Question : राष्ट्रीय साक्षरता मिशन कब और क्यों स्थापित किया गया?
(1993)
Answer : राष्ट्रीय साक्षरता मिशन सन् 1988 में प्रारंभ किया गया। यह 15 से 35 आयु वर्ग के 8 करोड़ से अधिक प्रौढ़ निरक्षरों को साक्षर बनाने के उद्देश्य से शुरू किया गया था।
Question : सामाजिक न्याय क्या है? संसद में महिलाओं के लिए सीटों का आरक्षण भारत में एक सामाजिक न्यायप्रिय समाज की स्थापना में किस प्रकार सहायता दे सकता है?
(1997)
Answer : सामाजिक न्याय समाज में एक ऐसी व्यवस्था उत्पन्न करने का मानदण्ड है, जिसमें प्रत्येक व्यक्ति प्रत्येक क्षेत्र में समान रूप से भागीदार बन सके और आर्थिक विकास के लाभ समान रूप से प्राप्त कर सके। इस हेतु आवश्यक है कि संपन्न वर्ग अपने लाभ का एक अंश त्याग कर उसे पिछड़े एवं शोषित वर्ग के लोगों को प्रदान करें, ताकि वह वर्ग भी विकास की दौड़ में आगे आ सके। सामाजिक न्याय का विचार आर्थिक, सामाजिक एवं राजनीतिक लाभों में प्रत्येक वर्ग की भागीदारी सुनिश्चित करना है। सामाजिक न्याय से आशय आर्थिक दृष्टि से सभी वर्गों को समान करना नहीं, अपितु पिछड़े एवं असहाय वर्ग को कुछ ऊपर उठाना है, ताकि एक न्यायसंगत समाज का निर्माण किया जा सके।
महिलाओं को पुरुषों जैसी ही राजनीतिक सहभागिता का प्रश्न विश्व की आधुनिक सभ्यता का सर्वाधिक ज्वलंत विषय है। विश्व महिला सम्मेलनों में पुरुषों के साथ महिलाओं की समान भागीदारी के लिए संकल्प लिये जाते रहे हैं तथा सभी राष्ट्रों पर यह मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने का प्रयास किया जाता रहा है कि राजनीतिक निर्णय प्रक्रिया में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित की जाये। इसी प्रक्रम में संयुक्त मोर्चा सरकार ने संसद व विधानसभाओं में महिलाओं की अधिक भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण देने की घोषणा की, लेकिन यह विधेयक प्रबल विरोधों के कारण अभी तक अधिनियम नहीं बन सका है। इस व्यवस्था के विधायन से देश में एक न्यायप्रिय समाज की स्थापना हो सकेगी।
देश में आधी आबादी महिलाओं की है। इसलिए यह स्वाभाविक ही है कि उन्हें भी देश के विकास में पुरुषों के समान भूमिका निभाने का अवसर मिलना चाहिए। जब तक महिलाएं जागरूक नहीं होंगी तथा राष्ट्रीय विकास की धारा में अपनी सक्रिय भूमिका तथा भागीदारी नहीं निभायेंगी, तब तक राष्ट्र का सर्वांगीण विकास संभव नहीं है। महिलाओं में जागृति फैलने से पूरा परिवार, गांव, शहर और अंततः देश में जागृति फैलती है और सारा राष्ट्र उन्नति के पथ पर अग्रसर होता है। चूंकि महिलाओं को हमेशा से दबा कर रखा गया था, अतः निरक्षरता, गरीबी तथा परंपरा के बंधनों को तोड़ना जरूरी है। आज भी ज्यादातर महिलाएं संवैधानिक प्रावधानों के बावजूद अशिक्षित तथाबिना जायदाद के रूढि़वादी भारतीय समाज में रहती हैं। रूढि़वादी प्रथाएं, पुराने रीति-रिवाज एवं समाज विरोधी कायदे-कानूनों को समाप्त करने के लिए राजनीतिक तौर पर जागृत महिलाएं ही आगे आयेंगी। पेयजल, चिकित्सा, परिवार नियोजन, स्त्री शिक्षा, साक्षरता, दहेज प्रथा, ग्रामीण विकास एवं कुटीर उद्योग जैसी गतिविधियों में भी महिलायें अधिक सहानुभूतिपूर्वक कार्य करेंगी।
73वां संविधान संशोधन इस दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है, क्योंकि इससे पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं के लिए एक-तिहाई सीटें आरक्षित की गयी हैं। भारतीय समाज में महिलाओं का स्थान सर्वोपरि है। ये राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया में अहम भूमिका निभाती हैं। जब तक महिलाएं जागरूक नहीं होंगी तथा राष्ट्रीय विकास की धारा में अपनी सक्रिय भूमिका तथा भागीदारी नहीं निभायेंगी, तब तक राष्ट्र का सर्वांगीण विकास संभव नहीं है।