भारत की आर्कटिक नीति
- 31 Mar 2022
केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान राज्य मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने 17 मार्च, 2022 को नई दिल्ली में 'भारत की आर्कटिक नीति' का विमोचन किया।
भारत की आर्कटिक नीति का उद्देश्य: आर्कटिक क्षेत्र के साथ विज्ञान और अन्वेषण, जलवायु और पर्यावरण संरक्षण, समुद्री और आर्थिक सहयोग में राष्ट्रीय क्षमताओं और दक्षताओं को मजबूत करना है।
- आर्कटिक में भारत के हितों की खोज में अंतर-मंत्रालयी समन्वय करना।
- भारत की जलवायु, आर्थिक और ऊर्जा सुरक्षा पर आर्कटिक में जलवायु परिवर्तन के प्रभाव की समझ को बढ़ाना।
- ध्रुवीय क्षेत्रों और हिमालय के बीच संबंधों का अध्ययन करना।
- विभिन्न आर्कटिक मंचों के तहत भारत और आर्कटिक क्षेत्र के देशों के बीच सहयोग को गहरा करना।
आर्कटिक परिषद: आर्कटिक परिषद में आठ देश- कनाडा, डेनमार्क, फिनलैंड, नॉर्वे, आइसलैंड, रूस, स्वीडन और संयुक्त राज्य अमेरिका शामिल हैं।
- भारत को 'पर्यवेक्षक' सदस्य का दर्जा प्राप्त है और यह आर्कटिक परिषद में कई बैठकों में भाग लेता है, जो ज्यादातर अनुसंधान पर केन्द्रित होती हैं।
भारत की आर्कटिक संबंधित गतिविधियां: आर्कटिक के साथ भारत की भागीदारी एक सदी पहले की है, जब पेरिस में फरवरी 1920 में 'स्वालबार्ड संधि' पर हस्ताक्षर किए गए थे।
- 2008 से इस क्षेत्र में भारत का अनुसंधान स्टेशन रहा है और इसके पास दो वेधशालाएं भी हैं।
- भारत का अब एक एकल स्टेशन 'हिमाद्री' है, जो नी-अलेसंड (Ny-Alesund) स्वालबार्ड, एक नॉर्वेजियन द्वीपसमूह में है।
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