अयोध्या में मंदिर-मस्जिद विवाद सदियों पुरानी समस्या थी, जिससे हिंदू और मुसलमानों के बीच सामाजिक तनाव बना रहता था। यह मामला दोनों धार्मिक समूहों के एकीकरण में बाधा था। दावा किया गया है कि जिस स्थान पर बाबरी मस्जिद स्थित है, वह भगवान राम की जन्मभूमि है, इससे सामाजिक अशांति उत्पन्न हुई। सरकार के प्रयास और सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय/फैसले द्वारा सदियों पुराने विवाद का समाधान किया गया, जिससे सामाजिक एकीकरण में आने वाली बाधा खत्म हुई।
भारत के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने निर्णय दिया कि अयोध्या की सम्पूर्ण 2.77 एकड़ विवादित भूमि को राम मंदिर के निर्माण के लिए गठित एक ट्रस्ट को सौंप दिया जाए। निर्णय द्वारा सर्वोच्च न्यायालय ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के वर्ष 2010 के फैसले को पलट दिया, जिसमें निर्मोही अखाड़ा, रामलला विराजमान और सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के बीच जमीन का बंटवारा किया गया था।
सर्वोच्च न्यायालय का निष्कर्ष
बाबरी मस्जिद एक गैर-इस्लामिक ढांचे पर बनाई गई थी।
प्रधानमंत्री का संबोधन
प्रधानमंत्री के अनुसार अयोध्या वाद पर सर्वोच्च न्यायालय का फैसला किसी की जीत या हार नहीं है। उन्होंने राष्ट्र द्वारा दिखाई गई एकता एवं एकजुटता की भावना की सराहना की। कानून की उचित प्रक्रिया के साथ किसी विवाद को सुलझाना एक परिपक्व लोकतंत्र का संकेत है। राम भक्ति हो या रहीम भक्ति, इससे जरूरी है कि हम राष्ट्र भक्ति की भावना को मजबूत करें।
शांति एवं समरसता की प्रबलता
एहतियाती कदम उठाए गए थे, लेकिन फैसले के बाद कोई हिंसा नहीं हुई।
बाबरी मस्जिद वाद घटनाक्रम
|