जम्मू और कश्मीर के लिए परिसीमन आयोग
- 19 Feb 2020
- यह एक ऐसा कदम है जो केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर (J&K) में विधानसभा चुनावों का मार्ग प्रशस्त करेगा.केंद्र ने विधानसभा सीटों के नए परिसीमन की प्रक्रिया के साथ-साथ संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाओं के पुनर्सामंजस्य की प्रक्रिया शुरू कर दी है.
- विधायी मामलों के मंत्रालय (MLA) के एक अनुरोध के आधार पर, मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) ने चुनाव आयुक्त सुशील चंद्रा को जम्मू-कश्मीर के लिए प्रस्तावित परिसीमन आयोग के प्रतिनिधि के रूप में नामित किया है.
- 2019 से पहले जम्मू और कश्मीर राज्य में द्विसदनीय विधायिका, एक विधान सभा (निम्न सदन) और एक विधान परिषद (उच्च सदन) थी. अगस्त 2019 में भारत की संसद द्वारा पारित जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम ने इसे एक असंगठित विधायिका के साथ बदल दिया जबकि राज्य को केंद्र शासित प्रदेश में भी पुनर्गठित किया.
ज़रूरत
- यद्यपि जम्मू में आबादी पिछले कुछ वर्षों में बढ़ी है बावजूद इसके कश्मीर में विधानसभा क्षेत्रो का अनुपातिक रूप से बड़ा हिस्सा है. इसका मतलब है कि कश्मीर घाटी में मजबूत कोई एक पार्टी राज्य सरकार बनाने में सक्षम है.
जम्मू और कश्मीर में परिसीमन का इतिहास
- जम्मू और कश्मीर की लोकसभा सीटों का परिसीमन भारतीय संविधान द्वारा शासित है, लेकिन इसकी विधानसभा सीटों का परिसीमन (विशेष दर्जा समाप्त होने से पहले) जम्मू और कश्मीर संविधान तथा जम्मू और कश्मीर जन प्रतिनिधित्व अधिनियम - 1957 द्वारा अलग से शासित किया गया था.
- जहां तक लोकसभा सीटों के परिसीमन का सवाल है, 2002में हुए आख़िरी परिसीमन आयोग को यह काम नहीं सौंपा गया था. इसलिए जम्मू और कश्मीर कीसंसदीय सीटें 1971 की जनगणना के आधार पर परिसीमित हैं.
- राज्य में जब पिछली बार परिसीमन बहुत पहले 1995 में न्यायमूर्ति केके गुप्ता आयोग द्वारा अत्यंत कठिन परिस्थितियों किया गया था. तब यहाँ राष्ट्रपति शासन भी चल रहा था.
- इसके बाद 2002 में फारूक अब्दुल्ला की अगुवाई वाली सरकार ने जन अधिनियम अधिनियम-1957 और जम्मू-कश्मीर के संविधान की धारा 47 (3) में संशोधन करके 2026 तक परिसीमन पर रोक लगा दिया.
आयोग की संरचना
- परिसीमन आयोग अधिनियम - 2002 की धारा 3 के अनुसार, केंद्र द्वारा नियुक्त परिसीमन आयोग में तीन सदस्य होने चाहिए:
- चेयरपर्सन के रूप में सुप्रीम कोर्ट के एक सेवारत या सेवानिवृत्त न्यायाधीश
- सीईसी द्वारा नामित मुख्य चुनाव आयुक्त या चुनाव आयुक्त
- राज्य चुनाव आयुक्त पदेन सदस्य के रूप में
सौंपा गया कार्य
- परिसीमन पैनल केंद्रशासित प्रदेश को विधानसभा क्षेत्रों में विभाजित करके निर्वाचन क्षेत्रों की सीमा तय करेगा. इसके साथ कौन सा निर्वाचन क्षेत्रSC / ST के लिए आरक्षित होगा इसका भी निर्धारण परिसीमन पैनल द्वारा होगा.
- इसे UT की सीमाओं के समायोजन और संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों की सीमा के विवरण का भी काम सौंपा गया है.
सीटों में वृद्धि
- अधिनियम के अनुसार, परिसीमन के बाद 2011 की जनगणना के आधार पर जम्मू और कश्मीर की विधानसभा में सीटों की संख्या 107 से बढ़कर 114 हो जाएगी.
- जम्मू और कश्मीर में कुल सीटों में से 24 सीटेंबारहमासी खाली रहती हैं क्योंकि उन्हें पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (POK) के लिए आवंटित किया गया है.
- UT जम्मू-कश्मीर में लोकसभा की पांच सीटें होंगी, जबकि लद्दाख में एक सीट होगी.
परिसीमन क्या है?
- परिसीमन का शाब्दिक अर्थ है किसी देश या प्रांत के निर्वाचन क्षेत्रों की सीमा तय करने की क्रिया या प्रक्रिया.
- परिसीमन का काम एक उच्च शक्ति निकाय को सौंपा गया है. ऐसे निकाय को परिसीमन आयोग या सीमा आयोग के रूप में जाना जाता है.
उद्देश्य
- जनसंख्या के समान क्षेत्रों को समान प्रतिनिधित्व प्रदान करना.
- इसका लक्ष्य है भौगोलिक क्षेत्रों के एक निष्पक्ष विभाजन करना ताकि एक चुनाव में एक राजनीतिक दल को दूसरों के प्रति फायदा न हो.
संवैधानिक प्रावधान
- संविधान के अनुच्छेद 82 के तहत संसद,कानून द्वारा हर जनगणना के बाद परिसीमन अधिनियम लागू करती है. लागू होने के बाद, केंद्र सरकार एक परिसीमन आयोग का गठन करती है.जिसमें एक सेवानिवृत्त सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश, मुख्य चुनाव आयुक्त और संबंधित राज्य चुनाव आयुक्त शामिल होते हैं.
परिसीमन की प्रक्रिया
- अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित सीटों के निर्धारण (जहाँ उनकी जनसंख्या अपेक्षाकृत ज्यादा है) का कार्य आयोग को सौंपा गया है. यह सब नवीनतम जनगणना के आधार पर किया जाता है. आयोग के सदस्यों के बीच मतभेद के मामले में बहुमत की राय प्रबल होती है.
- जनता की बात सुनने के बाद यह आपत्तियों और सुझावों पर विचार करता है और यदि ज़रूरत हुई तो मसौदे के प्रस्ताव में परिवर्तन करता है.
- अंतिम आदेश भारत के राजपत्र और राज्य राजपत्र में प्रकाशित होता है और राष्ट्रपति द्वारा निर्दिष्ट तिथि पर लागू होता है.
अब तक परिसीमन आयोग
- अब तक 4 बार परिसीमन आयोगों का गठन किया गया है:
- 1952 में परिसीमन आयोग अधिनियम-1952 के तहत
- 1963 में परिसीमन आयोग अधिनियम-1962 के तहत
- 1973 में परिसीमन आयोग अधिनियम-1972 के तहत
- 2002 में परिसीमन आयोग अधिनियम-2002 के तहत.
- 1981 और 1991 में जनगणना के बाद कोई परिसीमन नहीं हुआ.
महत्व
- चुनावी सीमाओं का परिसीमन इन निर्वाचन क्षेत्रों के भीतर रहने वाले मतदाताओं, राजनीतिक समूहों और समुदायों के हितों के साथ-साथ इन निर्वाचन क्षेत्रों की सेवा के लिए चुने गए प्रतिनिधियों के लिए बड़े परिणाम हो सकते हैं. अंततःनिर्वाचन क्षेत्र की सीमाओं से चुनाव परिणाम और विधायिका की राजनीतिक संरचना प्रभावित हो सकती है.
- चुनावी सीमा, परिसीमन प्रक्रिया और इसके प्रभाव के महत्व को पहचानने में विफलता से इसके जटिल परिणाम हो सकते हैं: यदि हितधारकों को संदेह है कि चुनावी सीमाओं का गलत तरीके से हेरफेर किया गया है जो कुछ समूहों को दूसरों की कीमत पर लाभान्वित कर रहा है. इससे चुनाव प्रक्रिया और उसके परिणाम की विश्वसनीयता और वैधता प्रभावित होगी.
- परिसीमन, लोकतंत्र एक अभिन्न अंग है जो प्रभावी प्रतिनिधित्व और बेहतर शासन व्यवस्था प्राप्त कराने में मदद करता है. इसके भीतर जितनी कम अड़चनें होंगीउतना ही यह अपने उद्देश्य में योगदान दे पायेगा.