राज्यपाल के निर्णय पर संवैधानिक बहस
- 07 Feb 2025
6 फरवरी, 2025 को, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने तमिलनाडु के राज्यपाल द्वारा राज्य विधानमंडल द्वारा पारित 12 विधेयकों पर अनुमति देने में अत्यधिक देरी पर चिंता व्यक्त की।
मुख्य बिंदु:
- अत्यधिक देरी: राज्यपाल ने मुख्य रूप से उच्च शिक्षा और विश्वविद्यालय नियुक्तियों से संबंधित 12 विधेयकों पर तीन साल से अधिक समय तक सहमति रोक रखी है।
- संवैधानिक चिंताएं: सर्वोच्च न्यायालय ने देरी के लिए राज्यपाल के तर्क पर सवाल उठाया, इस बात पर जोर दिया कि राज्यपाल की भूमिका विधायी प्रक्रिया में बाधा डालना नहीं है और उन्हें संवैधानिक ढांचे के भीतर कार्य करना चाहिए।
- केरल में भी समान मामले: केरल सरकार ने भी विपक्ष शासित राज्यों में राज्यपालों के आचरण को चुनौती देते हुए एक याचिका दायर की है, जिसमें महत्वपूर्ण कानून पारित करने में देरी करने या बाधा डालने की प्रवृत्ति का आरोप लगाया गया है।
- जवाबदेही सुनिश्चित करना : न्यायालय ने राज्यपाल की शक्तियों के प्रयोग में जवाबदेही और पारदर्शिता के महत्व पर जोर दिया।
- संविधान में प्रावधान : अनुच्छेद 200 राज्य विधानमंडल द्वारा पारित विधेयकों पर राज्यपाल की शक्तियों को रेखांकित करता है, जिसमें सहमति देना, सहमति रोकना या राष्ट्रपति द्वारा विचार के लिए विधेयक को आरक्षित रखने की शक्ति शामिल है।
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