राजनीतिक मुद्दे

भारत द्वारा रोहिंग्या शरणार्थियों को मानवीय राहत प्रदान की गई है, तथापि भारत ने सुरक्षा कारणों से लगभग 40,000 रोहिंग्याओं को निर्वासित करने की योजना निर्मित की है। भारत के इस कदम का न केवल संयुक्त राष्ट्र और मानवाधिकार समूहों, बल्कि म्यांमार के चरम राष्ट्रवादियों द्वारा भी विरोध किया जा रहा है।

  • हाल ही में, म्यांमार (पूर्ववर्ती बर्मा) की सेना ने एक सैन्य तख्तापलट के उपरांत देश के शासन पर पूर्ण अधिकार स्थापित कर लिया है।
  • ज्ञातव्य है कि वर्ष 1948 में ब्रिटिश राज से स्वतंत्रता प्राप्त होने के पश्चात ऐसा देश के इतिहास में तीसरी बार हुआ है।
  • म्यांमार सेना [जिसे जुंटा और तात्मडो (Tatmadaw) भी कहा जाता है, ने आरोप लगाया है कि नवंबर 2020 में आयोजित आम चुनावों में अत्यधिक अनियमितताएं हुई थीं और इसलिए परिणाम मान्य नहीं हैं।
  • वर्ष 2020 के चुनाव में, आंग सान सू की के नेतृत्व में नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी (NLD) को व्यापक विजय प्राप्त हुई थी। परंतु म्यांमार में स्थापित सैन्य शासन ने अस्थिरता का महौल उत्पन्न कर दिया है, जिससे भारत-म्यांमार की द्विवपक्षीय संबंध प्रभावित हो सकती है।
  • इसके पश्चात मिन आंग हलांग के नेतृत्व में सेना द्वारा तख्तापलट किया गया। इस दौरान एक वर्षीय आपातकाल की घोषणा की गई तथा वास्तविक नेता आंग सान सू की और सिविल सोसाइटी के कार्यकर्ताओं सहित कई विपक्षी नेताओं को गिरफ्रतार कर लिया गया।
  • यह म्यांमार के अल्पकालिक लोकतंत्र की समाप्ति को दर्शाता है, जिसकी शुरुआत वर्ष 2011 में हुई थी, जब सेना ने संसदीय निर्वाचनों तथा अन्य सुधारों को कार्यान्वित किया था।