असम-मिजोरम सीमा विवाद

जुलाई, 2021 में असम-मिजोरम सीमा पर हुए हिंसक संघर्ष दोनों राज्यों के बीच उनकी सीमा को लेकर लंबे समय से चले आ रहे मतभेद का परिणाम हैं। दोनों राज्यों के बीच लगने वाली 164.6 किलोमीटर लंबी सीमा, इस क्षेत्र में हिंसा की कई घटनाएं सामने आने के कारण विवाद का केंद्र बन गई।

  • दोनों राज्यों के बीच विवाद की मुख्य वजह 1875 तथा 1933 में जारी की गई ब्रिटिश काल की दो अधिसूचनाएं हैं। वर्ष 1875 तथा वर्ष 1933 में हुआ सीमांकन दोनों राज्यों के बीच अभी भी विवाद की जड़ है।
  • 1875 का सीमांकन बंगाल ईस्टर्न फ्रंटियर रेगुलेशन (BEFR) अधिनियम, 1873 के आधार पर किया गया था। इसने लुशाई पहाड़ियों को असम की बराक घाटी में स्थित कछार (Cachar) के मैदानी इलाकों से पृथक किया। मिजोरम के लोग 1875 की इस अधिसूचना को मानते हैं। इस अधिसूचना को मानने के पीछे वजह ये है कि मिजो लोग मानते हैं कि ये अधिसूचना आदिवासी प्रमुखों के साथ बातचीत करने के बाद की गई थी।
  • मिजो समुदाय के नेताओं के परामर्श से किया गया यह सीमांकन 2 वर्ष बाद इनर लाइन रिजर्व फॉरेस्ट सीमांकन (Inner Line Reserve Forest demarcation) का आधार बन गया।
  • असम के लोग 1933 में जारी अधिसूचना को स्वीकार करते हैं। इसमें लुशाई पहाड़ियों और मणिपुर के बीच की सीमा को चिह्नित किया गया था। इस अधिसूचना में कहा गया कि मणिपुर की सीमा लुशाई हिल्स, असम के कछार जिले और मणिपुर के त्रिकोणीय जंक्शन (tri-junction) से शुरू होती है।
  • मिजो लोग इस सीमांकन को इस आधार पर स्वीकार नहीं करते कि इस बार उनके प्रमुखों से सलाह नहीं ली गई थी।

असम-मिजोरम सीमा

  • मिजोरम की सीमा असम की बराक घाटी से लगती है तथा दोनों ही राज्य बांग्लादेश के साथ सीमा बनाते हैं।
  • दोनों राज्यों के बीच 164.6 किलोमीटर लंबी अंतर्राज्यीय सीमा असम के कछार, हैलाकांडी और करीमगंज जिलों को और मिजोरम के कोलासिब, ममित और आइजोल जिलों को छूती है।
  • औपनिवेशिक शासन के तहत मिजोरम को लुशाई हिल्स (स्नेींप भ्पससे) के नाम से जाना जाता था और ये असम का हिस्सा था। इस क्षेत्र को 1972 में एक अलग संघ प्रशासित क्षेत्र बना दिया गया और 1987 में मिजोरम एक पूर्ण राज्य बन गया।