पेरिस समझौते से यूएसए बाहर
- 19 Nov 2019
- नवंबर 2019 के पहले सप्ताह में, ट्रम्प प्रशासन नेसंयुक्त राष्ट्र को पेरिस जलवायु समझौते से हटने कीऔपचारिक नोटिस दी।
- यूएस स्टेट डिपार्टमेंट के अनुसार, नोटिफिकेशन को देने के एक साल बाद निकासी प्रभावी होगी।
- संयुक्त राज्य अमेरिका, संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों में सेविश्व का एकमात्र सदस्य देशहोगा जो अब समझौते का हिस्सा नहीं है।
पृष्ठभूमि
- पेरिस समझौता के एक प्रावधान के कारण 2017 में ट्रम्प की घोषणा के बावजूदसमझौते से पीछे हटने के औपचारिक कदम के लिए इस वर्ष तक इंतजार करना पड़ा। 2015कापेरिस समझौता4 नवंबर, 2016 को लागू हुआ था |इसके लागू होने की तारीख से तीन साल तकपरिबंधन अवधि थी ।
- अधिसूचना अमेरिका के समझौते से हटने के लिए औपचारिक एवं लंबी प्रक्रिया शुरू करती है। इसका मतलब यह होगा कि अमेरिका स्पेन के मैड्रिड में दिसंबर, 2019 में होने वाली चर्चाओं का हिस्सा बना रहेगा।
बाहर निकलने का कारण
- अपने 2016 के राष्ट्रपति चुनाव अभियान के दौरान, डोनाल्ड ट्रम्प ने कहा था कि पेरिस समझौता संयुक्त राज्य अमेरिका के हित के लिए अनुचित है।
- वर्तमान सरकार का मानना है कि पेरिस समझौता अमेरिकी प्रतिस्पर्धा को कम करता है और रोजगार और पारंपरिक ऊर्जा उद्योगों दोनों को प्रभावित करता है।
- USA के इस कदम का नकारात्मक प्रभाव‘ग्रीन क्लाइमेट इनिशिएटिव’ के वित्तीयन पर पड़ेगा
- शेल गैस के विकास के कारण, संयुक्त राज्य अमेरिका के कार्बन उत्सर्जन में पिछले वर्षों में कमी आई है, इसलिए USA महसूस करता है कि कठोर नियमों की बहुत आवश्यकता नहीं है।
- पेरिस समझौता तभी सफल होगा जब सभी देश अपने आशयित राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (INDCs) को पूरा करेंगे लेकिन जैसा कि समझौता कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं है, दूसरे देश लचीलेपन के कारण अबाध्यकारी लक्ष्य का लाभ लेंगे जबकि अमेरिका को गंभीर नियमों का सामना करना पड़ेगा।
पेरिस समझौता
लक्ष्य
महत्वपूर्ण बातें
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पेरिस समझौते से बाहर निकलने हेतु एक देश के लिए प्रक्रिया
- समझौते के अनुच्छेद 28 के अनुसार, कोई सदस्य समझौते में शामिल होने के तीन साल बाद औपचारिक तौर परबाहर निकलने की प्रक्रिया शुरू कर सकता है।
- निकासी की अधिसूचना के डिपॉजिटरी द्वारा स्वीकार की तारीख से एक वर्ष की समाप्तिपर, या इस तरह की बाद की तारीख पर निकासी की अधिसूचना में निर्दिष्ट किया हो, किसी भी तरह की निकासी प्रभावी होगी।
समझौते पर लौटने की यूएसए की संभावना
- पेरिस समझौते से जुड़े किसी देश पर कोई रोक नहीं है, बाद में संयुक्त राज्य अमेरिका को समझौते पर लौटने का अवसर प्रदान करता है।
- समझौते के अनुच्छेद 21में कहा गया है कि एक देश जो समझौते के लिए एक पक्ष नहीं है, वह औपचारिक अधिसूचना प्रस्तुत करके इसमें शामिल हो सकता है, जो 30 दिन बाद प्रभावी होगा।
- यूएसए के बाहर निकलने का प्रभाव
- संयुक्त राज्य अमेरिका ग्रीनहाउस गैसों का विश्व का दूसरा सबसे बड़ा उत्सर्जक है। पेरिस समझौते के प्रति अपनी प्रतिबद्धता के तहत, संयुक्त राज्य अमेरिका ने 2005 के स्तर से वर्ष 2025 तक अपने उत्सर्जन को 26 से 28 प्रतिशत कम करने का वादा किया था।
- यह कदम वैश्विक तापमान वृद्धि को पूर्व-औद्योगिक स्तर से 2 डिग्री सेल्सियस के भीतर रखने के विश्व के उद्देश्य को गंभीरता से खतरे में डाल सकता है।
- जलवायु कार्यों को सक्षम करने के लिए वित्तीय प्रवाह पर सबसे बड़ा प्रभाव हो सकता है। संयुक्त राज्य अमेरिका वैश्विक स्तर पर वित्तीय संसाधनों को जुटाने में एक प्रमुख भूमिका निभाता है, और इसकी अनुपस्थिति उस प्रयास को गंभीरता से रोक सकती है।
- हालांकि, पेरिस समझौते से हटने से, अमेरिका किसी उत्सर्जन लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए बाध्यनहीं होगा है जो पेरिस समझौते का लक्ष्य कोप्राप्त करने के प्रयास को और अधिक कठिन एवं महंगा बना देगा।
- अमेरिका के बाहरनिकलने का मतलब होगा कि अन्य देशों को ग्रीनहाउस उत्सर्जन पर अंकुश लगाने के लिए अपने प्रयासों को आगे बढ़ाना होगा। इसका मतलब सबसे बड़ा और तीसरा सबसे बड़ा उत्सर्जक चीन और भारत जैसे विकासशील देशों पर दबाव बढ़ सकता है।
आगे की राह
- अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के लिए, अमेरिका के बाहर निकलने से अन्य सदस्य देशों से जलवायु के नेतृत्व का अवसर मिलता है। ऐतिहासिक रूप सेयूरोपीय संघ के साथ संयुक्त राज्य अमेरिकाअब तक रियो से पेरिस तक के जलवायु एजेंडे को आगे बढ़ाने में प्रमुख भूमिका निभाई है।
- भले ही संयुक्त राज्य अमेरिका भविष्य में पेरिस समझौते को फिर से लागू करे, बल्कि अन्य देश याद रखेगा कि संयुक्त राज्य अमेरिका नेवैश्विक समर्थन प्राप्त समझौते को छोड़ दिया था | एक विश्वसनीय अंतर्राष्ट्रीय साझेदार के रूप में अमेरिका की प्रतिष्ठा को पहले ही नुकसान हो चुका है जिसे सुधारने में लंबा समय लगेगा।
- हालांकि, विकासशील देशों से कार्बन उत्सर्जन में तेजी से वृद्धि को देखते हुए, इन देशों से जलवायु नेतृत्व और कार्रवाई वैश्विक उत्सर्जन दर को सीमित करने में महत्वपूर्ण भूमिका होगी। दो सबसे अधिक आबादी वाले और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जक देशों - चीन और भारत से उत्साहजनक संकेत देखे जाते हैं, जो वर्तमान में अपने एनडीसी संकल्पों को प्राप्त करने पर कार्य कर रहे हैं।
- पिछले कुछ वर्षों में, चीन ने अक्षय उर्जा के क्षेत्र में काफी कामयाबी प्राप्त की है | चीन की पवन और सौर ऊर्जा के क्षेत में सबसे अधिक स्थापित क्षमता है |इसने विश्व की सबसे बड़ी कार्बन ट्रेडिंग योजना पेश की है और विश्वसनीय एवं प्राप्त करने योग्य प्रतिबद्धताएं बनाईं। दूसरी ओर, भारत 2022 तक अपने 40% अक्षय ऊर्जा क्षमता के एनडीसी लक्ष्य को पूरा करने के राह पर है। इसने सौर ऊर्जा के दोहन के लिए 120 से अधिक देशों के अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (आईएसए) की शुरुआत की है और आने वाले वर्षों में वैश्विक जलवायु शासन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने का अनुमान है।
- अमेरिका के बाहर निकलने से शेष देशों के लिए सामूहिक रूप से समझौते को लागू करना और मजबूत राजनीतिक प्रतिबद्धता दिखाना महत्वपूर्ण है ताकि ग्रीन हाउस गैसों की उत्सर्जन लक्ष्यों को पेरिस समझौते के अनुरूप प्राप्त किया जा सके।