चुनावी खर्च सीमा में बढ़ोतरी

जनवरी, 2022 में भारतीय चुनाव आयोग (ECI) द्वारा लोकसभा क्षेत्रों के उम्मीदवारों के लिये खर्च की सीमा 54 लाख-70 लाख रुपए (राज्यों के आधार पर) से बढ़ाकर 70 लाख-95 लाख रुपए कर दी गई थी।

  • इसके अलावा विधानसभा क्षेत्रों के लिये खर्च की सीमा 20 लाख-28 लाख रुपए से बढ़ाकर 28 लाख- 40 लाख रुपए (राज्यों के आधार पर) कर दी गई थी।
  • वर्ष 2020 में चुनाव खर्च की सीमा का अध्ययन करने हेतु चुनाव आयोग ने एक समिति का गठन किया था।
  • 40 लाख रुपए की बढ़ी हुई राशि उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और पंजाब में तथा 28 लाख रुपए की गोवा और मणिपुर में लागू होगी।
  • कोविड-19 महामारी के कारण वर्ष 2020 में 10% की वृद्धि के अलावा उम्मीदवारों के लिये खर्च सीमा में अंतिम बड़ा संशोधन वर्ष 2014 में किया गया था।
  • समिति ने पाया कि वर्ष 2014 के बाद से मतदाताओं की संख्या और लागत मुद्रास्फीति सूचकांक में काफी वृद्धि हुई है।

चुनाव व्यय सीमाः यह वह राशि है जो एक उम्मीदवार द्वारा अपने चुनाव अभियान के दौरान कानूनी रूप से खर्च की जा सकती है जिसमें सार्वजनिक बैठकों, रैलियों, विज्ञापनों, पोस्टर, बैनर, वाहनों और विज्ञापनों पर खर्च शामिल होता है।

  • जन-प्रतिनिधित्व अधिनियम (Representation of the People Act-RPA), 1951 की धारा 77 के तहत प्रत्येक उम्मीदवार
  • को नामांकन की तिथि से लेकर परिणाम घोषित होने की तिथि तक किये गए सभी व्यय का एक अलग और सही खाता रखना होता है।
  • चुनाव संपन्न होने के 30 दिनों के भीतर सभी उम्मीदवारों को ECI के समक्ष अपना व्यय विवरण प्रस्तुत करना होता है।
  • उम्मीदवार द्वारा सीमा से अधिक व्यय या खाते का गलत
  • विवरण प्रस्तुत करने पर RPA, 1951 की धारा 10 के तहत
  • ECI द्वारा उसे तीन साल के लिये अयोग्य घोषित किया जा सकता है।
  • ECI द्वारा निर्धारित व्यय सीमा चुनाव के दौरान किये जाने वाले वैध खर्च के लिये निर्धारित है क्योंकि चुनाव में बहुत सारा पैसा गलत एवं अवांछित कार्यों पर खर्च किया जाता है।
  • अक्सर यह तर्क दिया जाता है कि चुनावी खर्च की यह सीमा अवास्तविक है क्योंकि उम्मीदवार द्वारा किया गया खर्च वास्तविक व्यय से बहुत अधिक होता है।

राज्य अनुदान पर सिफ़ारिशें

  • इंद्रजीत गुप्ता समिति (1998) द्वारा यह सुझाव दिया गया कि राज्य द्वारा वित्तपोषण आर्थिक रूप से कमजोर राजनीतिक दलों के लिये एक समान आधार को सुनिश्चित करेगा एवं ऐसा कदम सार्वजनिक हित में होगा।
  • यह भी सिफारिश की गई कि राज्य द्वारा यह धन केवल मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय और राज्य दलों को दिया जाना चाहिये तथा यह आर्थिक सहायता उम्मीदवारों को प्रदान की जाने वाली मुफ्त सुविधाओं के रूप में दी जानी चाहिये।
  • विधि आयोग की रिपोर्ट (1999) के अनुसार, राजनीतिक दलों को चुनाव के लिये राज्य द्वारा वित्तीय सहायता देना वांछनीय/उचित (Desirable) है, बशर्ते राजनीतिक दल अन्य स्रोतों से आर्थिक सहायता प्राप्त न करे।
  • संविधान के कामकाज की समीक्षा के लिये गठित राष्ट्रीय आयोग (वर्ष 2000) द्वारा इस विचार का समर्थन नहीं किया गया लेकिन इसके द्वारा उल्लेख किया गया कि राजनीतिक दलों के नियमन के लिये एक उपयुक्त रूपरेखा को राज्य द्वारा वित्तपोषण से पहले लागू करने की आवश्यकता है।