यह भारत सरकार द्वारा स्थापित एक कार्यकारी निकाय है। यह कानूनी सुधारों पर सुझाव देता है। पहला विधि आयोग का गठन 1834 में लॉर्ड मैकाले की अध्यक्षता में किया गया था, जिसे ब्रिटिश अधिनियमों में सुधार का सुझाव देना था।
स्वतंत्रता के बाद पहला विधि आयोग 1955 में एम.सी. सीतलवाड़ की अध्यक्षता में गठित किया गया था।
1956 की रिपोर्ट जैसे सीमा अधिनियम, पंजीकरण अधिनियम आदि में महत्वपूर्ण सुधारों की सिफारिश की।
भारत के विधि आयोग द्वारा दी गई सिफारिशों को सरकार स्वीकार करने के लिए बाध्य नहीं होती है।
बलबीर सिंह चौहान की अध्यक्षता में 2015 में 3 साल की अवधि के साथ नवीनतम विधि आयोग (21वां) गठित किया गया। आयोगद्वारा विचारर्थ विषय निम्नलिखित हैं:
अप्रचलित कानूनों की समीक्षा/निरसन
त्वरित न्याय को सुनिश्चित करने के लिए न्यायिक प्रशासन की प्रणाली की समीक्षा करना।
राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों के परिपेक्ष्य में मौजूदा कानूनों की जाँच करना और आवश्यक हो, तो सुधार के तरीके सुझाना।
लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के लिए मौजूदा कानूनों की जांच करना और उसमें संशोधन के सुझाव देना।
सामान्य महत्व के केंद्रीय अधिनियमों को संशोधित करना, ताकि उन्हें सरल बनाया जा सके और विसंगतियों, अस्पष्टताओं और असमानताओं को दूर किया जा सके।
कानून को समय के अनुसार प्रासंगिक बनाने के लिए अप्रचलित कानूनों और अधिनियमों को या उसके कुछ हिस्सों को निरस्त करने की सिफारिश करना।
कानून और न्यायिक प्रशासन से संबंधित किसी भी विषय पर सरकार को अपने विचारों से अवगत कराना।
खाद्य सुरक्षा, बेरोजगारी पर वैश्वीकरण के प्रभाव की जांच करना और वंचित तबके के हितों की संरक्षण के लिए उपायों की सिफारिश करना।
प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन, द्वेषपूर्ण भाषण, ह्यूमन डीएनए प्रोफाइलिंग, यूएन कन्वेंशन ऑन टॉर्चर आदि विषयों से सम्बंधित 15 रिपोर्टें दिसंबर, 2019 तक प्रकाशित की गई हैं।