प्राकृतिक संसाधनों के लिए नैतिक अधिकार
प्रकृति में सभी प्रकार का जीवन एकसमान था। इस ब्रह्मांड में हर एक जीव की अपनी पहचान थी, कोई भी अन्य जीव किसी दूसरे जीव की जगह लेने की स्थिति में नहीं था। मनुष्य की प्राचीन काल से ही प्रकृति में रुचि रही है, लेकिन आज वह स्वयं को प्रकृति का स्वामी समझता है।
दूसरी ओर, प्रकृति मनुष्य के साथ तालमेल बैठाने की कोशिश करती है और अपशिष्ट पदार्थों के निर्वहन, वनों की कटाई, गहन कृषि, मरुस्थलीकरण, शहरीकरण आदि के रूप में मानव हमले को अवशोषित करती है। पर्यावरण में मनुष्य की बदलती भूमिका ने हवा, पानी और प्राकृतिक संसाधनों पर ....
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