जनवरी, 2019 को दावोस, स्विट्जरलैंड में विश्व आर्थिक मंच की वार्षिक बैठक के दौरान प्लैटफॉर्म फॉर एक्सीलेरेटिंग द सर्कुलर इकोनॉमी (Platform for Accelerating the Circular Economy- PACE) और यूएन ई-वेस्ट कोएलिशन (UN E - Waste Coalition) द्वारा जारी रिपोर्ट ‘ए न्यू सर्कुलर विजन फॉर इलेक्ट्रॉनिक्स’ (A New Circular Vision for Electronics) के अनुसार वर्ष 2050 तक 12 करोड़ टन सालाना ई-अपशिष्ट उत्पादन होने का अनुमान है।
विशेषताएं
दुनिया भर में हर साल 5 करोड़ टन इलेक्ट्रॉनिक और इलेक्ट्रिकल अपशिष्ट (ई-अपशिष्ट) का उत्पादन होता है, जिसका वजन अब तक बने सभी वाणिज्यिक विमानों के वजन से ज्यादा है। इसके केवल 20% को ही औपचारिक रूप से पुनर्चक्रित किया जाता है। 80% या तो लैंडफिल में समाप्त होता है या अनौपचारिक रूप से पुनर्चक्रित किया जाता है।
संयुक्त राष्ट्र ई-अपशिष्ट गठबंधन
संयुक्त राष्ट्र ई-अपशिष्ट गठबंधन (UN E-Wsate Coalition) सात संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों का एक समूह है, जो सहयोग बढ़ाने, साझेदारी बनाने और अधिक कुशलता से सदस्य देशों को ई-अपशिष्ट चुनौती का समाधान करने के लिए समर्थन प्रदान करने के लिए एक साथ आए हैं।
गठबंधन में शामिल हैं: अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO); अंतरराष्ट्रीय दूरसंचार संघ (ITU); संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण; संयुक्त राष्ट्र औद्योगिक विकास संगठन (UNIDO); संयुक्त राष्ट्र प्रशिक्षण और अनुसंधान संस्थान (United Nations Institute for Training and Research-UNITAR); संयुक्त राष्ट्र विश्वविद्यालय (UNU) और बेसेल और स्टॉकहोम सम्मेलनों के सचिवालय।
ठोस अपशिष्ट पूरे विश्व में एक समस्या बनकर उभरा है। यह समस्या प्रत्येक देश में विद्यमान है, क्योंकि इसके समुचित निस्तारण एवं डमि्ंपग की आवश्यकता होती है। ठोस अपशिष्टों का उत्पादन वास्तव में आधुनिक भौतिकवादी समाज की देन है। विकसित देशों की ‘प्रयोग करो और फेंको संस्कृति’ (Use and Throw Culture) ठोस अपशिष्ट प्रदूषण के लिये जिम्मेदार है।
भारत में ठोस अपशिष्ट (Solid Waste in India)
भारत के 3,00,000 से अधिक जनसंख्या वाले लगभग 50 बडे़ नगर प्रतिदिन 4,00,000 टन से अधिक अपशिष्ट उत्पन्न करते हैं। शहरी क्षेत्र के लगभग 1,88,500 टन प्रतिदिन (68.8 मिलियन प्रत्येक वर्ष) उत्पन्न होता है। औसत 500 gm/ व्यक्ति प्रतिदिन ठोस अपशिष्ट उत्पन्न होता है।
ठोस अपशिष्ट प्रबंधन-प्रमुख घटक
ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के प्रमुख घटकों में शामिल हैं-
प्रथम चरणः अपशिष्ट पदार्थ उत्पन्न करने वालों द्वारा कचरे को सूखे और गीले कचरे के रूप में छांटकर अलग करना।
द्वितीय चरणः घर-घर जाकर कूड़ा इकट्टा करना और छंटाई के बाद इसे प्रसंस्करण के लिए भेजना।
तृतीय चरणः सूखे कूड़े में से प्लास्टिक, कागज, धातु, कांच जैसी पुनर्चक्रित हो सकने वाली उपयोगी सामग्री छांटकर अलग करना।
चतुर्थ चरणः कूड़े के प्रसंस्करण की सुविधाओं, जैसे कम्पोस्ट बनाने, बायो-मीथेन तैयार करने और कूड़े-करकट से ऊर्जा उत्पादन करने के संयंत्रों की स्थापना करना।
पंचम चरणः अपशिष्ट के निस्तारण की सुविधा-लैंडफिल बनाना।
ठोस अपशिष्ट का प्रभाव (effects of Solid Waste)
ठोस अपशिष्ट का मानव स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। ठोस अपशिष्ट का प्रभाव मानव पर प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष दोनों रूप में हो सकता है।
ठोस अपशिष्ट का जानवरों एवं जलीय जीवन पर प्रभाव
ठोस अपशिष्ट के माध्यम से पारा जल में मिल जाता है। इस प्रकार दूषित जल के कारण मछलियों की मृत्यु होने लगती है।
पर्यावरण पर प्रभाव
अपशिष्ट के कारण मिथेन गैस पैदा होती है, जो ग्रीन हाउस गैस है।
लिटरिंग (Littering): प्रदूषित कचरे के कारण अवैध डंपिंग।
लीचिंग (Leaching): यह एक प्रक्रिया है, जिसमें ठोस अपशिष्ट मिट्टी एवं भूमिगत जल में पहुंचता है तथा उन्हें दूषित करता है।
ठोस अपशिष्ट समस्या के कारक
जीवन पद्धति (Lifestyle) में परिवर्तन
अपर्याप्त सरकारी नीतियां
तीव्र जनसंख्या वृद्धि
सार्वजनिक उदासीनता
ठोस अपशिष्ट का उपचार (Treatment of Solid Waste)
ठोस अपशिष्ट के उपचार के बहुत से तरीके है, उनमें प्रमुख इस प्रकार हैं-
भूमि भराव (Land Fills)
यह सामान्यतः नगरीय क्षेत्रों में अवस्थित गड्ढेनुमा भाग होता है; जिसमें ठोस अपशिष्ट कचरे को लाकर डंप किया जाता है। पूरा भरा जाने के बाद इसे मिट्टी से भर दिया जाता है।