स्वामीनाथन रिपोर्ट: राष्ट्रीय किसान आयोग

राष्ट्रीय किसान आयोग (एनसीएफ) का गठन 18 नवंबर, 2004 को प्रोफेसर एम-एस- स्वामीनाथन की अध्यक्षता में किया गया था। किसान संकट और किसान आत्महत्याओं में वृद्धि के कारणों को समझने एवं इससे सम्बंधित सिफारिश करने का कार्य सौंपा गया था। एनसीएफ को देश में प्रमुख कृषि प्रणालियों की उत्पादकता, लाभप्रदता और स्थिरता को बढ़ाकर सार्वभौमिक खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए एक मध्यम अवधि की रणनीति तैयार करने का कार्य भी दिया गया था।

  • स्वामीनाथन रिपोर्ट में भूमि सुधार, सिंचाई, ऋण और बीमा, खाद्य सुरक्षा, रोजगार, कृषि की उत्पादकता आदि से सम्बंधित नीतिगत सिफारिशें की गईं। रिपोर्ट में, ‘कृषि’ विषय को संविधान के समवर्ती सूची में डाले जाने की भी सिफारिश की गई है।

भूमि सुधार

आजादी के समय से ही भूमि के स्वामित्व में असमानता रही है। देश के कृषि क्षेत्र की समस्याओं के समाधान की लिए भूमि आवश्यक संसाधन है। अतः स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट में भूमि सुधारों को आगे बढ़ाने पर जोर दिया गया। आयोग की मुख्य सिफारिशे निम्नलिखित हैं:

  • भूमिहीन किसानों के बीच सीलिंग-अधिशेष और बेकार भूमि को वितरित करना।
  • गैर-कृषि उद्देश्यों के लिए प्रमुख कृषि भूमि और वन को कॉर्पोरेट क्षेत्र को दिए जाने पर रोक लगाना।
  • आदिवासियों और पशुपालक समुदायों के वन-अधिकारों को मान्यता देना और आम संपत्ति संसाधनों तक पहुंच सुनिश्चित करना।
  • राष्ट्रीय भूमि उपयोग सलाहकार सेवा की स्थापना, जो भूमि उपयोग के निर्णयों को लेने में सहयोग करेगी। यह पारिस्थितिक, मौसम और विपणन संबंधी कारकों को स्थान और मौसम के साथ संयुक्त कर कार्य करेगी।
  • भूमि की मात्र, प्रस्तावित उपयोग की प्रकृति और खरीददार की श्रेणी के आधार पर कृषि भूमि की बिक्री को विनियमित करने के लिए एक तंत्र स्थापित करना।

क्रेडिट और बीमा

औपचारिक ऋण तक समय पर और पर्याप्त पहुंच सीमांत किसानों को चक्रीय गरीबी से बाहर लाने के लिए आवश्यक है। इस समस्या की समाधान के लिए रिपोर्ट में निम्नलिखित सिफारिश की गईः

  • गरीबों और जरूरतमंदों की औपचारिक ऋण प्रणाली पहुंचना सुनिश्चित करना।
  • सरकारी समर्थन के साथ फसल ऋण के लिए ब्याज दर को घटाकर 4 प्रतिशत करना।
  • संकटग्रस्त क्षेत्रें (हॉटस्पॉट) में आपदाओं के दौरान ऋण वसूली तब तक स्थगित करना, जब तक सामान्य क्षमता पुनर्बहाल न हो जाये। प्रदान किये गए ऋणों के ब्याज की छूट दी जानी चाहिए।
  • क्रमिक प्राकृतिक आपदाओं के बाद किसानों को राहत देने के लिए कृषि जोखिम कोष की स्थापना करना।
  • जमानत के रूप में संयुक्त पट्टी के साथ महिला किसानों को किसान क्रेडिट कार्ड जारी करना।
  • एकीकृत ऋण-सह-फसल-पशुधन-मानव स्वास्थ्य बीमा योजना विकसित करना।
  • पूरे देश और सभी फसलों के लिए कम प्रीमियम के साथ फसल बीमा कवर का विस्तार करना और ग्रामीण बीमा विकास निधि की स्थापना कर ग्रामीण बीमा का प्रसार एवं विकास कार्य किया जाना चाहिए।

सिंचाई

वर्षा आधारित कृषि अभी भी लगभग 65 प्रतिशत क्षेत्र पर की जाती है। वर्षा आधारित और शुष्क क्षेत्रों में अनेक फसलों का उत्पादन किया जाता है, जो भारत के फूड बास्केट में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। जलवायु परिवर्तन और पानी की कमी का सामना करने के इस रिपोर्ट ने कुछ उपायों की सिफारिश की हैः

  • किसानों के लिए पानी का निरंतर और न्यायसंगत पहुंच सुनिश्चित करना।
  • वर्षा जल संचयन के माध्यम से पानी की आपूर्ति बढ़ाएं और जलभृत का पुनर्भरण अनिवार्य होना चाहिए। ‘मिलियन वेल्स रिचार्ज’ कार्यक्रम के माध्यम से निजी कुओं को लक्षित किया जाना चाहिए।
  • इन क्षेत्र में बड़े सतही जल प्रणालियों, लघु सिंचाई और नई योजनाओं के निवेश में पर्याप्त वृद्धि करना, ताकि भूजल पुनर्भरण संभव हो सके।

कृषि की उत्पादकता

भूमि के आकार के अतिरिक्त उत्पादकता का स्तर मुख्य रूप से किसानों की आय का निर्धारण करता है। भारतीय कृषि की प्रति इकाई फसल उत्पादकता अन्य प्रमुख उत्पादक देशों की तुलना में बहुत कम है।

  • कृषि में उत्पादकता में उच्च वृद्धि हासिल करने के लिए इस रिपोर्ट में निम्नलिखित सिफारिश की गई हैः
  1. कृषि से संबंधित बुनियादी ढाँचे में विशेष रूप से सिंचाई, जल निकासी, भूमि विकास, जल संरक्षण, अनुसंधान विकास और सड़क संपर्क आदि में सार्वजनिक निवेश में पर्याप्त वृद्धि करना।
  2. सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी का पता लगाने के लिए सुविधाओं के साथ उन्नत मृदा परीक्षण प्रयोगशालाओं का एक राष्ट्रीय नेटवर्क स्थापित करना।
  3. संरक्षण खेती को बढ़ावा देना, जो कृषि परिवारों को मिट्टी के स्वास्थ्य, पानी की मात्र, गुणवत्ता और जैव विविधता के संरक्षण तथा सुधार में मदद करेगा।

खाद्य सुरक्षा

प्रति व्यक्ति खाद्यान्न उपलब्धता में गिरावट तथा इसके असमान वितरण से ग्रामीण एवं शहरी दोनों क्षेत्रों में खाद्य सुरक्षा पर गंभीर प्रभाव पड़ा है और ‘जीरो हंगर’ (एसडीजी 2) के सतत विकास लक्ष्य को प्राप्त करने की क्षमता को खतरा उत्पन्न हुआ है। अध्ययनों से पता चला है कि गरीबी और भोजन की कमी मुख्यतः ग्रामीण क्षेत्रों में है, जो संसाधनों की सीमित उपलब्धता को इंगित करता है; वहीं उपलब्ध संसाधनों के दोहन की क्षमता को भी प्रभावित करता है।

इस समस्या के समाधान के लिए रिपोर्ट में निम्नलिखित सिफारिश की गई-

  • एक सार्वभौमिक सार्वजनिक वितरण प्रणाली को लागू करना, जिसके लिए आवश्यक कुल सब्सिडी सकल घरेलू उत्पाद का एक प्रतिशत होना चाहिए।
  • पंचायतों और स्थानीय निकायों की भागीदारी के आधार पर पोषण सहायता कार्यक्रमों की वितरण का पुनर्गठन करना।
  • एक एकीकृत फूड फोर्टिफिकेशन दृष्टिकोण के माध्यम से सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी को दूर करना।
  • महिला स्व-सहायता समूहों (एसएचजी) द्वारा संचालित सामुदायिक खाद्य और जल बैंकों की स्थापना को बढ़ावा देना, जो ‘हर जगह अनाज और पानी संग्रहित करने’ के सिद्धांत पर आधारित होते हैं।
  • कृषि उद्यमों की उत्पादकता, गुणवत्ता और लाभप्रदता में सुधार करने के लिए छोटे और सीमांत किसानों की मदद करना तथा ग्रामीण गैर-कृषि आजीविका पहल को प्रोत्साहित करना।

किसानों की आत्महत्या की रोकथाम

पिछले कुछ वर्षों में आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र, केरल, पंजाब, राजस्थान, ओडिशा और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों से किसान आत्महत्या के मामले सामने आए हैं। आयोग ने किसान आत्महत्या समस्या को प्राथमिकता के आधार पर हल करने की आवश्यकता को रेखांकित किया है और इस मुद्दे से निपटने के उपाय सुझाए हैं:

  • सस्ती स्वास्थ्य बीमा प्रदान करना और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों को पुनर्जीवित करना।
  • किसानों के प्रतिनिधित्व के साथ राज्य स्तरीय किसान आयोग की स्थापना करना, ताकि किसानों की समस्याओं पर ध्यान दिया जा सके।
  • सूक्ष्म-वित्त नीतियों को आजीविका वित्त को ध्यान में रखना एवं पुनर्निर्मित करना, अर्थात् प्रौद्योगिकी, प्रबंधन और बाजारों के क्षेत्रें में सहायता सेवाओं के साथ ऋण को युग्मित करना।
  • वृद्धावस्था सहायता और स्वास्थ्य बीमा के प्रावधान के साथ सामाजिक सुरक्षा प्रदान करना।
  • जलभृत पुनर्भरण और वर्षा जल संरक्षण को बढ़ावा देना और पानी के उपयोग की योजना का विकेंद्रीकरण करना।
  • उचित समय और स्थान पर किफायती लागत पर गुणवत्ता वाले बीज और अन्य आगतों की उपलब्धता सुनिश्चित करना।
  • जीवन रक्षक फसलों (जैसे शुष्क क्षेत्रों में जीरे की फसल) के मामले में बाजार हस्तक्षेप योजनाओं (एमआईएस) की आवश्यकता है और किसानों को मूल्य में उतार-चढ़ाव से बचाने के लिए मूल्य स्थिरीकरण कोष स्थापित किया जाना चाहिए।
  • किसान संकट की अधिक संभावना एवं बारंबारता वाले स्थानों पर ग्राम ज्ञान केंद्र (वीकेसी) या ज्ञान चौपाल स्थापित करना, जो कृषि और गैर-कृषि आजीविका के सभी पहलुओं पर गतिशील तथा मांग संचालित जानकारी प्रदान करता है।
  • लोगों के आत्मघाती (suicidal) व्यवहार के शुरुआती लक्षणों की पहचान करने में मदद करने के लिए जन-जागरुकता अभियान को बढ़ावा देना।

किसानों की प्रतिस्पर्द्धा

छोटी भूमि जोत वाले किसानों की कृषि प्रतिस्पर्द्धा बढ़ाया जाना अतिआवश्यक है। विपणन अधिशेष को बढ़ाने के लिए उत्पादकता में सुधार सुनिश्चित किया जाना चाहिए और इसे लाभकारी विपणन के अवसरों से भी जोड़ा जाना चाहिए। आयोग द्वारा किसानों के बीच प्रतिस्पर्द्धा बढ़ाने के लिए निम्नलिखित सुझाव दिए गए हैं:

  • संस्थागत समर्थन का लाभ उठाने और प्रत्यक्ष किसान-उपभोक्ता संपर्क को सुविधाजनक बनाने के लिए वस्तु-आधारित किसान संगठनों को बढ़ावा देना चाहिए।
  • न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) के कार्यान्वयन में सुधार कर धान और गेहूं के अलावा अन्य फसलों के लिए भी एमएसपी की व्यवस्था करने की आवश्यकता है। इसके अलावा बाजरा और अन्य पौष्टिक अनाज को स्थायी रूप से पीडीएस में शामिल किया जाना चाहिए।
  • एमएसपी कम से कम उत्पादन की भारित औसत लागत से 50% अधिक होना चाहिए।
  • मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (एमसीडी) और एनसीडीईएक्स और एपीएमसी इलेक्ट्रॉनिक नेटवर्क के माध्यम से वस्तुओं की स्थान और भविष्य कीमतों के बारे में डेटा की उपलब्धता होना चाहिए।
  • राज्य कृषि उत्पादन विपणन समिति अधिनियम (APMC अधिनियम) को संशोधित कर एकल भारतीय बाजार की स्थापना करनी चाहिए। साथ ही, APMC में संशोधन ऐसा होना चाहिए, जो स्थानीय उपज के लिए घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजारों के ग्रेडिंग, ब्रांडिंग, पैकेजिंग और विकास को बढ़ावा दे।

रोजगार

यद्यपि भारत में विनिर्माण और सेवा क्षेत्रों की ओर भारतीय युवाओं को स्थानांतरित करने से कार्यबल में संरचनात्मक परिवर्तन हो रहा है, लेकिन ग्रामीण जनसंख्या का बड़ा हिस्सा अभी भी कृषि पर निर्भर है।

भारत में समग्र रोजगार रणनीति के लिए दो बातों पर ध्यान देना चाहिए। पहला, उत्पादक रोजगार के अवसर पैदा करना और दूसरा कई क्षेत्रों में रोजगार अवसर की गुणवत्ता में सुधार करना, जैसे वास्तविक उत्पादकता में सुधार के माध्यम से मजदूरी बढ़ाना।

  • श्रम गहन क्षेत्रों पर जोर देना और इन क्षेत्रों का तेजी से विकास सुनिश्चित करने के लिए नीतिगत हस्तक्षेप करना।
  • मुख्य श्रम मानकों को खत्म किए बिना श्रम बाजारों की कार्यप्रणाली को संशोधित कर सुधार करना।
  • विशेष क्षेत्रों और उप-क्षेत्रों को विकसित करके गैर-कृषि रोजगार के अवसरों को प्रोत्साहित करना; जहां उत्पाद या सेवाओं की मांग तेजी से बढ़ रही है, अर्थात् व्यापार, रेस्तरां, परिवहन, निर्माण क्षेत्र आदि।
  • किसानों की ‘नेट टेक होम आय’ सिविल सेवकों के समतुल्य होनी चाहिए।