दुनिया भर में ई-अपशिष्ट की बढ़ोत्तरी

जनवरी, 2019 को दावोस, स्विट्जरलैंड में विश्व आर्थिक मंच की वार्षिक बैठक के दौरान प्लैटफॉर्म फॉर एक्सीलेरेटिंग द सर्कुलर इकोनॉमी (Platform for Accelerating the Circular Economy- PACE) और यूएन ई-वेस्ट कोएलिशन (UN E - Waste Coalition) द्वारा जारी रिपोर्ट ‘ए न्यू सर्कुलर विजन फॉर इलेक्ट्रॉनिक्स’ (A New Circular Vision for Electronics) के अनुसार वर्ष 2050 तक 12 करोड़ टन सालाना ई-अपशिष्ट उत्पादन होने का अनुमान है।

विशेषताएं

दुनिया भर में हर साल 5 करोड़ टन इलेक्ट्रॉनिक और इलेक्ट्रिकल अपशिष्ट (ई-अपशिष्ट) का उत्पादन होता है, जिसका वजन अब तक बने सभी वाणिज्यिक विमानों के वजन से ज्यादा है। इसके केवल 20% को ही औपचारिक रूप से पुनर्चक्रित किया जाता है। 80% या तो लैंडफिल में समाप्त होता है या अनौपचारिक रूप से पुनर्चक्रित किया जाता है।

  • 2018 में अपशिष्ट प्रवाह पहले ही 48.5 मिलियन टन (MT) तक पहुंच गया है और यदि समय पर उपायों का कार्यान्वयन नहीं किया जाता है, तो यह आंकड़ा दोगुना होने की उम्मीद है।
  • सालाना उत्पादित ई-अपशिष्ट की कीमत 62.5 बिलियन डॉलर से अधिक है, जो कि अधिकांश देशों के सकल घरेलू उत्पाद से अधिक है। एक टन सोने के अयस्क की तुलना में ई-अपशिष्ट के एक टन में 100 गुना अधिक सोना होता है।
  • उत्पन्न होने वाले ई-अपशिष्ट की मात्र का पूर्वानुमान लगाना कठिन है, लेकिन 2021 तक वार्षिक कुल मात्रा का 52 मिलियन टन को पार करने की उम्मीद है।
  • 2040 तक इलेक्ट्रॉनिक्स, जिसमें पीसी (PCs), लैपटॉप, मॉनिटर, स्मार्टफोन और टैबलेट जैसे डिवाइस शामिल हैं, के उत्पादन और उपयोग से कार्बन उत्सर्जन कुल उत्सर्जन का 14% तक पहुँच जाएगा।
  • उत्तरी अमेरिका, पश्चिमी यूरोप, जापान, दक्षिण कोरिया और ऑस्ट्रेलिया ऐसे क्षेत्र हैं, जो अपने अधिकांश ई-अपशिष्ट को दूसरे देशों में भेजते हैं; जबकि भारत, चीन, वियतनाम, ब्राजील, मैक्सिको, सेनेगल, घाना, नाइजीरिया, आइवरी कोस्ट और मिस्र ऐसे क्षेत्र हैं, जो काफी मात्र में ई-अपशिष्ट आयात कर रहे हैं।
  • संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियों ने विश्व आर्थिक मंच, वैश्विक पर्यावरण सुविधा और वर्ल्ड बिजनेस काउंसिल फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट (World Business Council for Sustainable Development-WBCSD) के साथ मिलकर मौजूदा इलेक्ट्रानिक्स प्रणाली में सुधार की बात कही है।
  • नाइजीरियाई सरकार, वैश्विक पर्यावरण सुविधा और संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम ने नाइजीरिया में ई-अपशिष्ट प्रणाली लागू करने के लिए 15 मिलियन डॉलर की पहल के लिए एक परिपत्र जारी किया है।

संयुक्त राष्ट्र ई-अपशिष्ट गठबंधन

संयुक्त राष्ट्र ई-अपशिष्ट गठबंधन (UN E-Wsate Coalition) सात संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों का एक समूह है, जो सहयोग बढ़ाने, साझेदारी बनाने और अधिक कुशलता से सदस्य देशों को ई-अपशिष्ट चुनौती का समाधान करने के लिए समर्थन प्रदान करने के लिए एक साथ आए हैं।

गठबंधन में शामिल हैं: अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO); अंतरराष्ट्रीय दूरसंचार संघ (ITU); संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण; संयुक्त राष्ट्र औद्योगिक विकास संगठन (UNIDO); संयुक्त राष्ट्र प्रशिक्षण और अनुसंधान संस्थान (United Nations Institute for Training and Research-UNITAR); संयुक्त राष्ट्र विश्वविद्यालय (UNU) और बेसेल और स्टॉकहोम सम्मेलनों के सचिवालय।

ठोस अपशिष्ट पूरे विश्व में एक समस्या बनकर उभरा है। यह समस्या प्रत्येक देश में विद्यमान है, क्योंकि इसके समुचित निस्तारण एवं डमि्ंपग की आवश्यकता होती है। ठोस अपशिष्टों का उत्पादन वास्तव में आधुनिक भौतिकवादी समाज की देन है। विकसित देशों की ‘प्रयोग करो और फेंको संस्कृति’ (Use and Throw Culture) ठोस अपशिष्ट प्रदूषण के लिये जिम्मेदार है।

भारत में ठोस अपशिष्ट (Solid Waste in India)

भारत के 3,00,000 से अधिक जनसंख्या वाले लगभग 50 बडे़ नगर प्रतिदिन 4,00,000 टन से अधिक अपशिष्ट उत्पन्न करते हैं। शहरी क्षेत्र के लगभग 1,88,500 टन प्रतिदिन (68.8 मिलियन प्रत्येक वर्ष) उत्पन्न होता है। औसत 500 gm/ व्यक्ति प्रतिदिन ठोस अपशिष्ट उत्पन्न होता है।

  • भारतीय शहरों से उत्पन्न कचरों में कार्बन तथा जैविक पदार्थ, कम्पोस्ट बनाने योग्य पदार्थ, राख तथा धूल, पत्थर, कोयला, भूसा, सब्जियां, कागज, कपड़े, डिब्बे, पॉलिथीन आदि हैं।
  • भारत में 1947 में लगभग 6 मिलियन टन ठोस अपशिष्ट होता था, जो अब बढ़कर लगभग 68 मिलियन टन हो गया है। अभी 30 प्रतिशत के लगभग ठोस अपशिष्ट को नगरपालिका द्वारा इकट्ठा नहीं किया जाता है।
  • भारतीय शहरों में इसके परिवहन, लैंडफिल व निस्तारण की समस्या मौजूद है। औद्योगिक एवं चिकित्सा क्षेत्र से हानिकारक विषैले उत्पाद उत्पन्न होते हैं।
  • चिकित्सा अपशिष्ट इलाज, इाडग्नोसिस, रिसर्च आदि क्रियाओं के समय उत्पन्न होता है। इसमें बहुत से रसायन व तत्त्वों का प्रयोग किया जाता है। इनका अच्छे से निस्तारण नहीं करने पर ये मानव स्वास्थ्य व पर्यावरण के लिये विकट समस्या पैदा करते हैं।

ठोस अपशिष्ट प्रबंधन-प्रमुख घटक

ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के प्रमुख घटकों में शामिल हैं-

प्रथम चरणः अपशिष्ट पदार्थ उत्पन्न करने वालों द्वारा कचरे को सूखे और गीले कचरे के रूप में छांटकर अलग करना।

द्वितीय चरणः घर-घर जाकर कूड़ा इकट्टा करना और छंटाई के बाद इसे प्रसंस्करण के लिए भेजना।

तृतीय चरणः सूखे कूड़े में से प्लास्टिक, कागज, धातु, कांच जैसी पुनर्चक्रित हो सकने वाली उपयोगी सामग्री छांटकर अलग करना।

चतुर्थ चरणः कूड़े के प्रसंस्करण की सुविधाओं, जैसे कम्पोस्ट बनाने, बायो-मीथेन तैयार करने और कूड़े-करकट से ऊर्जा उत्पादन करने के संयंत्रों की स्थापना करना।

पंचम चरणः अपशिष्ट के निस्तारण की सुविधा-लैंडफिल बनाना।

  • कुशल ठोस अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली का मुख्य उद्देश्य कूड़े-करकट से उपयोगी पदार्थों को निकालना और बचे हुए अपशिष्ट से प्रसंस्करण केन्द्र में बिजली का उत्पादन करना है (चतुर्थ चरण) और लैंडफिल में डाले जाने वाले कूड़े की मात्र को कम से कम करना है, क्योंकि तेजी से सिमट रहे भूमि संसाधन पर इसका बहुत बुरा असर पड़ रहा है। इतना ही नहीं इस तरह से फेंका गया कूड़ा-करकट वायु, मृदा और जल प्रदूषण का खतरा पैदा कर सकता है।
  • इस स्थिति में अपशिष्ट लैंडफिल (पंचम चरण) में फेंक दिया जाता है।
  • अगर कूड़े-करकट को इकट्टा करके उसकी छंटाई किए बिना ही प्रसंस्करण केन्द्र में पहुँचा दिया जाता है तो उसका प्रसंस्करण बड़ा मुश्किल है, क्योंकि ऐसे कूड़े के साथ भवन निर्माण और उनकी तोड़-फोड़ से निकला मलबा भी होता है, जिसे प्रसंस्करण संयंत्र में सीधे उपयोग में नहीं लाया जा सकता।
  • कूड़े को इकट्टा करने, छांटने और परिवहन जैसी गतिविधियों के बीच पूरा तालमेल होना जरूरी है।
  • तभी उसका उपयोग उस इलाके के प्रसंस्करण केन्द्र में किया जा सकता है।

ठोस अपशिष्ट का प्रभाव (effects of Solid Waste)

ठोस अपशिष्ट का मानव स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। ठोस अपशिष्ट का प्रभाव मानव पर प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष दोनों रूप में हो सकता है।

  • हवा के साथ रासायनिक जहर शरीर में पहुंच जाता है।
  • जल में ठोस अपशिष्ट पानी के बहाव को रोकता है, जिससे आस-पास के क्षेत्रों में बाढ़ आने का खतरा बढ़ जाता है।
  • कैंसर।
  • जन्मजात विकृति।
  • मस्तिष्क संबंधी रोग।
  • घबराहट व उल्टी।
  • खतरनाक अपशिष्ट साइट के पास रहने वालों में मधुमेह की समस्या अधिक पाई जाती है।
  • पारा, आर्सेंनिक, लेड आदि तत्व का ठोस अपशिष्ट के माध्यम से जल तंत्र में पहुंचकर मानव स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाना।

ठोस अपशिष्ट का जानवरों एवं जलीय जीवन पर प्रभाव

ठोस अपशिष्ट के माध्यम से पारा जल में मिल जाता है। इस प्रकार दूषित जल के कारण मछलियों की मृत्यु होने लगती है।

  • जलीय जीवों पर प्लास्टिक ट्यूब का अत्यधिक बुरा प्रभाव पड़ता है, यह उनके संकटग्रस्त होने का बड़ा कारण है।
  • एल्गी ब्लूम की घटना।
  • जल एवं मृदा गुणवत्ता में कमी।

पर्यावरण पर प्रभाव

अपशिष्ट के कारण मिथेन गैस पैदा होती है, जो ग्रीन हाउस गैस है।

लिटरिंग (Littering): प्रदूषित कचरे के कारण अवैध डंपिंग।

लीचिंग (Leaching): यह एक प्रक्रिया है, जिसमें ठोस अपशिष्ट मिट्टी एवं भूमिगत जल में पहुंचता है तथा उन्हें दूषित करता है।

ठोस अपशिष्ट समस्या के कारक

  • तीव्र नगरीकरण,
  • नगरीय विकास,
  • नए नगरों का निर्माण व विकास,
  • औद्योगिक वृद्धि।

जीवन पद्धति (Lifestyle) में परिवर्तन

  • जीवन स्तर अनुचित,
  • क्रय शक्ति में वृद्धि,
  • खाने की आदतों में बदलाव (वेस्ट ज्यादा)।

अपर्याप्त सरकारी नीतियां

  • लागू करने के स्तर पर कमी (Lacking in Enforcement Level)।
  • नियमन प्रक्रिया में एकरूपता का अभाव।
  • व्यापक कानून एवं विनियमन का न होना।
  • निपटान क्षेत्र में कमी।

तीव्र जनसंख्या वृद्धि

  • जनसंख्या वृद्धि,
  • जनसंख्या का आंतरिक एवं बाह्य प्रवासन (Migration)।

सार्वजनिक उदासीनता

  • लोगों का ध्यान न देना।
  • जनता द्वारा यह सोचना कि इसकी सारी जिम्मेदारी सरकार की है।
  • लोगों की अपशिष्ट उत्पन्न करने की प्रवृत्ति और इसे कहीं भी फेंकने की आदत।
  • अपशिष्ट परिहार/कमी, अलगाव आदि के महत्व में कमी।
  • अपशिष्ट के उचित संग्रहण में कमी।

ठोस अपशिष्ट का उपचार (Treatment of Solid Waste)

ठोस अपशिष्ट के उपचार के बहुत से तरीके है, उनमें प्रमुख इस प्रकार हैं-

भूमि भराव (Land Fills)

यह सामान्यतः नगरीय क्षेत्रों में अवस्थित गड्ढेनुमा भाग होता है; जिसमें ठोस अपशिष्ट कचरे को लाकर डंप किया जाता है। पूरा भरा जाने के बाद इसे मिट्टी से भर दिया जाता है।