अफ़गानिस्तान पर तालिबान का नियंत्रण

हाल ही में, संयुक्त राज्य अमेरिका (U.S.A.) की वापसी के पश्चात तालिबान ने अफगानिस्तान में मौजूदा सत्ता पर अपना नियंत्रण और काबुल पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया है।

  • अफगानिस्तान में जारी युद्ध को समाप्त करने के उद्देश्य से 29 फरवरी, 2020 को दोहा में, संयुक्त राज्य अमेरिका और तालिबान के मध्य एक समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे।
  • अफगानिस्तान से सभी अमेरिकी सैनिकों की अंतिम वापसी के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने 31 अगस्त, 2021 की तिथि निर्धारित की।
  • मई 2021 तक, अफगानिस्तान से अधिकांश अमेरिकी सैनिकों की वापसी के साथ ही तालिबान एवं उनके विभिन्न सहयोगी आतंकवादी समूहों ने अफगानिस्तान के क्षेत्रों पर अपना अधिपत्य स्थापित करना आरंभ कर दिया।
  • तालिबानी आतंकवादियों ने 15 अगस्त तक काबुल के क्षेत्रों पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लिया और अफगानी केंद्र सरकार से बिना किसी शर्त के आत्मसमर्पण की मांग की।

तालिबान

  • तालिबान को पश्तो भाषा में ‘‘छात्र’’ के रूप में संदर्भित किया जाता है, जिसका उदय वर्ष 1994 में कंधार (अफगान के दक्षिण में स्थित एक शहर) के आस-पास हुआ था।
  • यह वर्ष 1989 में सोवियत संघ की वापसी के पश्चात
  • और वर्ष 1992 में वहां मौजूदा सरकार के पतन के उपरांत से देश पर नियंत्रण स्थापित करने हेतु गृहयुद्ध लड़ने वाले गुटों में से एक रहा है।
  • वर्ष 1998 तक, इसने लगभग संपूर्ण अफगानिस्तान पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया था।
  • वर्ष 2001 में तालिबान को अमेरिकी नेतृत्व वाली सेनाओं द्वारा केवल सत्ता से हटाया गया था।
  • तालिबानियों ने अपने शासन के दौरान, शरीयत या इस्लामी कानून के कठोर संस्करण (तालिबान द्वारा स्वयं निर्मित) को लागू किया, जिसमें कठोर दंड, महिलाओं के शिक्षा प्राप्त करने और स्वतंत्रता के अधिकार को प्रतिबंधित करना तथा संगीत और सिनेमा पर प्रतिबंध लगाना आदि शामिल थे।

तालिबान द्वारा अधिग्रहण के बाद के प्रमुख घटनाक्रम

  • अफगानिस्तान से भारतीय नागरिकों और अफगान भागीदारों को निकालने के लिए भारत द्वारा ऑपरेशन देवी शक्ति चलाया गया।
  • भारत सरकार के विदेश मंत्रलय द्वारा भी दोहा में आयोजित बैठक में तालिबान के साथ वार्ता स्थापित करने हेतु प्रयास किए गए हैं, जिसमें बचाव, सुरक्षा और अफगानिस्तान में फंसे भारतीय नागरिकों की शीघ्र वापसी तथा अफगान नागरिकों, विशेष रूप से अल्पसंख्यकों की भारत वापसी पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
  • अफगानिस्तान में प्राणघाती हमलों की निंदा करते हुए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा एक प्रस्ताव को अंगीकृत किया गया। साथ ही, तालिबान से उसके द्वारा की गई प्रतिबद्धता (स्वतंत्र रूप से अफगानिस्तान छोड़ने वाले लोगों की निकासी में बाधा न उत्पन्न करने की) का सम्मान करने और आतंकवाद का मुकाबला करने तथा मानवाधिकारों को बनाए रखने के लिए आ“वान किया गया है। अफगान केंद्रीय बैंक से संबंधित लगभग 9.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर की परिसंपत्तियों को संयुक्त राज्य अमेरिका ने फ्रीज (अवरुद्ध) कर दिया और राष्ट्र को प्रदान की जाने वाली नकदी के शिपमेंट (प्रवाह) को भी रोक दिया है।

भारत द्वारा चलाए गए अन्य प्रमुख ऑपरेशन

  • ऑपरेशन सुकून (वर्ष 2006): इसे युद्ध प्रभावित लेबनान से भारतीय, श्रीलंकाई और नेपाली नागरिकों को निकालने के लिए संचालित किया था।
  • ऑपरेशन सेफ होमकर्मिंग (वर्ष 2011): इसे लीबिया गृह-युद्ध में फंसे भारतीय नागरिकों को निकालने के लिए आरंभ किया गया था।
  • ऑपरेशन राहत (वर्ष 2015): इसे युद्ध प्रभावित यमन से भारतीयों और विदेशी नागरिकों को निकालने के लिए शुरू किया गया था।

अफगानिस्तान का भारत के लिए महत्व

  • सामरिक महत्वः भारत के सामरिक हितों की पूर्ति हेतु अफगानिस्तान का अत्यंत महत्व है। दक्षिण-पश्चिम एवं मध्य एशिया तक भू-सामरिक अवस्थिति के कारण अफगानिस्तान भारत के लिए महत्वपूर्ण हो जाता है। भारत अफगानिस्तान में अपनी प्रभावी भूमिका के माध्यम से चीन एवं पाकिस्तान के प्रभाव को कम कर सकता है।
  • आर्थिक महत्वः भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए तेल एवं खनिज से संपन्न मध्य एशिया से संपर्क का खास महत्व है। अफगानिस्तान ऐसी स्थिति में भारत के लिए एक सेतु का काम कर सकता है। तापी परियोजना की सुरक्षा हेतु भारत की अफगानिस्तान में मौजूदगी अत्यंत महत्वपूर्ण होगी।
  • अफगानिस्तान में लगभग 2000 मिलियन टन लौह अयस्क, यूरेनियम, मार्बल, 444 बिलियन क्यूबिक मीटर प्राकृतिक गैस आदि मौजूद है। ऐसे में अफगानिस्तान भारत के लिए आर्थिक दृष्टिकोण से भी काफी महत्व रखता है।
  • रणनीतिक महत्वः अफगानिस्तान की महत्ता को देखते हुए भारत द्वारा अफगानिस्तान में 2001 के तालिबानी शासन के अंत के बाद से ही लगातार सहयोग किया जा रहा है। भारत अफगानिस्तान में अनेक विकास योजनाएं चला रहा है। इनमें जल विद्युत, दूर-संचार, शिक्षा एवं स्वास्थ्य से संबंधित परियोजनाएं शामिल हैं।
  • कॉन्फेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्री (CII) तथा संयुक्त राष्ट्र संघ की साझेदारी के साथ अफगानिस्तान में कौशल निर्माण का शुभारंभ किया गया है। साथ ही अफगानिस्तान के 100 गांवों को लेकर वहां एकीकृत ग्रामीण विकास की घोषणा की गई तथा विकसित सौर विद्युतीकरण एवं वर्षा जल उपयोग की तकनीक से उन्हें लैस किया गया।
  • भारत द्वारा अफगानिस्तान में किया गया निवेश शेष देशों से पृथक है, क्योंकि भारत द्वारा अफगानिस्तान में किया गया निवेश सामाजिक, सामुदायिक हितों से प्रत्यक्ष रूप से जुड़ा है। यही वजह है कि अफगानिस्तान के लोगों में भारत के प्रति सकारात्मक भाव आया है, जो कि भारत की रणनीतिक जीत है। सबसे बढ़कर भारत द्वारा अफगानिस्तान में हार्ड पावर के बजाए सॉफ्ट पावर के माध्यम से पाकिस्तान के प्रभाव को न्यून किया गया है, जिसका लाभ भारत को पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के विरुद्ध अफगान सरकार के समर्थन के रूप में मिल रहा है।

तालिबान द्वारा अफगानिस्तान के अधिग्रहण से भारत के समक्ष उत्पन्न चिंताएं

  • आतंकवाद का पुनरुद्धारः भारत के समक्ष हक्कानी समूह जैसे आतंकवादी गुट जोखिम उत्पन्न कर सकते हैं, जो संयुक्त राष्ट्र द्वारा एक आतंकवादी समूह के रूप में नामित इकाइयों में से एक रहा है और तालिबान का एक प्रमुख सदस्य भी है। यह काबुल में स्थित भारतीय दूतावास सहित भारतीय परिसंपत्तियों पर हमले के लिए भी कुख्यात रहा है।
  • इसके अतिरिक्त, अफगानिस्तान में मौजूदा राजनीतिक अस्थिरता, अन्य आतंकवादी समूहों, जैसे अल कायदा और इस्लामिक स्टेट के पुनरुत्थान का कारण बन सकती है।
  • भारत की मौजूदा चिंताएं: भारत शुरू से ही अफगानिस्तान में स्थायी शांति और सुलह के लिए ‘‘अफगान-नेतृत्व वाली, अफगान-स्वामित्व वाली और अफगान-नियंत्रित’’ प्रक्रिया का समर्थक रहा है। साथ ही तालिबान शासन से पृथक रहते हुए भारत निर्वाचित अफगान सरकार के साथ सक्रिय भागीदार के रूप में शामिल रहा है।
  • चीन और पाकिस्तान का बढ़ता प्रभावः तालिबान और पाकिस्तान की इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (ISI) के बीच संबंध देश के भीतर पाकिस्तान के बढ़ते प्रभाव के बारे में चिंता उत्पन्न करता है। इसके अतिरिक्त, अमेरिकी वित्तीय और सैन्य सहायता की अनुपस्थिति ने भी चीन के लिए राष्ट्र पर प्रभुत्व हासिल करने के अवसर प्रदान किए हैं।
  • वित्तीय और रणनीतिक निवेश के लिए खतराः विगत वर्षों में, भारत ने अफगानिस्तान में संचालानरत परियोजनाओं में अनुमानतः 3 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश किया है तथा दोनों राष्ट्रों के मध्य मित्रता और सद्भावना को सुदृढ़ करने के लिए भारत अन्य रणनीतियों (सॉफ्ट पावर से संबंधित) में भी संलग्न रहा है। अफगानिस्तान का तालिबान द्वारा अधिग्रहण न केवल भारत की परिसंपत्तियों की सुरक्षा के लिए खतरा है, अपितु यह भारत के प्रयासों को भी निष्प्रभावी कर सकता है।
  • आंतरिक संघर्षः तालिबान के पास कोई भी अफगान पहचान नहीं है और यह भिन्न-भिन्न क्षेत्रों, जनजातियों और हितों का प्रतिनिधित्व करने वाले विभिन्न गुटों पर अत्यधिक रूप से निर्भर रहा है। इस प्रकार, आंतरिक संघर्ष, इस अधिग्रहण के पश्चात एक स्थायी अस्थिरता उत्पन्न कर सकता है, जिसमें भारत के लिए सुरक्षा (आतंकवाद में वृद्धि, अवैध नशीली दवाओं के व्यापार आदि) के साथ-साथ आर्थिक (द्विपक्षीय और क्षेत्रीय व्यापार आदि पर प्रभाव) निहितार्थ शामिल हैं।
  • मानवाधिकारों का उल्लंघनः तालिबान के शासन के दौरान महिलाओं एवं अल्पसंख्यकों के अधिकारों का हनन हो सकता है। साथ ही, इसके द्वारा मौजूदा लोकतांत्रिक व्यवस्था को प्रतिकूल रूप से प्रभावित (Overturning) किया जा सकता है, जो भारत के लिए एक चिंता का विषय है।