केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE)

वर्ष 1962 में शिक्षण संस्थानों को अधिक प्रभावी ढंग से कार्य करने के उद्देश्य से केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) गठित किया गया था। यह उन छात्रों की शैक्षिक आवश्यकताओं के प्रति उत्तरदायी है, जिनके माता-पिता केंद्र सरकार के कर्मचारी हैं और जिनका अक्सर स्थानांतरण होता रहता है।

बोर्ड के कार्य

  • गुणवत्ता से समझौता किए बिना सभी बच्चों को तनाव मुत्तफ़, बाल केंद्रित और समग्र शिक्षा प्रदान करने के लिए शैक्षणिक गतिविधियों के उपयुत्तफ़ दृष्टिकोण को परिभाषित करना।
  • विभिन्न हितधारकों से प्रतिक्रिया को ध्यान रखते हुए शैक्षणिक गतिविधियों की गुणवत्ता का विश्लेषण और निगरानी करना।
  • गुणवत्ता सहित विभिन्न शैक्षणिक गतिविधियों के कार्यान्वयन के लिए मानदंड विकसित करना; बोर्ड के विभिन्न शैक्षणिक एवं प्रशिक्षण कार्यक्रमों के कार्यान्वयन को नियंत्रित और समन्वित करना; शैक्षणिक गतिविधियों को व्यवस्थित करने और प्रक्रिया में शामिल अन्य एजेंसियों की देखरेख करना।
  • मनोवैज्ञानिक, शैक्षणिक और सामाजिक सिद्धांतों के अनुरूप अकादमिक उत्कृष्टता प्राप्त करने के लिए शिक्षा पद्धति को अनुकूलित और नवीनतम करना।
  • शिक्षक और छात्रें के अनुकूल पद्धति से छात्रें की प्रगति का मूल्यांकन करने के लिए स्कूलों को प्रोत्साहित करना।
  • राष्ट्रीय लक्ष्यों के अनुरूप स्कूली शिक्षा में गुणवत्ता के मानक प्राप्त करने के लिए योजनाओं का प्रस्ताव करना।
  • शिक्षकों की व्यावसायिक क्षमता को अद्यतन करने के लिए विभिन्न क्षमता निर्माण और सशक्तिकरण कार्यक्रम आयोजित करना।
  • परीक्षा की शर्तों को निर्धारित करने और दसवीं एवं बारहवीं कक्षा के अंत में सार्वजनिक परीक्षा आयोजित करने और संबद्ध स्कूलों के सफल उम्मीदवारों को योग्यता प्रमाण-पत्र प्रदान करना।
  • परीक्षाओं के निर्देशों के पाठड्ढक्रम को निर्धारित करने और अद्यतन करने के लिए परीक्षा के उद्देश्य से संस्थानों को संबद्ध करना और देश के शैक्षणिक मानकों को बढ़ाना।
  • बोर्ड विकेंद्रीकृत तरीके से काम करता है और पूरे भारत में क्षेत्रीय कार्यालय स्थापित किया है, ताकि संबद्ध स्कूलों के साथ समन्वय प्रभावित न हो।

निष्कर्ष

शिक्षा एक समग्र अवधारणा है, परंतु शिक्षा में विकास के साथ-साथ अच्छा प्रदर्शन करने की चाह एक प्रतिकूल स्थिति पैदा कर रही है, जहां उपलब्धि और प्रदर्शन के लिए छात्रों में बहुत तनाव उत्पन्न हो रहा है। यही नहीं, यांत्रिक शिक्षा प्रणाली में बच्चों को उत्पाद के रूप में देखा जा रहा है, जिसमें उनके व्यक्तिगत विकास और कौशल विकास की अनदेखी हो रही है। इसलिए शिक्षा के इन अनदेखे पहलुओं को ध्यान में रखते हुए आगे की कार्रवाई की जानी चाहिए।