ग्लोबल वार्मिंग पर IPCC की रिपोर्ट

जलवायु परिवर्तन पर अंतरसरकारी पैनल (Inter governmental Panel on Climate Change - IPCC) द्वारा वैश्विक तापन पर जारी रिपोर्ट ‘ग्लोबल वार्मिंग ऑफ 1.5° सेल्सियस’ (Global Warming of 1.5°C) के अनुसार मानवीय गतिविधियों द्वारा वैश्विक तापन पूर्व औद्योगिक स्तर से 1° सेल्सियस अधिक हो गया है तथा अगर यह इसी दर से बढ़ता रहा तो वर्ष 2030 से 2052 के बीच यह 1.5° से सेल्सियस तक पहुंच जायेगा।

मुख्य बिंदु

  • 1.5° सेल्सियस तापन सीमित रखने के लिए प्रमुख बदलाव करने होंगे जैसे- ऊर्जा मांग में कटौती, खाद्य उत्पादन क्षमता सुधार तथा मानव जनित कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में 2030 तक 2010 के स्तर से 45 प्रतिशत कटौती के साथ-साथ वर्ष 2050 तक निवल शून्य उत्सर्जन (Net Zero Emission) हासिल करना होगा।
  • रिपोर्ट के अनुसार 1.5° सेल्सियस तापन से पहले ही महत्वपूर्ण प्रभाव जलवायु पर हो चुका है इसलिए 1.5° सेल्सियस की सीमा सभी के लिए सुरक्षित नहीं है। इसका प्रभाव गरीबों तथा कमजोर लोगों पर अधिक होगा।
  • पेरिस समझौते के तहत 2° सेल्सियस तापन सीमा के लक्ष्य को संशोधित करना होगा तथा लक्ष्य को दृढ़तापूर्वक 1.5° सेल्सियस करना होगा।
  • रिपोर्ट के अनुसार 1.5° सेल्सियस तापन होने से समुद्र स्तर वृद्धि में तेजी, तापमान वृद्धि तथा वर्षण, सूखा और गर्म दिनों की तीव्रता में बढ़ोतरी होगी।
  • तटीय देशों और एशिया तथा अफ्रीका की कृषि अर्थव्यवस्था पर सर्वाधिक असर होगा। फसल की पैदावार में गिरावट, जलवायु अस्थिरता तथा गरीबी में बढ़ोतरी होगी। 1.5° सेल्सियस तापन से प्रवाल तथा सागरीय जीवों को 70 से 90 फीसदी क्षति होगी।

भारत पर प्रभाव

  • भारी वर्षण घटनाओं, बाढ़ तथा अरब सागर के नजदीक उत्तरी हिंद महासागर में आने वाले श्रेणी-4 और श्रेणी-5 के तूफानों से उच्च जोखिम की संभावना है।
  • समुद्र स्तर वृद्धि से तटीय परितंत्र को उच्च जोखिम का सामना करना पड़ेगा। गंगा-ब्रह्मपुत्र तथा महानदी डेल्टा के आस-पास के समुदायों को अत्यधिक खतरा होगा।
  • फसल उत्पादन विशेषकर मक्का, चावल, गेहूं आदि में कमी की संभावना से खाद्य उपलब्धता में कमी होगी। साथ ही वेक्टर जनित बीमारियों मलेरिया तथा डेंगू के जोखिम में वृद्धि होगी।

IPCC

IPCC जलवायु परिवर्तन संबंधित वैज्ञानिक आकलन की संयुक्त राष्ट्र संस्था है। इसकी स्थापना 1988 में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम UNEP तथा विश्व मौसम विज्ञान संगठन द्वारा की गई। यह नीति निर्माताओं को जलवायु परिवर्तन संबंधित आकलन नियमित रूप से उपलब्ध करवाता है। वर्तमान में इसके 195 सदस्य देश हैं। इसके तीन कार्य समूह हैं। कार्य समूह-I जलवायु परिवर्तन के भौतिक विज्ञान, कार्य समूह-II प्रभाव तथा अनुकूलन पर तथा कार्य समूह-III जलवायु परिवर्तन शमन पर कार्य करता है।