हिंद महासागर और प्रशांत महासागर के कुछ भागों को मिलाकर जो समुद्र का एक हिस्सा बनता है, उसे हिंद-प्रशांत क्षेत्र कहते हैं। यह क्षेत्र हाल के वर्षों में भू-राजनीतिक रूप से विश्व की विभिन्न शक्तियों के मध्य कूटनीति एवं संघर्ष का नया केंद्र बन चुका है।
वैश्वीकरण के कारण व्यापार निर्भरता बढ़ी है। वैश्वीकरण ने समुद्री क्षेत्र में निर्बाध संपर्क और समुद्री खतरे की प्रकृति को और अधिक अंतरराष्ट्रीय बना दिया है।
इस क्षेत्र में समुद्री सुरक्षा को मजबूत करने पर भी बल दिया जा रहा है, ताकि व्यापार और ऊर्जा की निर्बाध आपूर्ति हो सके।
इस प्रकार हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में मुख्य रूप से सम्पर्क, समुद्री परिवहन सुरक्षा, आतंकवाद निरोध, अप्रसार और साइबर सुरक्षा मुद्दों पर बल प्रदान किया जा रहा है।
इस दिशा में मुख्य उपलब्धि
भारत ने स्पष्ट रूप से हिन्द-प्रशांत के विचार को आगे बढ़ाने पर बल दिया, जो अफ्रीका से शुरू होकर जापान-अमेरिका तक फैला है।
इसमें कुछ वैसे प्रमुख पहलुओं पर भी स्पष्ट रूप से जोर दिया गया था, जो हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में भारत के नीतिगत परिप्रेक्ष्य को दर्शाते हैं, जिसमें ‘समावेशिता’, ‘खुलापन’, ‘आसियान केंद्रीयता’ शामिल हैं और यह अवधारणा किसी भी देश के खिलाफ निर्देशित नहीं थी।
हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारतीय भागीदारी को मोटे तौर पर तीन समूहों में वर्गीकृत किया जा सकता हैः क्वाड, आसियान और पश्चिमी हिंद महासागर।
‘टू प्लस टू (2+2)’ वार्ता
भारत ने संयुक्त राज्य अमेरिका और जापान के साथ एक द्विपक्षीय ‘2+2’ वार्ता की शुरुआत की है, जिसमें दोनों देशों के रक्षा और विदेश मंत्रियों के बीच वार्ता की जाती है, भारत ने ऑस्ट्रेलिया के साथ इसी तरह की सचिव स्तर की ‘2+2’ वार्ता शुरू की है।
भारत और आसियान
भारत ने अपने हिन्द-प्रशांत नीति में आसियान की केंद्रीयता पर जोर दिया है। भारत की एक्ट ईस्ट नीति आसियान सदस्यों के साथ सहयोग बढ़ाने हेतु रणनीतिक प्रक्रिया को दिशा प्रदान करती है।
क्वाड यह जापान, ऑस्ट्रेलिया, भारत और अमेरिका के बीच का एक चतुष्कोणीय गठबंधन है, जो हिन्द प्रशांत क्षेत्र में सहयोग और साझेदारी की स्थापना हेतु एक रणनीतिक वार्ता के रूप में शुरू की गयी थी। जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे की पहल और चीन की वजह से उपजी भू-राजनैतिक और भू-रणनीतिक चुनौती को देखते हुए अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया तथा भारत के राष्ट्र प्रमुखों ने 2007 में रणनीतिक वार्ता के रूप में ‘क्वाड’ की शुरुआत की। भारत की हिंद-प्रशांत नीति चीन को अलग-थलग करने की नहीं है, बल्कि हिंद-प्रशांत को लेकर भारत की एक सकारात्मक सोच रखता है। भारत की परिभाषा के तहत हिंद-प्रशांत एक स्वतंत्र, खुला, समावेशी क्षेत्र है, जो प्रगति और खुशहाली की दिशा में आगे बढ़ते हुए हर किसी को खुले दिल से स्वीकार करता है। इसमें वे सभी देश शामिल हैं, जो इस क्षेत्र के भीतर आते हैं और वैसे शक्तियों को भी मान्यता देता है, जो बाह्य होते हुए भी यहां साझेदार हैं। भारत ने जानबूझकर ‘समावेशी’शब्द जोड़कर हिंद-प्रशांत की परिभाषा को वैचारिक दृष्टि से एक नया आयाम देने की कोशिश की है; जो सीधे तौर पर चार देशों के समूह के चीन विरोधी लक्ष्य को कमजोर करता है। क्वाड देशों ने पहली बार सितंबर 2019 में मंत्रिस्तरीय स्तर पर मुलाकात की, जो भारत के चीन के प्रति आक्रामक रुख में बदलाव का संकेत है। भारत 2020 में वार्षिक मालाबार अभ्यासों में भाग लेने के लिए ऑस्ट्रेलिया को भी आमंत्रित कर सकता है, जो संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान और भारत से जुड़े त्रिपक्षीय नौसेना अभ्यास हैं। यह भारत द्वारा एक महत्वपूर्ण कूटनीतिक कदम हो सकता है। भारत और अमेरिका ने नवंबर 2019 में अपने पहले त्रि-सेवा सैन्य अभ्यास का आयोजन किया, जिससे दोनों देशों के बीच रक्षा सहयोग को बढ़ाने में मदद मिली, इसके अलावा भारत ने संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ एक आपसी लॉजिस्टिक सहायता समझौते का भी संचालन किया, जो इस क्षेत्र में दोनों देशों को एक-दूसरे के सैन्य ठिकानों तक पारस्परिक पहुँच प्रदान करता है। |
पश्चिमी हिन्द महासागर
भारत ने पश्चिमी हिंद महासागर में अपने रणनीतिक साझेदारों पर भी ध्यान केंद्रित करना शुरू कर दिया है।
भारत-प्रशांत नौसैनिक सहयोग
हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में मुख्य फोकस समुद्री क्षेत्र है। यही वह कड़ी है, जो भारत को श्रीलंका, इंडोनेशिया और सिंगापुर जैसे देशों से जोड़ता है। यह सभी राष्ट्र इस क्षेत्र में अपनी समुद्री स्थिति के कारण मुख्य स्थान प्राप्त किये हुए हैं।
इंडो-पैसिफिक मैरीटाइम डायलॉग और अभ्यास
इंडो-पैसिफिक रीजनल डायलॉग (IPRD)-2019 का दूसरा संस्करण मार्च 2019 में नई दिल्ली में आयोजित किया गया था। यह डायलॉग हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में भारत के अवसरों और चुनौतियों की वार्षिक समीक्षा के साथ वैश्विक रणनीतिक समुदाय को सम्बद्ध करने की प्रक्रिया का हिस्सा है।