लाचित बोरफुकन की 400वीं जयंती
- 28 Nov 2022
23 नवंबर, 2022 को नई दिल्ली में अहोम साम्राज्य के सेनापति 'लाचित बोरफुकन' (Lachit Borphukan) की 400वीं जयंती के 3 दिवसीय समारोह की शुरुआत की गई।
- केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारामन ने इस अवसर पर विज्ञान भवन में प्रदर्शनी का उद्घाटन किया। इस प्रदर्शनी में अहोम साम्राज्य और लाचित बोरफुकन तथा अन्य वीरों की जीवन उपलब्धियां दिखाई गईं।
लाचित बोरफुकन कौन थे?
- अहोम राजाओं (Ahom kings) की पहली राजधानी चराइदेव (Charaideo) में 24 नवंबर, 1622 को उनका जन्म हुआ था।
- लाचित बोरफुकन वर्तमान के असम में स्थित अहोम साम्राज्य (Ahom dynasty) के सेनापति थे।
- उन्होंने मुगल सेना के खिलाफ दो लड़ाइयों का नेतृत्व किया- सराईघाट का युद्ध (Battle of Saraighat) तथा अलाबोई का युद्ध (Battle of Alaboi)।
- उन्हें सराईघाट के युद्ध (1671) में अनुकरणीय सैन्य नेतृत्व के लिए जाना जाता है।
- लाचित बोरफुकन अपनी महान नौ-सैन्य रणनीतियों के लिए लिए जाने गए। उनके द्वारा पीछे छोड़ी गई विरासत ने भारतीय नौसेना को मजबूत करने तथा अंतर्देशीय जल परिवहन को पुनर्जीवित करने के पीछे प्रेरणा के रूप में काम किया।
- लाचित बोरफुकन के पराक्रम और सराईघाट की लड़ाई में असमिया सेना की विजय का स्मरण करने के लिए संपूर्ण असम राज्य में प्रति वर्ष 24 नवंबर को लाचित दिवस (Lachit Diwas) मनाया जाता है।
सराईघाट का नौसैनिक युद्ध (1671 ईस्वी)
- सराईघाट का युद्ध मुगल साम्राज्य और अहोम साम्राज्य के बीच लड़ा गया एक नौसैनिक युद्ध था।
- इस युद्ध में लाचित बोरफुकोन के वीरतापूर्ण नेतृत्व के कारण मुगलों की निर्णायक हार हुई।
- उन्होंने इलाके के शानदार उपयोग, गुरिल्ला रणनीति, सैन्य आसूचना तथा मुगल सेना की एकमात्र कमजोरी 'नौसेना' का फायदा उठाकर मुगल सेना को हराया।
- सरायघाट की लड़ाई गुवाहाटी में ब्रह्मपुत्र के तट पर लड़ी गई थी।
अलाबोई का युद्ध (1669 ईस्वी)
- यह युद्ध 5 अगस्त, 1669 को उत्तरी गुवाहाटी में दादरा के पास अलाबोई हिल्स (Alaboi Hills) में लड़ा गया। औरंगजेब ने वर्ष 1669 में 'राजपूत राजा राम सिंह प्रथम' (Rajput Raja Ram Singh I) के अधीन आक्रमण का आदेश दिया, जिन्होंने एक संयुक्त मुगल और राजपूत सेना का नेतृत्व किया।
- बोरफुकन, गुरिल्ला युद्ध का सहारा लेते हुए, मुग़ल-राजपूत सेना पर बार-बार हमले करते रहे, जब तक कि राम सिंह प्रथम ने अहोमों पर अपनी पूरी सेना लगाकर उन्हें हरा नहीं दिया। अहोमों को इस युद्ध में गंभीर पराजय का सामना करना पड़ा और उनके हजारों सैनिक मारे गए।
अहोम साम्राज्य (1228-1826)
- यह असम में ब्रह्मपुत्र घाटी में एक 'उत्तर मध्यकालीन' साम्राज्य था। अहोम राजाओं की राजधानी शिवसागर ज़िले में वर्तमान जोरहाट के निकट गढ़गाँव में थी।
- अहोम राजाओं ने 13वीं और 19वीं शताब्दी के मध्य, वर्तमान असम एवं पड़ोसी राज्यों में स्थित क्षेत्र के एक बड़े हिस्से पर शासन किया।
- यह साम्राज्य लगभग 600 वर्षों तक अपनी संप्रभुता बनाए रखने और पूर्वोत्तर भारत में मुगल विस्तार का सफलतापूर्वक विरोध करने के लिए जाना जाता है।
- मुग़लों द्वारा पूरे भारत पर अपना अधिकार कर लेने के बावजूद असम में अहोम राज्य 6 शताब्दी (1228-1835 ई.) तक क़ायम रहा। इस अवधि में 39 अहोम राजा गद्दी पर बैठे।
- इसकी स्थापना मोंग माओ (Mong Mao) के एक ताई राजकुमार 'सुकाफा' (Tai prince 'Sukaphaa') ने की थी।
- 16वीं शताब्दी में सुहंगमुंग (Suhungmung) के तहत राज्य का अचानक विस्तार हुआ और यह राज्य चरित्र में बहु-जातीय बन गया, जिसने संपूर्ण ब्रह्मपुत्र घाटी के राजनीतिक और सामाजिक जीवन पर गहरा प्रभाव डाला।