राष्ट्रीय महिला आयोग की स्थापना 1992 में राष्ट्रीय महिला आयोग अधिनियम 1992 के तहत एक सांविधिक निकाय के रूप में की गई थी।
आयोग के कार्य
महिलाओं के लिए संवैधानिक और कानूनी सुरक्षा उपायों की समीक्षा करना।
उपचारात्मक विधायी उपायों की सिफारिश करना।
शिकायतों का निवारण करना।
महिलाओं को प्रभावित करने वाले सभी नीतिगत मामलों पर सरकार को सलाह देना।
इसे दीवानी न्यायालय की शक्ति प्राप्त है; इसलिए किसी को भी गवाही के लिये सम्मन जारी कर सकता है और आरोपों की जांचकर सकता है।
यह कानून जागरुकता कार्यक्रमों, परिवार, महिला लोक अदालतों जैसे विभिन्न गतिविधियों को संचालित करता है और दहेज निषेध अधिनियम, 1961; पीएनडीटी अधिनियम, 1994; भारतीय दंड संहिता 1860 और राष्ट्रीय महिला आयोग अधिनियम, 1990 जैसे कानूनों की समीक्षा करता है, ताकि उन्हें और अधिक प्रभावी बनाया जा सके।
महिलाओं से सम्बंधित मुद्दों और चिंताओं के समाधान में आयोग की भूमिका भी अत्यंत सराहनीय रही है। बलात्कार पीडि़त महिलाओं के राहत और पुनर्वास के लिए बनने वाले कानून में राष्ट्रीय महिला आयोग की महत्वपूर्ण भूमिका रही है।