डीपफेक का बढ़ता खतरा
- 20 Jan 2023
7 जनवरी, 2023 को ताइवान की संसद ने डीपफेक पोर्नोग्राफी (Deep-fake Pornography) को नियंत्रित करने से संबंधित एक मसौदा क़ानून को मंजूरी प्रदान की।
- अपने गंभीरसामाजिक-आर्थिक प्रभावों के कारण पिछले कुछ वर्षों से डीपफेक लगातार चर्चा में बना हुआ है।
डीपफेक क्या है?
- परिचय: डीपफेक एक प्रकार का एआई-मैनिप्युलेटेड डिजिटल मीडिया (AI-Manipulated Digital Media) है, इसके अंतर्गत व्यक्तियों और संस्थानों को हानि पहुंचाने के उद्देश्य से आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का उपयोग करके वीडियो, ऑडियो और छवियों को हेरफेर के साथ संपादित किया जाता है।
- संबंधित लाभ: शिक्षा, फिल्म निर्माण, आपराधिक फोरेंसिक गतिविधियों की पहचान, कलात्मक अभिव्यक्ति तथा पहुंच (Accessibility) स्थापित करने जैसे अनेक क्षेत्रों में एआई-जेनरेटेड सिंथेटिक मीडिया या डीपफेक (AI-Generated Synthetic Media or Deepfakes) के कुछ स्पष्ट लाभ भी हैं।
प्रभाव
- लोकतांत्रिक विश्वास में कमी करने में सहायक: किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने, झूठे सबूत गढ़ने (Fabricate Evidence), जनता को धोखा देने तथा नवीन प्रौद्योगिकियों (क्लाउड कंप्यूटिंग, एआई एल्गोरिदम तथा प्रचुर मात्रा में डेटा) के आधार पर लोकतांत्रिक संस्थानों में विश्वास को कम करने में इसका उपयोग किया जा सकता है।
- पोर्नोग्राफी और महिला उत्पीड़न: विशेषज्ञों ने पाया है कि 96% डीपफेक, पोर्नोग्राफी के रूप में उपलब्ध हैं, जिन्हें केवल पोर्नोग्राफिक वेबसाइटों पर ही 135 मिलियन से अधिक बार देखा गया है।
- डीपफेक पोर्नोग्राफी के माध्यम से विशेष रूप से महिलाओं को लक्षित किया जाता है। इसमें अश्लील एवं नकली तथ्यों के आधार पर महिलाओं को धमकी देना, उन्हें भय दिखाना तथा मनोवैज्ञानिक हानि पहुंचाने जैसी गतिविधियां शामिल हैं।
- अन्य प्रभाव: इसके कारण दुष्प्रचार तथा संबंधित अफवाहों (Disinformation and hoaxes) का प्रसार तेजी से होता है तथा वर्तमान समय में इसका उपयोग युद्ध की एक रणनीति के रूप में भी किया जा रहा है। यह सामाजिक कलह को बढ़ावा देने, ध्रुवीकरण करने तथा कुछ मामलों में चुनावी परिणामों को प्रभावित करने में भी सक्षम है।
डीपफेक का सामना करने के लिए विभिन्न देशों द्वारा किए गए प्रयास
- चीन: एक नई नीति का निर्माण किया गया है, जिसमें सेवा-प्रदाताओं तथा उपयोगकर्ताओं (Service Providers and Users) के लिए यह सुनिश्चित करना अनिवार्य बनाया गया है कि उनके द्वारा ऐसा तकनीकी-पारिस्थितिक-तंत्र (Technological-Ecosystem) स्थापित किया जाए, जिससे तकनीकी आधार पर विकृत (Technologically Doctored) सामग्री की उत्पत्ति के स्रोत का पता लगाया जा सके।
- यूरोपीय संघ: यूरोपीय संघ ने वर्तमान में उपयोग किए जा रहे मानकों (Code of Practice) की एक अद्यतन नियम सूची (Rule Book) जारी की है; जिसमें गूगल, मेटा तथा ट्विटर सहित अन्य तकनीकी कंपनियों को अपने प्लेटफॉर्म पर डीपफेक का मुकाबला करने के उपायों को अपनाना अनिवार्य बनाया गया है। गैर-अनुपालन (Non-Compliance) की स्थिति में इन कंपनियों को अपने वार्षिक वैश्विक कारोबार (Annual global turnover) के 6% तक के जुर्माने का सामना करना पड़ सकता है।
- संयुक्त राज्य अमेरिका: डिपार्टमेंट ऑफ होमलैंड सिक्योरिटी (DHS) की सहायता हेतु एक डीपफेक टास्क फोर्स एक्ट (Deepfake Task Force Act) का निर्माण किया गया है। डीपफेक टास्क फोर्स एक्ट के अंतर्गत वार्षिक आधार पर डीपफेक का अध्ययन करने का प्रावधान है।
- भारत: भारत में 'डीपफेक' संबंधी गतिविधियों को नियंत्रित करने के लिए कोई विशिष्ट कानूनी प्रावधान नहीं है। हालांकि, कॉपीराइट उल्लंघन, मानहानि और साइबर अपराधों (Copyright Violation, Defamation and Cybercrimes) के संदर्भ में कानून निर्मित किए गए हैं।