पंचायत उपबंध अधिनियम,1996

अक्टूबर, 2021 में आजादी के अमृत महोत्सव के हिस्से के रूप में पेसा अधिनियम की 25वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में एक दिवसीय राष्ट्रीय-सम्मलेन का आयोजन किया गया।

प्रमुख बिंदुः ग्रामीण भारत में स्थानीय स्वशासन को बढ़ावा देने हेतु वर्ष 1992 में 73वां संविधान संशोधन पारित किया गया।

  • इस संशोधन द्वारा त्रिस्तरीय पंचायती राज संस्था के लिये कानून बनाया गया।
  • हालांकि अनुच्छेद 243 (M) के तहत अनुसूचित और आदिवासी क्षेत्रों में इस कानून का आवेदन प्रतिबंधित था।
  • वर्ष 1995 में भूरिया समिति की सिफारिशों के बाद भारत के अनुसूचित क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिये स्व-शासन सुनिश्चित करने हेतु पंचायत उपबंध (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) विधेयक, 1996 अस्तित्व में आया।
  • पेसा ने ग्राम सभा को पूर्ण शक्तियां प्रदान की, जबकि राज्य विधायिका पंचायतों और ग्राम सभाओं के समुचित कार्य को सुनिश्चित करने हेतु एक सलाहकार की भूमिका में है।
  • पेसा को भारत में आदिवासी कानून की रीढ़ माना जाता है।
  • पेसा निर्णय लेने की प्रक्रिया की पारंपरिक प्रणाली को मान्यता देता है और लोगों की स्वशासन की भागीदारी सुनिश्चित करता है।

ग्राम सभाओं को निम्नलिखित शक्तियां और कार्य प्रदान किये गए हैं:

  • भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और विस्थापित व्यक्तियों के पुनर्वास में अनिवार्य परामर्श का अधिकार।
  • पारंपरिक आस्था और आदिवासी समुदायों की संस्कृति का संरक्षण।
  • लघु वन उत्पादों का स्वामित्व।
  • स्थानीय विवादों का समाधान।
  • भूमि अलगाव की रोकथाम।
  • गांव के बाजारों का प्रबंधन।
  • शराब के उत्पादन, आसवन और निषेध को नियंत्रित करने का अधिकार।
  • साहूकारों पर नियंत्रण का अधिकार।
  • अनुसूचित जनजातियों से संबंधित कोई अन्य अधिकार।