जून, 2019 को भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने गैर निष्पादित परिसंपत्तियों (Nonperforming asset - NPA) के समाधान के लिए नवीनतम मानदंड जारी किए हैं। उल्लेखनीय है कि इसके पहले 12 फरवरी, 2018 को आरबीआई द्वारा जारी सर्कुलर के तहत एक दिन की चूक पर भी खाते को एनपीए (NPA) घोषित कर समाधान की कार्रवाई शुरू करना अनिवार्य कर दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने आरबीआई के 12 फरवरी के सर्कुलर को उसके अधिकार से बाहर बताते हुए 2 अप्रैल, 2019 को खारिज कर दिया था।
नवीनतम मानदंड की मुख्य विशेषताएं
आरबीआई के नए मानदंड के तहत फंसे कर्ज की जल्द पहचान, उनकी सूचना देने और समयबद्ध समाधान की रूपरेखा प्रदान करता है। कर्ज देने वाले बैंकों/वित्तीय संस्थानों को कर्ज वसूली में दिक्कत शुरू होते ही उसे विशेष उल्लेख वाले खाते (एसएमए) के रूप में वर्गीकृत करना होगा।
नए मानदंड के तहत ऋणदाताओं को एक दिन के डिफॉल्ट नियम से राहत दिया गया है, जिसके तहत उन्हें पहले डिफॉल्ट के 180 दिनों के भीतर कार्यान्वयन के लिए एक संकल्प योजना (Resolution Plan - RP) तैयार करना पड़ता था।
यदि कोई बैंक, वित्तीय संस्थान, सूक्ष्म वित्त बैंक या एनबीएफसी किसी कर्जदार के कर्ज भुगतान में चूक करने की सूचना देता है तो सभी कर्जदाताओं को 30 दिन के भीतर उसकी समीक्षा करनी होगी। इस अवधि में कर्जदाता उस खाते के समाधान की रणनीति पर फैसला कर सकते हैं।
ऋणदाता इनसॉल्वेंसी या रिकवरी के लिए कानूनी कार्यवाही शुरू करने का विकल्प भी चुन सकते हैं।
इसमें समाधान योजना (Resolution Plan - RP) की प्रकृति और योजना के क्रियान्वयन के लिए दृष्टिकोण शामिल होंगे। समीक्षा के दौरान, जिन मामलों में समाधान योजना लागू की जानी है, उनमें सभी कर्जदाताओं को आपस में एक समझौता (Inter-Creditor Agreement - ICA) करना होगा।
नया परिपत्र छोटे वित्त बैंकों और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (NBFC) और जमा लेने वाले NBFC के लिए व्यवस्थित रूप से महत्वपूर्ण गैर-जमा पर भी लागू है।
रिजर्व बैंक के नए दिशानिर्देशों के मुताबिक सभी कर्जदाताओं को अनिवार्य रूप से इंटर क्रेडिटर एग्रीमेंट (inter-creditor agreement - ICA) पर हस्ताक्षर करने होंगे।
नई व्यवस्था में यदि ऋण के मूल्य के हिसाब से 75 फीसदी और संख्या के हिसाब से 60 फीसदी वित्तीय ऋणदाता किसी समाधान योजना पर सहमत होंगे तो वह योजना सब पर लागू होगी। बैंक/ वित्तीय कर्जदाता वसूली या दिवाला कानून के तहत ऋण समाधान के लिए कानूनी प्रक्रिया शुरू करने को स्वतंत्र होंगे।
आरबीआई ने नई व्यवस्था में कर्जदाताओं के संयुक्त मंच (जेएलएफ) की व्यवस्था समाप्त कर दी है। यह संकटग्रस्त खातों के समाधान के लिए अनिवार्य संस्थागत तंत्र के रूप में काम करता है।
उधारकर्ताओं को 180 दिनों के अंदर ही 2,000 करोड़ रुपए के एनपीए को रिजॉल्व करना होगा।
इससे पहले एक दिन की कर्ज अदायगी में एक दिन की भी चूक होने पर कंपनी को एनपीए घोषित किया जा सकता था। बैंकों के लिए यह अनिवार्य किया गया था कि अगर किसी फंसे कर्ज का समाधान 180 दिन के भीतर नहीं होता है, तो वे उसे दिवाला संहिता के तहत ऋण समाधान की कार्यवाही के लिए भेजे।
अतिरिक्त प्रावधान
नई व्यवस्था में बैंकों और वित्तीय संस्थानों को एनपीए या वसूल नहीं हो रहे कर्जों के संबंध में नुकसान के लिए प्रावधान करने में थोड़ी मोहलत दी गई है। इससे कम पूंजी वाले बैंकों को सहूलियत होगी। नई व्यवस्था के तहत बैंकों को पहले 180 दिन के अंदर ऋण का समाधान न होने पर 20 फीसदी का प्रावधान करना होगा।
365 दिन के अंदर भी समाधान न होने पर 15 फीसदी का अतिरिक्त प्रावधान करना होगा। इस तरह उन्हें फंसे कर्जों की कुल 35 फीसदी पूंजी की व्यवस्था करनी होगी। आरबीआई ने कहा कि इस नई व्यवस्था के लागू होने के बाद भी वह बैंकों को किसी ऋण नहीं चुकाने वाली कंपनी के खिलाफ दिवाला कानून के तहत कार्रवाई करने का निर्देश दे सकता है।