दिसम्बर, 2021 में, यूनेस्को ने मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की प्रतिनिधि सूची में ‘कोलकाता में दुर्गा पूजा’ को अंकित किया।
यूनेस्को की अंतर सरकारी समिति ने पेरिस, फ्रांस में आयोजित अपने 16वें सत्र के दौरान यह निर्णय लिया।
यूनेस्को की अंतर-सरकारी समिति ने तत्वों को सुरक्षित रखने में उपेक्षित समूहों एवं व्यक्तियों के साथ-साथ महिलाओं को उनकी भागीदारी में शामिल करने की पहल के लिए दुर्गा पूजा की सराहना की।
भारत की यूनेस्को द्वारा मान्यता प्राप्त अमूर्त सांस्कृतिक विरासत
वैदिक मंत्रेच्चार की परंपरा (2008)
रामलीला, रामायण का पारंपरिक प्रदर्शन (2008)
कुटियाट्टम, संस्कृत रंगमंच (2008)
रमन, गढ़वाल हिमालय का धार्मिक उत्सव एवं अनुष्ठान थियेटर (2009)
मुदियेट्टू, केरल का अनुष्ठान थिएटर एवं नृत्य नाटक (2010)
राजस्थान के कालबेलिया लोक गीत एवं नृत्य (2010)
छऊ नृत्य (2010)
लद्दाख का बौद्ध जापः पार-हिमालयी लद्दाख क्षेत्र, जम्मू एवं कश्मीर (2012) में पवित्र बौद्ध ग्रंथों का पाठ
मणिपुर का संकीर्तन, अनुष्ठान गायन, ढ़ोल नगाड़ा एवं नृत्य (2013)
जंडियाला गुरु, पंजाब के ठठेरों के मध्य बर्तन बनाने का पारंपरिक पीतल एवं तांबे का शिल्प (2014)
योग (2016
नवरोज (2016)
कुंभ मेला (2017)
कोलकाता दुर्गा पूजा (2021)
इसके साथ, कोलकाता दुर्गा पूजा मानवता के यूनेस्को आईसीएच (अमूर्त सांस्कृतिक विरासत) के रूप में मान्यता प्राप्त करने वाला एशिया का प्रथम त्योहार बन गया।
16वीं शताब्दी के आसपास के साहित्य में हमें पश्चिम बंगाल में जमींदारों द्वारा दुर्गा पूजा के भव्य उत्सव का प्रथम उल्लेख प्राप्त होता है।
अलग-अलग लिपियां, अलग-अलग राजाओं एवं जमींदारों की ओर संकेत करती है, जिन्होंने पूरे गांव में दुर्गा पूजा को मनाया एवं इस हेतु धन प्रदान किया।
बोएन्दो बारी पूजा (जमींदारों के घर में पूजा) अभी भी बंगाल में एक प्रथा है।