न्यायिक निर्णय / ट्रिव्यूनल निर्णय संवैधानिक प्रावधान

अनुच्छेद 14: इसके अनुसार राज्य भारत के राज्य क्षेत्र में किसी व्यक्ति को विधि के समक्ष समता से या विधियों के समान संरक्षण से वंचित नहीं करेगा।

अनुच्छेद 15: इसके अनुसार यह व्यवस्था की गई है कि राज्य किसी नागरिक के प्रति केवल धर्म, मूल वंश, जाति, लिंग या जन्म स्थान को लेकर विभेद नहीं करेगा।

अनुच्छेद 16: इसके अनुसार राज्य के अधीन किसी पद पर नियोजन या नियुक्ति से संबंधित विषयों में सभी नागरिकों के लिए अवसर की समता होगी।

अनुच्छेद 21: इसके अनुसार किसी व्यक्ति को उसके प्राण या दैहिक स्वतंत्रता से विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही वंचित किया जाएगा अन्यथा नहीं।

सर्वोच्च न्यायालय से संबंधिात अन्य प्रावधान

सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला दिया था कि अपने लिंग की स्वयं पहचान करने का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गरिमा और स्वायत्तता के अधिकार का ही एक हिस्सा है। लेकिन अगर किसी व्यक्ति की हकदारी की पात्रता साबित करनी है तो उस व्यक्ति के लिंग को निर्धारित करने के लिए वस्तुनिष्ठ मानदंड की जरूरत पड़ सकती है।

  • वर्ष 2014 में सर्वोच्च न्यायालय ने इस बात को मान्यता दी कि ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को पुरुष, महिला या तीसरे लिंग के रूप में स्वयं को आइडेंटिफाई करने का अधिकार है।
  • इसके अतिरिक्त न्यायालय ने केंद्र और राज्य सरकारों को निर्देश दिया कि वे ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को कानूनी मान्यता प्रदान करें, सामाजिक लांछन और भेदभाव जैसी समस्याओं का हल करें और उनके सामाजिक कल्याण के लिए योजनाएं तैयार करें।
  • ‘राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण’ (NALSA) का निर्णय अनुच्छेद-14, 15 और 21 के तहत ट्रांसपर्सन को संवैधानिक संरक्षण प्रदान करते हुए राज्यों को उनके कानूनी और सामाजिक-आर्थिक अधिकारों पर नीतियां बनाने का निर्देश देता है।

ट्रांसजेंडर व्यक्ति से संबंधिात परिभाज्षा

सुप्रीम कोर्ट (2014)

ऐसे व्यक्ति जिनकी लिंग पहचान उनके बायोलॉजिकल सेक्स से मेल नहीं खाती।

एक्सपर्ट कमिटी (2014)

ऐसे व्यक्ति जिनकी लिंग अनुभूति जन्म के समय नियत लिंग से मेल नहीं खाती। वे अपने लिंग को विभिन्न शब्दों और नामों से अभिव्यक्त करते हैं।

प्राइवेट मेंबर बिल (2014)

ऐसे व्यक्ति जिनकी लिंग अनुभूति जन्म के समय नियत लिंग से मेल नहीं खाती। इसमें ट्रांस मेन, ट्रांस विमेन, लिंग विलक्षणताओं वाले व्यक्ति और सामाजिक-सांस्कृतिक पहचान वाले व्यक्ति शामिल हैं।

सरकार का बिल (2016)

ऐसे व्यक्ति जोकि (i) न तो पूरी तरह से महिला है और न ही पुरुष, (ii) महिला और पुरुष, दोनों का संयोजन हैं, या (iii) न तो महिला है और न ही पुरुष, और जिनकी लिंग अनुभूति जन्म के समय नियत लिंग से मेल नहीं खाती। इसमें ट्रांस मेन, ट्रांस विमेन, इंटरसेक्स भिन्नताओं और लिंग विलक्षणताओं वाले व्यक्ति शामिल हैं।