सिंधु जल संधि (IWT)

भारत और पाकिस्तान ने वर्ष 1960 में विश्व बैंक की मध्यस्थता से IWT पर हस्ताक्षर किए थे। IWT ने सिंधु नदी तंत्र के जल के उपयोग से संबंधित दोनों देशों के अधिकारों और दायित्वों को निर्धारित एवं परिसीमित किया है।

  • इसमें बांधों, लिंक नहरों, बैराजों और नलकूपों विशेष रूप से सिंधु नदी पर तारबेला बांध व झेलम नदी पर मंगला बांध के वित्तपोषण एवं निर्माण का प्रावधान किया गया था।
  • यह संधि स्थायी सिंधु आयोग के गठन का प्रावधान करती है। इस आयोग में दोनों देशों के आयुक्त शामिल होंगे। ये आयुक्त दोनों देशों के मध्य इस संबंध में संचार के माध्यम को बनाए रखेंगे और इस संधि के कार्यान्वयन से संबंधित समस्याओं का समाधान करने का भी प्रयास करेंगे।
  • इस संधि के तहत सिंधु नदी तंत्र की नदियों को पूर्वी और पश्चिमी नदयिों में विभाजित किया गया है।
  • भारत को पूर्वी नदियों यथा सतलज, ब्यास और रावी का संपूर्ण जल (जिनका वार्षिक जल प्रवाह लगभग 33 मिलियन एकड़ फीट (MAF) है) आवंटित किया गया है और इसके उपयोग के संबंध में भारत पर कोई प्रतिबंध नहीं है। पश्चिमी नदियों यथा सिंधु, झेलम और चिनाब का जल (जिनका वार्षिक जल प्रवाह लगभग 135 MAF है) का अधिकांश भाग पाकिस्तान को आवंटित किया गया है।
  • इस संधि के तहत भारत को पश्चिमी नदियों पर रन-ऑफ-द-रिवर परियोजनाओं के माध्यम से जलविद्युत उत्पादन का अधिकार है। परन्तु इन परियोजनाओं का डिजाइन और परिचालन संधि में निर्दिष्ट विशिष्ट मानदंडों के अधीन हैं। साथ ही, इस संधि के तहत पाकिस्तान को पश्चिमी नदियों पर भारतीय जलविद्युत परियोजनाओं के डिजाइन के संबंध में आपत्ति व्यक्त करने का अधिकार है।

सिंधु जल संधि से पृथक होने के समक्ष चुनौतियां

  • अंतर्राष्ट्रीय कानून के विरुद्धः IWT में एकपक्षीय निकास का प्रावधान नहीं है। तकनीकी रूप से संधियों के कानून पर वियना कन्वेंशन के अंतर्गत संधि से पृथक होने और निकलने का प्रावधान है। हालांकि, IWT को निरस्त करने के लिए इन प्रावधानों का उचित रूप से उपयोग नहीं किया जा सकता है।
  • यहां तक कि भारत और पाकिस्तान के मध्य राजनयिक और दूतावास संबंधी संबंधों का विच्छेद भी IWT को निरस्त नहीं कर सकता है।
  • भारत से प्रवाहित होने वाली नदियों के निचले अनुप्रवाह मार्ग में स्थित देशों पर प्रभावः IWT का निरसन भारत से प्रवाहित होने वाली नदियों के निचले अनुप्रवाह मार्ग में स्थित देश बांग्लादेश में भारत की मंशा को लेकर विद्रोह हो सकता है। बांग्लादेश, भारत से प्रवाहित होने वाली नदियों से अपना लगभग 91% जल प्राप्त करता है।
  • जलवैज्ञानिक आंकड़ों पर चीन का सहयोगः हालिया वर्षों में चीन और पाकिस्तान के मध्य संबंधों में अत्यधिक वृद्धि हुई है। इसलिए, यदि इस संधि को निरस्त किया जाता है, तो चीन प्रत्युत्तरस्वरूप भारत को साझी नदियों के संबंध में जलवैज्ञानिक आंकड़े उपलब्ध करवाने से रोक सकता है।
  • इस प्रकार के आंकड़े तिब्बत से प्रवाहित होकर अरुणाचल प्रदेश में आने वाली जल की मात्र का मापन करने और राज्य में किसी भी बड़ी आपदा या बाढ़ को रोकने के उपाय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभातें हैं।