दुर्लभ रोगों के उपचार के लिए राष्ट्रीय नीति 2021

स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने दुर्लभ रोगों के उपचार के लिए राष्ट्रीय नीति (National Policy for Rare Disesaes: NPRD) 2021 को मंजूरी प्रदान कर दी है।

प्रमुख तथ्यः स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा वर्ष 2017 में दुर्लभ रोगों के उपचार के लिए राष्ट्रीय नीति (NPTRD) विकसित की गई थी।

  • इस नीति के कार्यान्वयन से जुड़ी कुछ चुनौतियों, जैसे कि- स्वास्थ्य संबंधी हस्तक्षेपों का समर्थन करने वाली लागत की प्रभावकारिता आदि के कारण इसे लागू नहीं किया जा सका।
  • NPTRD 2017 की समीक्षा के लिए वर्ष 2018 में मंत्रालय द्वारा एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया गया था।

नीति के प्रमुख प्रावधानः लोक स्वास्थ्य और अस्पताल राज्य का विषय होने के कारण, केंद्र सरकार NPRD के माध्यम से दुर्लभ रोगों की जांच और रोकथाम की दिशा में राज्यों को उनके प्रयासों के लिए प्रोत्साहित करेगी तथा सहायता प्रदान करेगी। नीति के प्रावधानों में शामिल हैं:

1. नीति के उद्देश्यः एक एकीकृत और व्यापक निवारक रणनीति के आधार पर दुर्लभ रोगों की व्यापकता तथा प्रसार को कम करना।

  • दुर्लभ रोगों से ग्रस्त रोगियों की किफायती स्वास्थ्य देखभाल तक पहुंच को सुनिश्चित करना।
  • स्वदेशी अनुसंधान और औषधियों के स्थानीय स्तर पर उत्पादन को प्रोत्साहित करना।

2. दुर्लभ रोगों को 3 समूहों में वर्गीकृत किया गया हैः

  • समूह 1: एक बार के उपचारात्मक उपचार से नियंत्रित होने वाले विकार।
  • समूह 2: जिन्हें दीर्घकालिक या आजीवन उपचार की आवश्यकता होती है।
  • समूह 3: ऐसे रोग जिनका निश्चित उपचार उपलब्ध है। लेकिन इनके समक्ष लाभार्थी हेतु इष्टतम रोगियों का चयन, अत्यधिक लागत और आजीवन उपचार करने जैसी चुनौतियां व्याप्त हैं।

3. उपचार के लिए वित्तीय सहायता

  • समूह 1: दुर्लभ रोगों से पीड़ित रोगियों को केंद्र सरकार द्वारा राष्ट्रीय आरोग्य निधि (RAN) की अम्ब्रेला योजना के अंतर्गत 20 लाख रुपये की सहायता प्रदान की जाएगी।
  • RAN योजना गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन कर रहे रोगियों को वित्तीय सहायता प्रदान करती है जो बड़ी जानलेवा रोगों से पीड़ित है और किसी जानकारी सुपर स्पेशिएलिटी अस्पताल से चिकित्सकीय उपचार प्राप्त कर रहे हैं।
  • वित्तीय सहायता के लाभार्थी केवल BPL परिवारों तक ही सीमित नहीं होंगे, बल्कि ऐसी सहायता का विस्तार उन लोगों के लिए भी (लगभग 40% आबादी तक) किया जाएगा, जो केवल तृतीयक श्रेणी के रोगों का उपचार करने वाले सरकारी अस्पतालों (Government tertiary hospitals) में अपने उपचार के लिए प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना के मानदंडों के अनुसार पात्र हैं।
  • समूह 2: इसके तहत सूचीबद्ध रोगों के लिए राज्य सरकारें, ऐसे दुर्लभ रोगों के रोगियों को विशेष आहार या हार्मोनल सप्लीमेंट या अन्य अपेक्षाकृत कम लागत वाले हस्तक्षेपों द्वारा सहायता करने पर विचार कर सकती हैं।
  • वैकल्पिक वित्त पोषण तंत्रः दुर्लभ रोगों से पीड़ित रोगियों के लिए उपचार लागत में योगदान हेतु स्वैच्छिक व्यक्तिगत और कॉर्पोरेट दाताओं के लिए एक डिजिटल प्लेटफॉर्म को स्थापित किया गया है, ताकि उपचार के लिए स्वैच्छिक क्राउड फंडिंग का उपयोग किया जा सके।

4. उत्कृष्टता केंद्र (Centre of Excellence) और निदान केंद्रः कुछ चिकित्सा संस्थानों को उत्कृष्टता केंद्र के रूप में प्रमाणित किया जाएगा और जांच करने तथा नैदानिक सुविधाओं के उन्नयन के लिए 5 करोड़ रुपये तक की वित्तीय सहायता प्रदान की जाएगी।

  • वंशानुगत विकारों के उपचार एवं प्रबंधन की विलक्षण पद्धतियों (Unique Methods of Management and Treatment of Inherited Disorders - UMMID) के तहत जैव प्रौद्योगिकी विभाग (DBT) द्वारा स्थापित निदान केंद्र दुर्लभ रोगों के लिए जांच करने, आनुवंशिक परीक्षण और परामर्श का कार्य करेंगे।

5. दुर्लभ रोगों से संबंधित डेटाबेस का निर्माणः अनुसंधान और विकास में रुचि रखने वालों के लिए पर्याप्त डेटा तथा ऐसे रोगों की व्यापक परिभाषाओं की उपलब्धता को सुनिश्चित करने हेतु ICMR द्वारा दुर्लभ रोगों से संबंधित अस्पताल-आधारित राष्ट्रीय रजिस्ट्री का निर्माण किया जाएगा।

6. दुर्लभ रोगों से संबंधित औषधियों को किफायती बनानाः दुर्लभ रोगों की औषधियों का स्थानीय स्तर पर विनिर्माण करने के लिए सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को प्रोत्साहित किया जाएगा।

7. अनुसंधान एवं विकासः नई औषधियों के विकास को आरंभ करने हेतु, पुरानी/मौजूदा/उपलब्ध औषधियों के लिए नए चिकित्सीय उपयोग का अन्वेषण (repurposing the drugs) तथा बायोसिमिलर (संदर्भित औषधि) के उपयोग के लिए एक एकीकृत अनुसंधान पाइपलाइन का निर्माण किया जाएगा।

  • ऐसी रोगों के प्रसार और रोकथाम के उपायों के बारे में स्वास्थ्य देखभाल कर्मियों के साथ-साथ आम जनता के सभी स्तरों के मध्य जागरूकता बढ़ाने पर बल दिया जाएगा।

दुर्लभ रोगों

दुर्लभ रोगों की कोई सार्वभौमिक रूप से स्वीकृत या मानक परिभाषा नहीं है। यह सामान्यतः ऐसे रोगों के रूप में परिभाषित किया जाता है, जो जनसंख्या में बहुधा/सामान्यतः उत्पन्न नहीं होते हैं, हालांकि इनकी पहचान के लिए तीन संकेतकों का उपयोग किया जाता है, जिनमें शामिल हैंः

  • ऐसे रोग से ग्रसित लोगों की कुल संख्या,
  • इसकी व्यापकता और
  • उपचार के विकल्पों की उपलब्धता/अनुपलब्धता

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा दुर्लभ रोग को प्रायः दुर्बल करने वाले जीवन पर्यन्त व्यापत रहने वाले रोग या विकार की स्थिति के रूप में परिभाषित किया जाता है, जिसकी व्यापकता प्रति 10,000 लोगों (या प्रति 1,000 जनसंख्या पर 1) पर 10 लोगों या उससे कम में होती हैं हालांकि, विभिन्न देशों की परिभाषाएं उनकी विशिष्ट आवश्यकताओं के अनुरूप और उनकी अपनी जनसंख्या, स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली तथा संसाधनों के संदर्भ में अलग-अलग हैं।

  • इन रोगों के लिए प्रायः "ओंर्फन डिजीज" (Orphan diseases) पद का उपयोग किया जाता है और इनके उपचार के लिए उपयोग की जाने वाली औषधियों को "ओंर्फन ड्रग्स" (Orphan diseases) के रूप में संदर्भित किया जाता है।