भारत में सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020

इसके अनुसार फ्सामाजिक सुरक्षा से किसी कर्मचारी, असंगठित कर्मकार, गिग कर्मकार और प्लेटफॉर्म कर्मकार की स्वास्थ्य देखभाल तक पहुंच सुनिश्चित करने के लिए और इस संहिता के अधीन प्रतिष्ठापित अधिकारों एवं लागू योजनाओं के माध्यम से विशिष्टतया वृद्धावस्था, बेरोजगारी, रुग्णता, अशक्तता, कार्य-क्षति, प्रसूति या जीविका अर्जक की हानि के मामलों में आय सुरक्षा प्रदान करने के लिए उपलब्ध संरक्षण के उपाए अभिप्रेत हैं।य्

समाजिक सुरक्षा संहिता, 2020 के प्रमुख उपबंध

  • असंगठित कामगारों, गिग श्रमिकों और प्लेटफॉर्म श्रमिकों के पंजीकरण का प्रावधान।
  • यह संघ और राज्य सरकारों को इन तीनों श्रेणियों के श्रमिकों के लिए सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने हेतु कल्याणकारी
  • योजनाओं को अभिकल्पित करने पर विचार करने का निर्देश देती है।
  • श्रमिकों के लिए योजनाओं की अनुशंसा करने हेतु राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय सामाजिक सुरक्षा बोर्डों के गठन को निर्धारित करती है।
  • ठेकेदारों के माध्यम से नियोजित श्रमिकों को शामिल करने हेतु कर्मचारियों और दूसरे राज्य के स्व-नियोजित कर्मकारों को सम्मिलित करने हेतु फ्अंतरराज्यीय प्रवासी कर्मकारोंय् की परिभाषा का विस्तार करती है।
  • विवादों पर निर्णय लेने के लिए निरीक्षक-सह-सुविधाकर्ताओं (Inspector- cum-Facilitators) और एक अर्ध-न्यायिक अपीलीय प्राधिकारी की नियुक्ति का प्रावधान करती है।
  • यह जननी सुरक्षा योजना, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना (IGNOAPS) और आम आदमी बीमा योजना (AABY) जैसी योजनाओं को अपने अंतर्गत शामिल करती है।
  • सरकार से वस्तु रूप में या नकद में लाभ प्राप्त करने के लिए सभी श्रमिकों हेतु आधार आधारित पंजीकरण अनिवार्य करती है।

अन्य तथ्य

भारत में बेरोजगारी के आँकड़ों के स्रोत

  • भारत की जनगणना रिपोर्ट
  • राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण कार्यालय की रोजगार और बेरोजगारी की अवस्था संबंधी PLFS की वार्षिक रिर्पोट
  • रोजगार और प्रशिक्षण महानिदेशालय के रोजगार कार्यालय में पंजीकृत आंकड़े।

बेरोजगारी से संबंधिात प्रमुख तथ्य

  • कार्यबल भागीदारी दर (WFPR): श्रम बल भागीदारी दर के समान है परंतु यह केवल उन लोगों को सम्मिलित करता है, जो कार्य में लगे हुए है। जबकि श्रम बल भागीदारी दर 15-64 वर्ष के सभी लोगों को सम्मिलित करता है।
  • कार्य भागीदारी दर (WPR): श्रमशक्ति का वह अनुपात है जो कार्य में जुटा है। यह अर्थव्यवस्था की रोजगार सृजन क्षमता का मापक है। भारत में 1983 से 2009-10 की समूची अवधि में श्रम और कार्य शक्तियों में पुरुषों की भागीदारी की दर महिलाओं से उच्च रही।
  • मौसमी बेरोजगारीः मौसम में परिवर्तन होने के कारण वस्तुओं की मांग और पूर्ति में असंतुलन उत्पन्न हो जाता है, जिसके कारण मौसमी बेरोजगारी दृष्टिगत होती है। सामान्यतः मौसमी बेरोजगारी कृषि व्यवसाय से जुड़ी होती है।
  • प्रच्छन्न बेरोजगारीः इसको अल्प बेरोजगारी की अवस्था भी कहते हैं। जब किसी व्यवसाय में आवश्यकता से अधिक श्रमिक लगे हों तो बाहर से तो सभी श्रमिक काम में लगे दिखलायी देते हैं, लेकिन इनमें से काफी श्रमिक बेराजगारी की अवस्था में होते हैं। प्रच्छन्न बेरोजगारी प्रमुख रूप से कृषि व्यवसाय में देखने को मिलती है।

श्रम बल भागीदारी दर (LFPR)

  • यह किसी अर्थव्यवस्था की श्रम शक्ति (15-64 वर्ष) के सक्रिय भाग की मांग प्रस्तुत करता है। वह श्रम शक्ति जो रोजगार में लगी है उसकी तथा राष्ट्रीय जनसंख्या के उसी आयु वर्ग के लोगों के बीच अनुपात प्रदर्शित करती है। इस भागीदारी दर को 15-64 वर्ष की आयु के व्यक्तियों के अनुपात के रूप में परिभाषित किया गया है, जो या तो सामान्य प्रिंसिपल स्टेटस या सहायक स्थिति पर काम कर रहे हैं या काम के लिए उपलब्ध हैं।
  • यह NSSO द्वारा आवधिक अंतराल पर प्रकाशित किया जाता है। यह न केवल राष्ट्रीय स्तर पर सक्रिय श्रम बल की गणना करता है, बल्कि क्षेत्रीय स्तर पर रोजगार की प्रकृति, पुरुष और महिलाओं की श्रम बल को प्रदर्शित करता है।