अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता केंद्र (संशोधन) विधेयक, 2022
- 29 Dec 2022
14 दिसंबर, 2022 को राज्य सभा द्वारा पारित किये जाने के पश्चात नई दिल्ली अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता केंद्र (संशोधन) विधेयक, 2022 [New Delhi International Arbitration Centre (Amendment) Bill, 2022] को संसद के दोनों सदनों की मंजूरी प्राप्त हो गई।
- इसे 8 अगस्त, 2022 को लोक सभा द्वारा पारित किया गया था। यह ‘नई दिल्ली अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता केंद्र अधिनियम, 2019’ (New Delhi International Arbitration Centre Act, 2019) में संशोधन करता है।
- मुख्य प्रावधान: यह विधेयक नई दिल्ली अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता केंद्र का नाम बदलकर "भारत अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता केंद्र" (India International Arbitration Centre) करने का प्रावधान करता है।
- विधेयक की आवश्यकता: केंद्र सरकार द्वारा यह महसूस किया गया कि संस्था का वर्तमान नाम शहर-केंद्रित होने का आभास देता है, जबकि यह केंद्र भारत को संस्थागत मध्यस्थता के केंद्र के रूप में उभारने की आकांक्षाओं का प्रतिबिंबित करता है।
विधेयक के अन्य प्रावधान
- मूल अधिनियम के तहत, नई दिल्ली अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता केंद्र (NDIAC) को 'अंतरराष्ट्रीय और घरेलू मामलों में 'मध्यस्थता और सुलह' (Arbitration & Conciliation) के संचालन की सुविधा के लिए प्रयास करने के लिए निर्देशित किया गया था। वहीं नवीन संशोधन विधेयक इस प्रक्रिया में वैकल्पिक विवाद समाधान के अन्य रूपों को भी शामिल करने के लिए क़ानून का विस्तार करता है।
- संशोधन विधेयक के अनुसार मध्यस्थता के संचालन के तरीकों तथा वैकल्पिक विवाद समाधान के अन्य रूपों को केंद्र सरकार द्वारा विभिन्न नियमों के माध्यम से निर्दिष्ट किया जाएगा।
- 2019 के मूल अधिनियम में केंद्र सरकार को अधिनियम के लागू होने की तारीख से 2 वर्ष के भीतर इसे लागू करने में आने वाली किसी भी कठिनाई को दूर करने की अनुमति दी गई थी। नवीन संशोधन विधेयक इस समय अवधि को 5 वर्ष तक के लिए विस्तारित करता है।
एनडीआईएसी के मुख्य उद्देश्य
- विवादों के वैकल्पिक समाधान के मामलों से जुड़े शोध को बढ़ावा देना, प्रशिक्षण देना तथा कॉन्फ्रेंस एवं सेमिनार आयोजित करना।
- मध्यस्थता और सुलह की कार्यवाहियों के लिए सुविधाएं और प्रशासनिक सहयोग प्रदान करना।
- मध्यस्थता और सुलह की कार्यवाहियों के लिए मान्यता प्राप्त प्रोफेशनलों का पैनल तैयार करना।
वैकल्पिक विवाद समाधान (ADR) क्या है?
- एडीआर (Alternative Dispute Resolution) विवाद समाधान का एक ऐसा तंत्र है जिसमें संबंधित पक्ष सहयोगपूर्ण तरीके से सर्वोत्तम समाधान तक पहुंचने के लिए आपस में मिलकर काम करते हैं।
- वैकल्पिक विवाद समाधान, विवाद को हल करने के उन तरीकों को संदर्भित करता है, जो न्यायालयी मुकदमेबाजी के विकल्प हो सकते हैं। इनमें मध्यस्थता, सुलह, समझौता वार्ता, पंचाट तथा लोक अदालत जैसे उपाय शामिल हो सकते हैं।
- आमतौर पर यह तंत्र, विवाद समाधान की प्रक्रिया में एक तटस्थ तीसरे पक्ष का उपयोग करता है, जो विवाद से संबंधित पक्षों को संवाद करने, मतभेदों पर चर्चा करने तथा विवाद को हल करने में मदद करता है।
वैकल्पिक विवाद समाधान का महत्व
- समय की बर्बादी से बचाव: एडीआर के माध्यम से लोग अदालतों की तुलना में कम समय में अपने विवाद को सुलझा सकते हैं।
- लागत प्रभावी: एडीआर की प्रक्रिया काफी कम खर्चीली है, जबकि न्यायालयों में मुकदमेबाजी की प्रक्रिया में काफी खर्च होता है।
- तकनीकी जटिलता रहित: यह प्रक्रिया अदालतों की तकनीकी जटिलताओं से मुक्त है तथा इसमें विवाद को सुलझाने में अनौपचारिक तरीके अपनाए जाते हैं।
- मामले के बारे में सही तथ्यों का उजागर होना: चूंकि यह प्रक्रिया अदालती प्रक्रिया की तुलना में अपेक्षाकृत अनौपचारिक प्रकृति की होती है, इसलिए इस प्रक्रिया में विवाद से जुड़े पक्ष अधिक प्रभावी रूप में अपनी बात रख पाते हैं।
- विवाद का स्वतः निपटान: चूंकि एडीआर की प्रक्रिया में संबंधित पक्ष एक ही मंच पर अपने मुद्दों पर एक साथ चर्चा करते हैं, ऐसे में विवाद के स्वतः निपटान की संभावना भी बढ़ जाती है। साथ ही यह प्रक्रिया पक्षों के बीच संघर्ष को बढ़ने से भी रोकती है।
वैकल्पिक विवाद समाधान की सीमाएं
- अपील का न होना: वैकल्पिक विवाद समाधान तंत्र के द्वारा दिए गए फैसलों में अपील की गुंजाइश कम या न के बराबर होती है; ऐसे में यदि फैसले के संबंध में कोई समस्या प्रकट होती है, तो उसका समाधान संभव नहीं होता। यानी इसमें अंतिम समाधान की कोई गारंटी नहीं होती।
- विभिन्न क़ानून: घरेलू और अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता के लिए अलग-अलग क़ानूनों के कारण, अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता से संबंधित कानूनों की प्रयोज्यता का पता लगाना मुश्किल होता है।
- सांस्कृतिक या भाषा संबंधी बाधाएं: दो क्षेत्रों की भाषा एवं संस्कृति में विसंगति के कारण, इस अंतर को पाटना और एक एकीकृत समाधान पर आना मुश्किल हो जाता है।
- जागरूकता की कमी: अधिकांश लोग अपने विवादों के समाधान के लिए अभी भी अदालतों में जाना पसंद करते हैं और इन विकल्पों और कार्यप्रणाली से अनभिज्ञ हैं।
- संस्थागत अवसंरचना की कमी: भारत में ADR को बढ़ावा देने के लिए संस्थागत अवसंरचना की कमी है, इसी कारण से इसे लागू करना चुनौतीपूर्ण है।