भारत की प्रमुख चित्रकला

सिन्धु सभ्यता के लोग पक्की मिट्टी के बर्तनों को अलंकृत करते थे, उनमें पशु-पक्षी एवं मानव कृतियां तथा कुछ ज्यामितीय नमूने भी बनाते थे।

  • जोगीमारा गुफा के चित्रः ये गुफायें मध्य प्रदेश के सरगुजा जिले में अमरनाथ नामक स्थान पर नर्मदा नदी के उद्गम स्थान पर है।
  • इस गुफा की छत में सात चित्र हैं, जिनमें मानवाकृति, मछली तथा हाथी का चित्रण किया गया है।
  • बाघ गुफाओं के चित्रः ये गुफायें मध्य प्रदेश में ग्वालियर के पास धार जिले के विन्ध्य श्रेणी में भीलों की बस्ती में विद्यमान है। चूंकि गुफायें नर्मदा की सहायक नदी ‘बाघ’ के तट पर स्थित है, इसलिए इन गुफाओं को बाघ की गुफा कहा जाता है। पहली गुफा को गृह गुफा, दूसरी गुफा को पांडवों की गुफा, तीसरी को हाथीखाना तथा चौथा ‘रंगमहल’ के नाम से प्रसिद्ध है।
  • बादामी के गुफा चित्रः मुम्बई के ऐहोल नामक स्थान के निकट बादामी की गुफायें स्थित है।
  • ये गुफायें शैव धर्म से संबंधित है। इन गुफाओं का निर्माण 578 ई. में राजा कीर्तिवर्मन के काल में हुआ।
  • सित्तनवासलः सित्तनवासल की गुफाओं का निर्माण 600-650 ई. में हुआ था, जो चेन्नई में तंजौर के पास पुद्दकोटा के निकट स्थित है। ये गुफायें जैन धर्म से संबंधित है, जिनके चित्र अजंता व बाघ से मिलते-जुलते हैं।
  • एलोराः एलोरा, महाराष्ट्र में औरंगाबाद से 30 किमी. एवं अजंता से लगभग 97 किमी. दूर है। यहां मंदिरों के तीन समूह हैं। प्रथम समूह बौद्ध मंदिरों का, दूसरा ब्राह्मण धर्म का तथा अंतिम जैन धर्म का है। राष्ट्रकूट वंश के राजा कृष्ण प्रथम ने प्रसिद्ध कैलाश मंदिर का निर्माण करवाया था।
  • एलीफैन्टाः एलीफैन्टा की गुफा मुम्बई से दक्षिण- पश्चिम में एक टापू पर स्थित है। पहले उसका नाम धारा नगरी था, लेकिन पुर्तगालियों ने इसका नाम एलीफैन्टा रख दिया। इस गुफा की सर्वश्रेष्ठ कृति ‘त्रिमूर्ति’ है।
  • पाल शैली के चित्रः नौवीं शताब्दी में एक नयी शैली का जन्म हुआ, जिसका संबंध पाल राजाओं से था। इसीलिए इस शैली का नाम पाल शैली पड़ा। इनके आधार महायान बौद्ध ग्रंथ प्रज्ञापारमिता आदि है। ये सारे चित्र ताड़ पत्र पर बने हैं। ये चित्र जातक कथाओं पर आधारित है।
  • गुजरात शैलीः गुजरात या गुर्जर शैली के नाम से प्रसिद्ध इस शैली का केन्द्र यद्यपि गुजरात था, परन्तु मारवाड़, मालवा, अवध, जौनपुर, पंजाब तथा बंगाल तक इस शैली का प्रसार हुआ था।
  • यह शैली प्रकारान्तर से अजंता, एलोरा एवं बाघ के भित्ति चित्रों की ही लघु चित्रों के रूप में प्रस्तुति थी। इसका विषय जैन धर्म था। इस शैली ने बाद में राजपूत और मुगल शैली को भी प्रभावित किया।
  • अपभ्रंश शैलीः इस शैली का मुख्य केन्द्र जौनपुर था। इस शैली का जन्म स्थल दक्षिण भारत माना जाता है।
  • इसके विषय मुख्यतः वैष्णव तथा गौणतः जैन धर्म है। इस शैली में प्राकृतिक दृश्यों की न्यूनता एवं चटकीले रंगों का अत्यधिक प्रयोग हुआ है।
  • जैन शैलीः सातवीं से चौदहवीं सदी के बीच जैन चित्रकला विकसित हुई। इस शैली में अधिकांशतः जैन तीर्थंकरों के चित्र हैं। चित्रों की पृष्ठभूमि गहरे लाल रंग की होती है। इनमें बेलबूटों का प्रयोग अद्वितीय है।
  • सल्तनत कालः 1533 ई. में चित्रित फिरोजशाह तुगलक का चित्र तथा बीकानेर की ‘रंगशाला लघु चित्रवली’ विजयनगर एवं तुर्की शैलियों के मिश्रित रूप है। ‘तारीफ-ए- हुसैन-शाही’ (अहमदनगर की एक हस्तलिपि) तथा कुमतागी की ‘फारसी-हिन्दी’ के अभिलेख मुख्य है।
  • मुगल शैलीः वस्तुतः मुगल चित्रकला भारतीय तथा ईरानी तत्त्वों के सम्मिश्रण का प्रतिफल थी। इस विराट समन्वय का प्रथम योजनाकार हुमायूं था। हुमायूं के बाद अकबर ने चित्रकला को संरक्षण दिया। अकबर ने फतेहपुर सीकरी में चित्रकारों के लिए कार्यशाला का निर्माण करवाया।
  • अकबरकालीन चित्र कई श्रेणियों के हैं- भारतीय कथाओं के चित्र, ऐतिहासिक चित्र एवं व्यक्ति चित्र। अकबरनामा, रामनामा, अनवर-ई- सुहायली इत्यादि कृतियां अकबरकालीन चित्रों के उदाहरण है। जहांगीर काल में मुगल शैली अपनी पराकाष्ठा पर थी। जहांगीर शिकार के दृश्यों, फूलों, चिड़ियां आदि को अंकित करवाने में अधिक रुचि लेता था। मुगल काल में सबसे अधिक चित्रकला का विकास इसी के काल में हुआ।
  • राजपूत शैलीः यह शैली राजस्थान में पन्द्रहवीं सदी के आस-पास पूर्ण रूप से विकसित हुई। हालांकि इस शैली का मुख्य केन्द्र राजस्थान था, लेकिन बुंदेलखंड, कन्नौज, काठियावाड़ एवं मगध तक इस शैली का प्रसार देखा जा सकता है। इस शैली के चित्रों का मुख्य विषय रागमाला है। इस शैली से विभिन्न शैलियों का जन्म हुआ, जो निम्नलिखित हैं:
    1. आमेर शैलीः राजा मानसिंह के समय आमेर शैली का विकास हुआ। आमेर के शाहपुर द्वार के समीप कुछ छतरियां तथा बैराट के मानसिंह उद्यान में इस शैली का विकसित रूप दृष्टिगोचर होता है।
    2. मेवाड़ शैलीः मेवाड़ शैली प्राचीन राजपूत शैली तथा मुगल शैली से प्रभावित है। इसका केन्द्र उदयपुर था। चित्रों का मुख्य विषय वैष्णव धर्म है, तथापि इसमें राग-रागिनी के चित्र भी प्राप्त हो जाते हैं।
    3. बीकानेर शैलीः इस शैली को प्रश्रय बीकानेर के राजा राय सिंह ने दिया। ‘भागवत’ एवं ‘रसिक प्रिया’ के विषयों पर इस शैली में सुंदर चित्र बनाये गये हैं।
    4. किशनगढ़ शैलीः इस शैली का स्वतंत्र विकास राजा किशन सिंह के समय हुआ। इस शैली के अन्तर्गत कृष्ण लीला से संबंधित चित्र दास्य भाव से अंकित किये गये हैं। ‘बणी-ठणी’ इस शैली का एक प्रसिद्ध चित्र है।
    5. जोधपुर शैलीः जोधपुर में विकसित इस शैली को अठारहवीं सदी में राजा जसवंत सिंह के समय में पूर्ण विकास का अवसर मिला। इस शैली में मुगल- राजपूत संलयन का विकास परिलक्षित होता है।
    6. बूंदी शैलीः मेवाड़ एवं आमेर शैली से प्रभावित बूंदी शैली में हिन्दू तथा मुगल तत्त्वों का कौशलपूर्ण संलयन हुआ है। इस शैली के प्रमुख आश्रयदाता सत्रहवीं सदी के उत्तरार्द्ध में राजा राम सिंह थे।
  • पहाड़ी शैलीः भारत के अन्य भागों की तरह कश्मीर, हिमालय, पंजाब तथा उत्तर प्रदेश के पहाड़ी क्षेत्रों में प्राचीन भारतीय चित्रकला परंपरा का संशोधित रूप विकसित हुआ जो ‘पहाड़ी शैली’ के नाम से जानी जाती है।

प्रमुख पहाड़ी शैलियां

बसौली शैलीः इस शैली में सामाजिक तथा धार्मिक दोनों प्रकार के चित्र हैं। सबसे प्राचीन साक्ष्य सत्रहवीं सदी के राजा कृपाल पाल के समय का प्राप्त होता है। इस शैली के चित्र बहुधा द्वि-आयामी है। भावप्रवण कमल सदृश्य नयन का चित्रण इसकी अन्यतम विशेषता है।

  • गुलेर शैलीः बसौली शैली के समान गुलेर शैली का प्रादुर्भाव अठारहवीं सदी के प्रारंभ में हुआ। इसको संरक्षण देने का श्रेय राजा दिलीप सिंह को है। स्त्री चित्रों में भाव लावण्य एवं सौंदर्य का संगम दृष्टिगत होता है।
  • कांगड़ा शैलीः इस शैली को अठारहवीं सदी में राजा संसार चंद के समय प्रसिद्धि मिली। इस शैली का मुख्य विषय प्रेम रहा है। इस शैली के स्त्री चित्र अत्यंत आकर्षक है।
  • इस शैली में स्त्रियों के अंग-प्रत्यंगों को उकेरने का प्रयत्न किया गया है। संपूर्ण पहाड़ी शैली में कांगड़ा शैली सर्वाधिक परिपूर्ण है।
  • जम्मू शैलीः जम्मू शैली को सर्वप्रथम राजा बलवंत सिंह ने प्रश्रय दिया। इस शैली के अधिकांश चित्र राजाओं के व्यक्ति चित्र है। राजा बलवंत सिंह का ‘घोड़ों का निरीक्षण’ तथा ‘कत्थक नर्तकी’ इस शैली के उत्कृष्ट चित्र हैं।
  • चम्बा शैलीः इस शैली को राजा राजसिंह का संरक्षण प्राप्त था।
  • गढ़वाल शैलीः इसका विस्तार मध्यकाल के गढ़वाल राज्य (जम्मू तथा कश्मीर) में हुआ। गढ़वाल नरेश पृथपाल शाह (1625 से 1660 ई.) के राजदरबार के शामनाथ तथा हरदास ने इस शैली को जन्म दिया। मानकू, भोलाराम एवं चैतू इस शैली के प्रसिद्ध चित्रकार थे।
  • मांडू तथा जौनपुरः चित्रकला के अन्य प्रमुख केन्द्र मांडू तथा जौनपुर में स्थित थे, जहां ‘कल्पसूत्र’ की पाण्डुलिपि कागज पर चित्रित की गयी।
  • दक्कन शैलीः इस शैली का मुख्य केन्द्र बीजापुर था, लेकिन इसका विस्तार गोलकुंडा और अहमदनगर में भी था। ‘रागमाला’ के चित्रों का चित्रंकन इस शैली में मुख्य रूप से किया गया है। बीजापुर के शासक अली आदिलशाह एवं इब्राहिम शाह इस शैली के महान संरक्षक थे।
  • सिख शैलीः सिख शैली का विकास लाहौर स्टेट के राजा महाराजा रणजीत सिंह के शासनकाल (1803 से 1839 ई.) में हुआ। सिख शैली में भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं से संबंधित ‘रागमाला’ के चित्रों की प्रमुखता है।
  • अंकोरवाट मंदिरः कम्बोडिया में अंकोरवाट के मंदिर का निर्माण 1125 ई. में कम्बोज नरेश सूर्यवर्मन द्वितीय द्वारा कराया गया था।
  • इस पर भारतीय चित्रकला का स्पष्ट प्रभाव दृष्टिगोचर होता है। इसमें अनेक चित्र उकेरे गये हैं।
  • बोरोबुदूर स्तूपः बोरोबुदूर स्तूप का निर्माण आठवीं शताब्दी के अंत में जावा में शैलेन्द्रवंशी नरेशों के शासनकाल में किया गया था। इनमें लगभग 1500 शिलापट्टों के ऊपर विविध ग्रंथों में मिलने वाली भगवान बुद्ध की जीवन-गाथाओं को
  • जीवंतता पूर्वक चित्रित किया गया है। इन चित्रों का सौंदर्य कल्पनातीत है।
  • आनंद मंदिर (म्यांमार या बर्मा): आनंद मंदिर म्यांमार के पगान शहर में स्थित लगभग 5000 पैगोडों में सबसे अधिक पुराना है। यह म्यांमार नरेश किंजित्थ (1084-1112 ई.) के शासनकाल में बनाया गया था। इस पर जातक दृश्य अत्यंत कलात्मकता के साथ उत्कीर्ण किये गये हैं।
  • आधुनिक चित्रकारः आधुनिक भारत के प्रमुख चित्रकारों में रवीन्द्रनाथ टैगोर का महत्वपूर्ण स्थान है। इनकी सहज स्फूर्त अंकन पद्धति क्ले के निर्दिष्ट मार्ग का अनुसरण करती है। भारतीय कला को आधुनिकता की ओर मोड़ देने में अमृता शेरगिल ने महत्वपूर्ण कार्य किया।
  • इनके चित्रों का विषय साधारण जन-जीवन से संबंधित है, जैसे पहाड़ी स्त्रियां, भारतीय मां, कहानी कथन, बालवधू बहुत ही प्रभावपूर्ण व प्रसिद्ध चित्र है। इसी क्रम में यामिनी राय का नाम आता है।
  • 1925 से यामिनी राय ने काली घाट शैली के अनुसार स्पष्ट रेखा व चमकीले रंगों में चित्रण शुरू किया। उनका चित्र ‘संथाल लड़की’ (1925) इसका प्रारंभिक उदाहरण है।
  • रूसी होते हुए भी निकोलस रोरिक (1874-1947 ई.) का भारतीय दर्शन, संस्कृति व हिमालय के गूढ़ प्राकृतिक सौंदर्य के प्रति असीम प्रेम था। आधुनिक चित्रकारों में राजा रवि वर्मा अग्रणी है।
  • अवनीन्द्रनाथ ठाकुर ने पाश्चात्य, राजपूत, पहाड़ी तथा मुगल शैलियों का अवलंबन लेकर एक नयी शैली विकसित की।
  • बंगाल में चित्रकला को विशेष दिशा देने का श्रेय नन्दलाल बोस को है।
  • शारदा चरण उकील ने दिल्ली में शारदा कला केन्द्र की स्थापना की।
  • आधुनिक चित्रकारों में मकबूल फिदा हुसैन का महत्वपूर्ण स्थान है। पौराणिक विषयों, विशेषकर ‘दुर्गा’ तथा ‘घोड़े’ पर बनाये गये। इनके चित्र काफी प्रसिद्ध रहे हैं।

चित्रकला के चार रूप

  1. भित्ति चित्रः भित्तियों पर बने चित्र के प्रमुख उदाहरण बाघ, अजंता, बादामी आदि के भित्ति चित्र हैं।
  2. चित्रपटः वे चित्र जो चमड़े अथवा कपड़े के टुकड़ों पर बनाये जाते थे।
  3. चित्रफलकः वे चित्र जिनका पत्थरों, लकड़ी अथवा धातुओं पर चित्रंकन किया जाता था।
  4. लघु चित्रंकनः पुस्तकों के पृष्ठों, कागज के टुकड़ों तथा वस्त्रों के टुकड़ों पर बनाए जाने वाले चित्र।

सोहराई पेंटिंग

  • हजारों वर्ष पुराना है। यह ऐतिहासिक पेंटिंग जिसे भित्ति चित्र के नाम से भी जाना जाता है। प्राकृतिक रूप से पाई जाने वाली तीन मिट्टी जिसमें पीली मिट्टी, भूरी मिट्टी और सफेद मिट्टी (जिसे गांव में दुधिया मिट्टी कहा जाता है) और काले रंग के लिए चारकोल का प्रयोग किया जाता है। पहले पेंटिंग करने के लिए ब्रश के स्थान पर दातुन की कूची का इस्तेमाल किया जाता था।
  • सोहराई पेंटिंग मुख्य रूप से महिलाओं के द्वारा की जाती है। झारखंड में दीपावली की अगली सुबह गोहार पूजा की प्रथा है। इसे सोहराई पर्व के नाम से भी जाना जाता है। इस पेंटिंग को इसी अवसर पर बनाया जाता था। इसी वजह से इस कला का नाम सोहराई पेंटिंग पड़ा।
  • गुमला जिला के सिसई के पास स्थित नवरत्न गढ़ के नागवंशी राजा के महल में इस कला के प्राचीन अवशेष देखे जा सकते है। हजारीबाग के समीप एक गुफा है। इस गुफा के अंदर सोहराई कला के चित्र अंकित है। बुल्लू इमाम को इस कला का जनक माना जाता है।