सामरिक मुद्दे

भारत, म्यांमार के साथ लगभग 1,600 किलोमीटर लंबी स्थलीय सीमा के साथ-साथ बंगाल की खाड़ी में समुद्री सीमा को भी साझा करता है। भारत-म्यांमार सीमा अत्यंत पारगम्य है, जो उग्रवादियों, अवैध हथियारों और ड्रग्स की सीमापार आवाजाही को सुगम बनाती है।

  • यह सीमा क्षेत्र पहाड़ी और दुर्गम इलाकों के साथ विस्तृत है और विभिन्न भारतीय विद्रोही समूहों (IIGs) की गतिविधियों को आश्रय प्रदान करता है। वर्षों से, भारत-म्यांमार सीमा, म्यांमार से हथियारों और मादक पदार्थों की तस्करी का प्रमुख स्रोत रहा है।
  • म्यांमार-चीन सीमा म्यांमार की भूमि से संचालित हो रहे स्थानीय सशस्त्र अलगाववादी समूहों और साथ ही असम के यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (उल्फा/ULFA) तथा नागालैंड के नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड (NSCN) जैसे भारतीय विद्रोही समूहों के लिए भी एक शरणस्थली बन गई है।
  • इसके अतिरिक्त, उग्रवादियों की सीमा-पार आवाजाही भारत-म्यांमार सीमा पर महत्वपूर्ण सुरक्षा चुनौती बनी हुई है। गृह मंत्रलय को सौंपी गई रिपोर्टों के अनुसार, सीमा पर हल्के हथियारों, मादक पदार्थों और जाली मुद्रा की तस्करी की जा रही है। इसलिए भारत द्वारा ‘‘मुक्त आवागमन व्यवस्था’’ (Free Movement Regime- FMR) का पुनर्परीक्षण किया जा रहा है।
  • म्यांमार के बंदरगाह और भूमि गलियारे भारत को शेष आसियान देशों तक सीधी पहुंच प्रदान करते हैं। एक सीधा व्यापार मार्ग, प्रभावी सुरक्षा एवं उपयुक्त निवेश आपसी व्यापार को बढ़ाने में सहायक साबित हो सकता है। निजी कंपनियों को म्यांमार में निवेश करने को प्रोत्साहित करना, संस्थाओं की पुनर्स्थापना को समर्थन और एनएलडी तथा सेना के साथ निरंतर संपर्क वे महत्वपूर्ण कदम हैं, जिनके माध्यम से संबंधों का विकास हो सकता है।
  • चीन विभिन्न साधनों के माध्यम से म्यांमार में अपने प्रभाव क्षेत्र में वृद्धि कर रहा है।
  • दोनों राष्ट्रों के सहयोग से निर्मित किया जाने वाला चीन-म्यांमार आर्थिक गलियारा (China-Myanmar Economic Corridor- CMEC) एक प्रमुख परियोजना है, जो चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) का एक हिस्सा है। यह म्यांमार को हिंद महासागर तक पहुंच के लिए एक प्रमुख मार्ग प्रदान करता है।