 10 बिलियन डॉलर का है, जबकि चीन के साथ रूस का वार्षिक व्यापार 100 बिलियन डॉलर से कुछ मूल्य का ही है। दूसरी ओर, भारत का अमेरिका और चीन के साथ माल का व्यापार 100 बिलियन डॉलर के स्तर पर है।

तकनीकीः दोनों देशों के बीच विज्ञान और तकनीकी सहयोग के क्षेत्र में एक ज्वाइंट कमिशन स्थापित करने का प्रस्ताव है। इसमें क्वान्टम, नैनोटेक्नोलॉजी, साइबर, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, रोबोटिक्स, स्पेस और बायो-टेक्नोलॉजी, फार्मास्यूटिकल, डिजिटल फाइनेंस, रसायन और सेरामिक्स के क्षेत्र शामिल होंगे।

समकालिन मुद्दे

  • यूक्रेन के मुद्दे पर भारत का रुख और रूस की प्रतिक्रिया।
  • चीन और रूस के मध्य बढ़ता सहयोग तथा रूस यूक्रेन चीन का खुल कर रूस के समर्थन में आना दोनों देशों को और साथ लाता है। रूस द्वारा चीन के वन बेल्ट वन रोड पहल का समर्थन किये जाने से भारत की चिंता का बढ़ना।
  • रूस और चीन के मध्य सीमा पार पाइपलाइन जिसे पवार ऑफ सायबेरिया कहा गया का आरम्भ किया जाना।
  • भारत - अमेरिका के मध्य बढती नजदीकी।
  • रक्षा क्षेत्र में इजरायल और अमेरिका के साथ भारत का बढ़ता व्यापार।
  • भारत तथा अमेरिका के मध्य हाल में किये गए प्रमुख रक्षा समझौते।
  • रूस का पाकिस्तान के प्रति बदलता रुख तथा रूस द्वारा पाकिस्तान पर आरोपित हथियारों के व्यापार प्रतिबंधों को हटाना जो भारत के लिए चिंता का कारण है।
  • रूस का अफगानिस्तान में तालिबान का पक्षधर होना।
  • रूस ‘क्वाड’ (Quad) को ‘एशियाई नाटो’ (Asian NATO) की तरह देखता है और मानता है कि एशिया में ऐसे सैन्य गठबंधन के प्रतिकूल परिणाम होंगे।
  • इंडो पैसिफिक क्षेत्र में रूस, अमेरिका के चलते भारत पर भरोसा नहीं कर सकता है और भारत को यह लगता है कि रूस इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में वही मानता आ रहा है जो उसे चीन बताता है, यह एक बड़ी चुनौती है, जिसे दोनों देशों के बीच चर्चा कर खत्म किया जाना चाहिए।
  • यह सभी मुद्दे वर्तमान में दोनों देशों के मध्य नई चुनौतियों को उत्पन्न कर रहे है, जिसका समाधान भारत के वैश्विक और सामरिक हितों को दूरगामी रूप से प्रभावित करेगा।