कैबिनेट की जहाज पुनर्चक्रण विधेयक-2019 को मंजूरी
- 23 Nov 2019
- 20 नवंबर, 2019 कोकेंद्र ने जहाज पुनर्चक्रण विधेयक, 2019 (Recycling of Ships Bill, 2019)के साथ-साथ हांगकांग इंटरनेशनल कन्वेंशन फॉर सेफ एंड एनवायरनमेंटली साउंड रीसाइक्लिंग शिप्स, 2009 के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी।
- 13 दिसंबर, 2019 को भारत के राष्ट्रपति की स्वीकृति मिलने के बाद यह अधिनियम बन गयाहै |
- हांगकांग अंतर्राष्ट्रीय कन्वेंशन को जहाज पुनर्चक्रण विधेयक, 2019 के विभिन्न प्रावधानों द्वारा लागू किया जाएगा |
लक्ष्य
- भारत में जहाजपुनर्चक्रण उद्योग को बढ़ावा देना |
विधेयक की जरूरत
- भारत वैश्विक जहाज पुनर्चक्रण उद्योग में25% से अधिक की हिस्सेदारी रखताहै जोविश्व में सर्वाधिक है। लेकिन यह उद्योग श्रमिकों की सुरक्षा के साथ-साथ पर्यावरण की चिंता जैसे मुद्दों से ग्रस्त है।
मुख्य विशेषताएं
रीसाइक्लिंग सुविधाओं का प्राधिकरण
- विधेयक के तहत, जहाज पुनर्चक्रण सुविधाओं को प्रदान करने वाले संस्थानों को अधिकृत(Authorized)होना होगा और जहाजों को केवल ऐसे अधिकृत जहाज पुनर्चक्रण सुविधाओं(facilities) में हीजहाजों कापुनर्नवीनीकरण किया जाएगा।
जहाज-विशिष्ट पुनर्चक्रण योजना
- विधेयक यह भी प्रावधान करता है कि जहाजों को एक जहाज-विशिष्ट पुनर्चक्रण योजना के अनुसार पुनर्नवीनीकरण किया जाएगा। भारत में पुनर्नवीनीकरण किए जाने वाले जहाजों को हांगकांग कन्वेंशन (एचकेसी) के अनुसार ‘तैयार पुनर्चक्रण प्रमाण पत्र’ (Ready to Recycling Certificate) प्राप्त करने की आवश्यकता होगी।
खतरनाक सामग्री पर प्रतिबंध
- यह खतरनाक सामग्री के उपयोग या स्थापना को प्रतिबंधित करता है, जो इस बात पर ध्यान दिए बिना लागू होता है कि कोई जहाज रीसाइक्लिंग के लिए है या नहीं। जहाजों में प्रयुक्त खतरनाक सामग्री की सूची पर जहाजों का सर्वेक्षण और प्रमाणित किया जाएगा।
मौजूदा जहाजों के लिए ग्रेस पीरियड
- नए जहाजों के लिए, खतरनाक सामग्री के उपयोग पर इस तरह का प्रतिबंध तत्काल होगा, अर्थात, जिस दिन से यह कानून लागू होता है, जबकि मौजूदा जहाजों के अनुपालन के लिए पांच साल की अवधि होगी।
- हालांकि, खतरनाक सामग्री के उपयोग पर प्रतिबंध सरकार द्वारा संचालित युद्धपोतों और गैर-वाणिज्यिक जहाजों पर लागू नहीं होगा।
प्रभाव
- जहाज पुनर्चक्रण उद्योग को नियमित करना: विधेयक अंतरराष्ट्रीय मानकों को निर्धारित करता है और ऐसे मानकों के प्रवर्तन के लिए वैधानिक तंत्र को स्थापित करता है | जिससे की जहाज पुनर्चक्रण उद्योग का विनियमन के माध्यम से विकास हो सके।
हांगकांग इंटरनेशनल कन्वेंशन फॉर सेफ एंड एनवायरनमेंटली साउंड रीसाइक्लिंग शिप्स
लक्ष्य
महत्ता
भारत के लिए लाभ
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भारत में जहाज पुनर्चक्रण उद्योग में मुद्दे
सुरक्षा के मुद्दे
- ऐसे किन्द्रों में आमतौर पर व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरणों की कमी होती है औरयदि होती भी है तो उनको उपयोग करने काप्रयाप्त प्रशिक्षणनहींदिया गया होता है। अपर्याप्त सुरक्षा नियंत्रण औरनिगरानी एवं विस्फोटों का उच्च जोखिम खतरनाक काम की स्थिति पैदा करता है।
- मानक के बारे में मानदंडों के अभाव के कारण जोखिम को कम करने या खत्म करने के उपायों को अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है और अंततः दुर्घटनाएं होती हैं।
- कार्य प्रक्रियाओं के समन्वय का अभाव, सुविधाओं की अनुपस्थिति और सुरक्षा नियंत्रण की अनुपस्थिति जोखिम का कारण है जो शारीरिक चोटों का कारण बनती है।
- श्रमिक की मृत्यु के लिए किसी भी यार्ड के मालिक को कभी भी जिम्मेदार नहीं ठहराया जाता है जो इस मुद्दे के निराकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते है |
स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं
- जहाज तोड़ने वाले समुद्र तटों पर, एस्बेस्टस और फाइबर खुली हवा में चारों ओर उड़ते हैं, और श्रमिक अपने नंगे हाथों से एस्बेस्टस इन्सुलेशन सामग्री निकालते हैं। जहाजों के कई हिस्सों में पाए जाने वाले अन्य भारी धातुओं (जैसे पेंट, कोटिंग्स, एनोड और बिजली के उपकरण से) के संपर्क में आने से कैंसर हो सकता है और रक्त वाहिकाओं को भी नुकसान हो सकता है।
- श्रमिक दूषित कीचड़ में धंसे हुए भारी धातुओं और जहरीले पेंट कणों में अपना पूरा दिन बिताते हैं ।
- श्रमिकों की स्वास्थ्य सेवाओं और आवास तक बहुत सीमित पहुंच होती है, कल्याण और सैनिटरी सुविधाओं के कमी श्रमिकों की दुर्दशा को और बढ़ा देती हैं। एक जहाज को तोड़ने वाली जगह पर तैनात हजारों कर्मचारियों के बावजूद, शायद ही किसी भी स्थल पर डॉक्टरों की उपस्थिति या क्लीनिककी व्यवस्था होती है।
अपशिष्ट प्रबंधन के मुद्दे
- जहाज पुनर्चक्रण उद्योग द्वारा उत्पन्न कचरे को मोटे तौर पर खतरनाक और गैर-खतरनाक कचरे में वर्गीकृत किया जा सकता है। खतरनाक कचरे की प्रवाह में एस्बेस्टस, पॉलीक्लोराइनेटेड बिपेनिल (पीसीबी), पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन (पीएएच), टेंजाइलेटिन टीबीटी, भारी धातुएं आदि शामिल हैं।
- ठोस कचरे के अलावा, एयर कंडीशनिंग सिस्टम से अमोनिया, क्लोरोफ्लोरोकार्बन (सीएफसी) जैसी गैसें और तेल टैंकरों की पाइपलाइनों में ज्वलनशील गैसें मौजूद हो सकती हैं। हालांकि ये अपशिष्ट जहाज के कुल डेड वेट कालगभग 1% होते हैं, परन्तुइनसे स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों के लिए एक बड़ा जोखिम होता है।
पर्यावरण के मुद्दें
जल प्रदूषण
- जल निकाय, मुख्य रूप से समुद्री वातावरण, निलंबित ठोस पदार्थों, नाइट्रेट्स, फॉस्फेट, भारी धातुओं, तेल और जहाज के तल में एकत्र गन्दा पानी से प्रदूषित हो जाता है।
- तेल फैल जाता है, भारी धातुएँ जैसे सीसाऔरपारा जैसे टेंजेनिल्टिन (टीबीटी) समुद्री पारिस्थितिक तंत्र के लिए खतरा बनते हैं जिसमें पक्षी और स्तनधारी, ज़ूप्लांकटन, फाइटोप्लांकटन, आदि शामिल हैं।
मृदा प्रदूषण
- पेंट चिप्स, एस्बेस्टस फाइबर और पॉलीक्लोराइनेटेड बाइफिनाइल्स (पीसीबी) में पाए जाने वाले भारी धातु (सीसा, कैडमियम) जहाज पुनर्चक्रण स्थल के आसपास फैल जाते है जिससे मिट्टी के दूषित होने के संभावना बनीरहती हैं।
वायु प्रदूषण
- जहाज पर पेंट और अन्य प्रकार की कोटिंग आमतौर पर ज्वलनशील होते हैं और इसमें पीसीबी, भारी धातु (जैसे सीसा, कैडमियम, क्रोमियम, जस्ता और तांबा) जैसे जहरीले यौगिक और टीबीटी जैसे कीटनाशक होते हैं।
- जब रबर पाइप और अन्यगैर-पुनर्नवीनीकरण पदार्थों को खुली हवा में जला दी जाती हैतबइनसे जहरीले धुएं उत्पन्न होते है | इनसे संभवतः डाइऑक्सिन, फुरेंस और पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन (पीएएच) उत्पन्न होते हैं ।
- जहाज की स्ट्रिपिंग के दौरान उत्पन्न सूक्ष्म कण,प्रशीतन प्रणाली से उन्मुक्त सीएफसी या अन्य रसायनों के रिसावके कारण वायु प्रदूषण बढ़ता है।
आगे की राह
- भारत में जहाज पुनर्चक्रण उद्योग वैश्विक जहाज पुनर्चक्रण व्यवसाय का एक हिस्सा है।अन्य उद्योगों की तरह इस उद्योग मेंकई चुनौतियां और अवसर हैं। जहाज पुनर्चक्रणएक हरी प्रक्रिया (green process) है जिसमें पुराने एवं उपयोग में ना आने वाले जहाज से पुन: उपयोग किये जा सकने वाले भाग प्राप्त किया जाता है |लेकिन इस जटिल प्रक्रिया में श्रम सुरक्षा, स्वास्थ्यऔरपर्यावरण जैसे मुद्दे एवं चुनौतियां हैं जो आलोचना का विषय है।
- इसके कमियों के बावजूद, सैद्धांतिक रूप से, शिपब्रेकिंग के कई लाभ हैं - यह प्राकृतिक संसाधनों के खनन की आवश्यकता को कम करके स्थायी विकास (sustainable development) को बढ़ावा देता है | यह स्टील के उत्पादन में योगदान देता है जो रोजगार सृजन में मदद करता है। इस उद्योग के भारत में प्रमुख आर्थिक गतिविधि होने की भरपूर संभावना है।