भारत विरोधी नीति

भारत-पाक सम्बन्धों में कटुता और वैमनस्य कई बार पाकिस्तान के साम्प्रदायिक दृष्टिकोण से उत्पन्न हो जाता है। धार्मिक और साम्प्रदायिक वैमनस्य को पाकिस्तान की सरकार जान-बूझकर बनाये रखना चाहती है। वे साम्प्रदायिक विषय को अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलनों और संगठनों में भी अभिव्यक्त करते रहे हैं।

  • सितम्बर 1963 में हजरत बाल-काण्ड को लेकर पाकिस्तान ने कश्मीर में साम्प्रदायिक दंगे भडकाने का प्रयास किया। 1965 में बड़े पैमाने पर कश्मीर में घुसपैठियों को भेजना शुरु कर दिया और विद्रोह भड़काने के लिए साम्प्रदायिक विषय का सहारा लिया।
  • 1969 में रबात मुस्लिम शिखर सम्मेलन के समय तत्कालीन पाकिस्तानी राष्ट्रपति याह्य खां ने भारतीय प्रतिनिधिमण्डल के साथ बैठने से इंकार कर दिया।
  • 1971 के पश्चात् पाकिस्तान द्वारा अपनी इस नीति में परिवर्तन किया गया। पाकिस्तान की सैन्य अक्षमता, भारत के विरुद्ध असममित युद्ध लड़ने की स्वयं की नीति में परिवर्तन करने का कारण बनी। पाकिस्तानी डीप स्टेट (सेना और ISI) ने भारत से निपटने के लिए अपनी राष्ट्र नीति के रूप में आतंकवाद को पोषित किया।
  • 2019 में, पुलवामा में भारतीय सुरक्षा बलों पर हुए आतंकी हमले के कारण भारत-पाकिस्तान संबंधों में तनाव की स्थिति उत्पन्न हो गई है, जो बिगत कुछ वर्षों के संदर्भ में सर्वाधिक तनावपूर्ण स्थिति है।

आतंकवाद से लड़ने हेतु भारत का प्रयास

  • मिशन ऑल आउटः 2016 में उरी तथा 2019 में बालाकोट में भारत द्वारा पाकिस्तानी आतंकी शिविरों पर हमला किया गया। तथा इसके उपरांत जम्मू कश्मीर से आतंकवादियों को समाप्त करने हेतु मिशन ऑल आउट प्रारम्भ किया गया।
  • ऊफा वार्ताः 10 जुलाई, 2015 में रूस के ऊफा शहर में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की बैठक में भारत-पाक प्रधानमंत्री के मध्य एक द्विपक्षीय वार्ता हुई थी। इस बैठक में दोनों पक्षों के मध्य आतंकवाद से लड़ने हेतु राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार स्तरीय बैठक करवाने का निर्णय लिया गया था।