जलीकट्टू पर सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय

दिसम्बर, 2021 में सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2017 से प्रतिबंधित महाराष्ट्र की पारंपरिक बैलगाड़ी दौड़ के आयोजन को अनुमति दी है।

  • यह निर्णय कर्नाटक और तमिलनाडु के अनुरूप राज्य द्वारा लागू किये गए ‘पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960’ में संशोधन पर आधारित था।
  • प्रमुख बिंदुः वर्ष 2014 में सर्वोच्च न्यायालय ने देश भर में ‘जल्लीकट्टू’, बैल दौड़ और बैलगाड़ी दौड़ जैसे पारंपरिक खेलों पर प्रतिबंध लगा दिया, यह देखते हुए कि वे खतरनाक थे और पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 के प्रावधानों का उल्लंघन करते थे।
  • इसके बाद कर्नाटक और तमिलनाडु ने परंपरा को विनियमित तरीके से जारी रखने के लिये कानून में संशोधन किया था, जो वर्ष 2018 से सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष चुनौती लंबित था।
  • फरवरी 2018 में सर्वोच्च न्यायालय ने ‘जल्लीकट्टू’ से संबंधित याचिकाओं को पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के पास भेज दिया था, जो यह तय करेगी कि क्या बैलों को वश में करने का खेल सांस्कृतिक अधिकारों के तहत आता है या जानवरों के साथ क्रूरता को बनाए रखता है।

पशु क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960

  • इस अधिनियम का विधायी उद्देश्य ‘अनावश्यक सजा या जानवरों के उत्पीड़न की प्रवृत्ति’ को रोकना है।
  • भारतीय पशु कल्याण बोर्ड (Animal Welfare Board of India- AWBI) की स्थापना वर्ष 1962 में अधिनियम की धारा 4 के तहत की गई थी।
  • इस अधिनियम में अनावश्यक क्रूरता और जानवरों का उत्पीड़न करने पर सजा का प्रावधान है। यह अधिनियम जानवरों और जानवरों के विभिन्न प्रकारों को परिभाषित करता है।