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हिमालयी क्षेत्र के ग्लेशियरों का पिघलना
विभिन्न भारतीय संस्थान/विश्वविद्यालय/संगठन जैसे- भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI), वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान (WIHG), राष्ट्रीय ध्रुवीय एवं समुद्री अनुसंधान केन्द्र (NCPOR) आदि विभिन्न वैज्ञानिक अध्ययनों समेत हिमनद पिघलने पर नजर रखने के लिए हिमालय हिमनदों की निगरानी करते हैं।
- कुछ हिमालयी हिमनदों पर किए गए द्रव्यमान संतुलन अध्ययनों में पाया गया कि अधिकांश हिमालयी हिमनद पिघल रहे हैं या अलग-अलग दरों पर उनका संकुचन हो रहा है।
- वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान उत्तराखंड में कुछ हिमनदों की निगरानी कर रहा है, जिसमें यह पाया गया कि भागीरथी बेसिन में डोकरियानी हिमनद वर्ष 1995 से 15-20 मीटर प्रति वर्ष की दर से संकुचित हो रहा है, जबकि मंदाकिनी बेसिन में चोराबाड़ी हिमनद वर्ष 2003 से 2017 के दौरान 9-11 मीटर प्रति वर्ष की दर से संकुचित हो रहा है।
- WIHG सुरू बेसिन, लद्दाख में डुरुंग-ड्रुंग तथा पेनसिलुंगपा हिमनदों की भी निगरानी कर रहा है, जो क्रमश: 12 मीटर प्रति वर्ष तथा ~ 5.6 मीटर वर्ष की दर से संकुचित हो रहे हैं।
- हिमनदों के पिघलने से ग्लेशियर बेसिन हाइड्रोलॉजी में परिवर्तन होता है, जिसका हिमालयी नदियों के जल संसाधनों पर महत्वपूर्ण प्रभाव होता है, तथा आकस्मिक बाढ़ एवं अवसाद के कारण हाइड्रोपॉवर प्लांट्स एवं डाउनस्ट्रीम वॉटर बजट पर प्रभाव पड़ता है।
- हिमनद झीलों के परिमाण एवं संख्या बढ़ने, आकस्मिक बाढ़ में तीव्रता आने, तथा ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड्स (GLOFs), उच्च हिमालयी क्षेत्र में कृषि कार्यों पर प्रभाव आदि के कारण भी हिमनद संबंधी जोखिमों के खतरे में वृद्धि होती है।
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