राष्ट्रीय किसान आयोग (एनसीएफ) का गठन 18 नवंबर, 2004 को प्रोफेसर एम-एस- स्वामीनाथन की अध्यक्षता में किया गया था। किसान संकट और किसान आत्महत्याओं में वृद्धि के कारणों को समझने एवं इससे सम्बंधित सिफारिश करने का कार्य सौंपा गया था। एनसीएफ को देश में प्रमुख कृषि प्रणालियों की उत्पादकता, लाभप्रदता और स्थिरता को बढ़ाकर सार्वभौमिक खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए एक मध्यम अवधि की रणनीति तैयार करने का कार्य भी दिया गया था।
भूमि सुधार
आजादी के समय से ही भूमि के स्वामित्व में असमानता रही है। देश के कृषि क्षेत्र की समस्याओं के समाधान की लिए भूमि आवश्यक संसाधन है। अतः स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट में भूमि सुधारों को आगे बढ़ाने पर जोर दिया गया। आयोग की मुख्य सिफारिशे निम्नलिखित हैं:
क्रेडिट और बीमा औपचारिक ऋण तक समय पर और पर्याप्त पहुंच सीमांत किसानों को चक्रीय गरीबी से बाहर लाने के लिए आवश्यक है। इस समस्या की समाधान के लिए रिपोर्ट में निम्नलिखित सिफारिश की गईः
|
सिंचाई
वर्षा आधारित कृषि अभी भी लगभग 65 प्रतिशत क्षेत्र पर की जाती है। वर्षा आधारित और शुष्क क्षेत्रों में अनेक फसलों का उत्पादन किया जाता है, जो भारत के फूड बास्केट में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। जलवायु परिवर्तन और पानी की कमी का सामना करने के इस रिपोर्ट ने कुछ उपायों की सिफारिश की हैः
कृषि की उत्पादकता
भूमि के आकार के अतिरिक्त उत्पादकता का स्तर मुख्य रूप से किसानों की आय का निर्धारण करता है। भारतीय कृषि की प्रति इकाई फसल उत्पादकता अन्य प्रमुख उत्पादक देशों की तुलना में बहुत कम है।
खाद्य सुरक्षा
प्रति व्यक्ति खाद्यान्न उपलब्धता में गिरावट तथा इसके असमान वितरण से ग्रामीण एवं शहरी दोनों क्षेत्रों में खाद्य सुरक्षा पर गंभीर प्रभाव पड़ा है और ‘जीरो हंगर’ (एसडीजी 2) के सतत विकास लक्ष्य को प्राप्त करने की क्षमता को खतरा उत्पन्न हुआ है। अध्ययनों से पता चला है कि गरीबी और भोजन की कमी मुख्यतः ग्रामीण क्षेत्रों में है, जो संसाधनों की सीमित उपलब्धता को इंगित करता है; वहीं उपलब्ध संसाधनों के दोहन की क्षमता को भी प्रभावित करता है।
इस समस्या के समाधान के लिए रिपोर्ट में निम्नलिखित सिफारिश की गई-
किसानों की आत्महत्या की रोकथाम पिछले कुछ वर्षों में आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र, केरल, पंजाब, राजस्थान, ओडिशा और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों से किसान आत्महत्या के मामले सामने आए हैं। आयोग ने किसान आत्महत्या समस्या को प्राथमिकता के आधार पर हल करने की आवश्यकता को रेखांकित किया है और इस मुद्दे से निपटने के उपाय सुझाए हैं:
|
किसानों की प्रतिस्पर्द्धा
छोटी भूमि जोत वाले किसानों की कृषि प्रतिस्पर्द्धा बढ़ाया जाना अतिआवश्यक है। विपणन अधिशेष को बढ़ाने के लिए उत्पादकता में सुधार सुनिश्चित किया जाना चाहिए और इसे लाभकारी विपणन के अवसरों से भी जोड़ा जाना चाहिए। आयोग द्वारा किसानों के बीच प्रतिस्पर्द्धा बढ़ाने के लिए निम्नलिखित सुझाव दिए गए हैं:
रोजगार
यद्यपि भारत में विनिर्माण और सेवा क्षेत्रों की ओर भारतीय युवाओं को स्थानांतरित करने से कार्यबल में संरचनात्मक परिवर्तन हो रहा है, लेकिन ग्रामीण जनसंख्या का बड़ा हिस्सा अभी भी कृषि पर निर्भर है।
भारत में समग्र रोजगार रणनीति के लिए दो बातों पर ध्यान देना चाहिए। पहला, उत्पादक रोजगार के अवसर पैदा करना और दूसरा कई क्षेत्रों में रोजगार अवसर की गुणवत्ता में सुधार करना, जैसे वास्तविक उत्पादकता में सुधार के माध्यम से मजदूरी बढ़ाना।