सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम 1978

जम्मू-कश्मीर सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम, 1978 एक निवारक निरोध (Preventive Detention) कानून है, इसके तहत किसी व्यक्ति को ऐसे किसी कार्य को करने से रोकने के लिये हिरासत में लिया जाता है, जिससे राज्य की सुरक्षा या सार्वजनिक व्यवस्था प्रभावित हो सकती है।

  • इस अधिनियम के तहत व्यक्ति को 2 वर्षों के लिये हिरासत में लिया जा सकता है।
  • यह कमोबेश राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम के समान ही है, जिसका प्रयोग अन्य राज्य सरकारों द्वारा नजरबंदी के लिये किया जाता है।
  • इस अधिनियम की प्रकृति दंडात्मक निरोध (Punitive Detention) की नहीं है।
  • यह अधिनियम मात्र संभागीय आयुक्त (Divisional Commissioner) या जिला मजिस्ट्रेट (District Magistrate) द्वारा पारित प्रशासनिक आदेश से लागू होता है। साथ ही इस संबंध में आदेश पारित करने वाले अधिकारी को किसी भी तथ्य का खुलासा करने की आवश्यकता नहीं होती है।

अधिनियम का इतिहास

  • जम्मू-कश्मीर में इस अधिनियम की शुरुआत वर्ष 1978 में लकड़ी तस्करी को रोकने के लिये की गई थी, क्योंकि लकड़ी की तस्करी उस समय एक बड़ी समस्या थी और इसके तहत गिरफ्तार लोग काफी आसानी से छोटी-मोटी सजा पाकर छूट जाते थे।
  • 1990 के दशक में जब राज्य में उग्रवादी आंदोलनों ने जोर पकड़ा तो दंगाइयों पर काबू पाने के लिये राज्य सरकार ने इस अधिनियम का प्रयोग काफी व्यापक स्तर पर किया।
  • हाल के वर्षों में भी इस अधिनियम का कई बार प्रयोग किया गया है, वर्ष 2016 में हिजबुल मुजाहिदीन के आतंकी बुरहान वानी की गिरफ्तारी को लेकर हुए विरोध प्रदर्शनों के दौरान PSA का प्रयोग कर तकरीबन 550 लोगों को हिरासत में लिया गया था।